tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post6291799325459986217..comments2023-10-29T18:16:26.466+05:30Comments on <center>Lucknow Bloggers' Association लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन</center>: Saleem Khanhttp://www.blogger.com/profile/17648419971993797862noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-86322837268248112062011-07-29T20:27:31.939+05:302011-07-29T20:27:31.939+05:30लोकपाल नहीं कबाडपाल बना मिलेगा।लोकपाल नहीं कबाडपाल बना मिलेगा।SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-52160488691003479192011-07-29T18:40:44.015+05:302011-07-29T18:40:44.015+05:30लोकपाल बिल के बारे में वाकई आम आदमी को इतने विस्ता...लोकपाल बिल के बारे में वाकई आम आदमी को इतने विस्तार से पता नहीं है और सिविल सोसायती ही उसका नेतृत्व कर रही है. आम मतदाता कितना जनता है राजनीति के पेंचों को? हमारे देश के लोकतंत्र के कर्णधार कौन है? हमारे गाँव वाले , श्रमिक, रिक्शे वाले और वह तबका जो अनपढ़ और घर के अन्दर रहने वाला है. क्या हाई सोसायती वाले मतदान