tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post1840318453488599693..comments2023-10-29T18:16:26.466+05:30Comments on <center>Lucknow Bloggers' Association लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन</center>: जन्नत के बारे में ग़ालिब के ख़याल की हक़ीक़त Standard scale for moral valuesSaleem Khanhttp://www.blogger.com/profile/17648419971993797862noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-48316799362294902372011-01-14T20:44:43.771+05:302011-01-14T20:44:43.771+05:30सारी धरती के लोग एक ही परिवार है
@ जनाबे आली डाक्...<b>सारी धरती के लोग एक ही परिवार है</b><br />@ जनाबे आली डाक्टर साहब !<br />धर्म एक है। वसुधा एक है और सारी धरती के लोग एक ही परिवार है और इस परिवार का अधिपति परमेश्वर है। वही एक उपासनीय है और उसी के द्वारा निर्धारित कर्तव्य करणीय हैं, धारणीय हैं। जो बात सही है वह सबके लिए सही है। हवा , रौशनी और पानी सबके लिए एक ही तासीर रखती हैं। जो चीज़ बुरी है वह सबके लिए बुरी है। नशा, ब्याज, दहेज, व्यभिचार और शोषण के सभी रूप हरेक समाज के लिए घातक हैं। अगर पड़ौस में भी कोई अपने बच्चे की पिटाई कर रहा हो तो आस पास के लोग चीख़ पुकार सुनकर मामले को सुलझाने के लिए पहंुचते हैं। उन्हें सज्जन माना जाता है। उनसे कोई नही कहता कि आप दूसरे की चारदीवारी में आ कैसे गए ?<br />और यहां तो घर-परिवार दूसरा भी नहीं है बल्कि एक ही है। <br /><a href="http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html" rel="nofollow">http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html</a>DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-44678942531467232502011-01-14T12:59:36.829+05:302011-01-14T12:59:36.829+05:30yaani ab anavar jamaal ji, sare hinduon ko ved ke ...yaani ab anavar jamaal ji, sare hinduon ko ved ke bare men bataayege....pahale aap apne muslim bhaiyon ko to islam ka arth bataiye , aap apana ghar sudhariye, hindoo apana sudhar lenge...apako kast karane kee aavashayakata kyon hai..???? shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-4279277009139260092011-01-13T18:02:48.831+05:302011-01-13T18:02:48.831+05:30सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से...<b>सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से नहीं मिला करता</b><br />@ जनाबे आली डाक्टर साहब ! आपका दिमाग़ एक ख़ास माहौल में परवरिश पाने के कारण कंडीशन हो चुका है तभी आप यह भी नहीं देख पाए कि जो सवाल आप कर रहे हैं। उन सभी सवालों को विस्तार से या सूक्ष्म रूप में लिखा गया, तभी यह पोस्ट वजूद में आई है। <br /><br />अच्छा-बुरा और सही-ग़लत कौन जानता है ?<br />यह भी इसी पोस्ट में बताया गया है।<br />सही-ग़लत की परिभाषा क्या है ?<br />कौन सा काम सही है ? और कौन सा काम ग़लत है ? <br />कौन लोग सही बात को जानने वाले और उसके अनुसार व्यवहार करने वाले हुए हैं ?<br />जब सारे हिंदू भाई इन सवालों के जवाब मिलकर भी न बता पाएं। तब आपको बताएगा आपका यह भाई अनवर जमाल जो कि ग़ालिब के बुत के पास खड़ा हुआ नज़र आ रहा है। जन्नत की हक़ीक़त ग़ालिब भी जानते थे और अनवर जमाल भी जानता है। जो जन्नत की हक़ीक़त जानता है वह हरेक विचार और कर्म की परिणति भी जानता है क्योंकि उसके पास वह ‘ज्ञान‘ है जिसके लिए ‘ज्ञान‘ शब्द की उत्पत्ति हुई। <br />अपने दिल की तंगी और तास्सुब निकालकर जब आप एक मुसलमान को अपने ऊपर श्रेष्ठता देने के लिए तैयार हो जाएंगे तो आपको किसी के बताए बिना ख़ुद ब ख़ुद ‘ज्ञान का द्वार‘ नज़र आ जाएगा। आपके श्रेष्ठता देने से मुसलमान श्रेष्ठ नहीं हो जाएगा लेकिन आप के अंदर विनय का गुण ज़रूर पैदा हो जाएगा और जब तक वह गुण आपमें पैदा नहीं होगा तो आप अपना ‘वेद‘ भी न समझ पाएंगे और ‘वेद‘ शब्द का अर्थ भी ‘ज्ञान‘ ही होता है और याद रखिएगा कि दर्शन आप छः नहीं छः हज़ार बना लीजिए। ये सारे मिलकर भी एक वेद के बराबर न हो पाएंगे। वेद ही ज्ञान है। दर्शन ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान तक पहुंचने का एक माध्यम है। वेद सत्य है और दर्शन कल्पना है। सत्य आधार है और कल्पना मजबूरी। सत्य से मुक्ति है और कल्पना से बंधन। कल्पना सत्य भी हो सकती है और मिथ्या भी लेकिन सत्य कभी मिथ्या नहीं हो सकता। ईश्वर सत्य है और उस तक केवल सत्य के माध्यम से ही पहुंचना संभव है। <br />सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से नहीं मिला करता। इसे पाने की रीत कुछ और ही है। वह सरल है इसीलिए मनुष्य उसे मूल्यहीन समझता है और आत्मघात के रास्ते पर चलने वालों को श्रेष्ठ समझता है। दुनिया का दस्तूर उल्टा है । मालिक की कृपा हवा पानी और रौशनी के रूप में सब पर बरस रही है और उसके ज्ञान की भी लेकिन आदमी हवा पानी और रौशनी की तरह उसके ज्ञान से लाभ नहीं उठा रहा है मात्र अपने तास्सुब के कारण। <br />कोई किसी का क्या बिगाड़ रहा है ?<br />अपना ही बिगाड़ रहा है ।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-77133667339301108352011-01-11T10:55:49.875+05:302011-01-11T10:55:49.875+05:30जमाल साह्ब, प्रति-प्रश्न पूछने से पहले पूछे गये प्...जमाल साह्ब, प्रति-प्रश्न पूछने से पहले पूछे गये प्रश्नों के तो उत्तर दीजिये, हुज़ूर.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-82827989528945095412011-01-10T12:42:37.025+05:302011-01-10T12:42:37.025+05:30@ Dr. Shyam Gupta ji ! आप एक शरीफ आदमी मालूम होते ...@ Dr. Shyam Gupta ji ! आप एक शरीफ आदमी मालूम होते हैं क्योंकि आपने मेरे मंतव्य पर तो प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया ?<br /><br />आप मेरे तर्क को अधूरा कह रहे हैं ।<br /><br />हो सकता है यह सच हो तब आपको बताना चाहिए कि आपने अपने अध्ययन में किस विद्वान को तर्क में पूरा पाया है ? <br /><br />मेरी बात की जान आप आसानी से निकाल सकते हैं। अगर आप सही ग़लत की परिभाषा जानते हैं तो आप बताईये न ?<br /><br />मैं इंतजार कर रहा हूँ । आप बताते कुछ भी नहीं केवल वक्तव्य देते हैं । <br />मेरे तर्क को आप अधूरा कह रहे हैं यानि कि आप उसमें तर्क की उपस्थिति तो स्वीकार कर ही रहे हैं लेकिन आपके वक्तव्य में तो तर्क सिरे से ही नदारद है ।<br /><br />ख़ैर आप मुझे बताएं कि सही क्या है और ग़लत क्या ?<br />और सही ग़लत को पहचानने का तरीका क्या है ? <br />और उस तरीके पर चलने वाले कौन लोग हैं ? <br /><br />आपकी बात सही हुई तो मैं आपकी बात मानने में देर नहीं लगाऊंगा आपकी तरह ।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-85815193572266194192011-01-09T20:57:15.912+05:302011-01-09T20:57:15.912+05:30जमाल साहब, मै सदा ही यह कहता आया हूं कि आपके ख्याल...जमाल साहब, मै सदा ही यह कहता आया हूं कि आपके ख्याल व मन्तव्य अच्छे होते हुए भी कथन व तर्क अधूरे व एकान्गी( शायद वेस्टेड इन्टेरेस्ट वश )रहते हैं--यथा...<br /><br />१--हमारा समाज ग़ालिब के समय में भी बर्बाद था और आज भी बर्बाद है। ---अर्थात कभी ठीक नहीं था तो फ़िर सारी जद्दोज़हद क्यों, चलने दीजिये यूंही..<br />२---किसी हिंदी साहित्यकार के पास आज तक कोई पैमाना ऐसा न हुआ जिसके ज़रिये यह जानना मुमकिन होता कि कौन सा विचार लाभकारी है और कौन सा घातक ?....क्या हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषायी साहित्य्कारों पर है????<br />३--आप कैसे जान सकते हैं कि किस विचार और कर्म की अंतिम परिणति क्या होगी....तो विचार व कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है... <br />४--इसीलिए हिंदू भाई सही-ग़लत तो क्या बताएंगे बल्कि सारे मिलकर भी सही-ग़लत की परिभाषा तक नहीं बता सकते।.....तो कौन भाई बता सकता है स्पष्ट्करेंगे....<br />५--‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ : परिवार एक है तो उसका मीटर भी एक हो....क्या सारे परिवार में सबके साथ एक ही मीटर से व्यवहार होगा...सब धान बाइस पसेरी..फ़िर प्रगति कैसे होगी???? shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.com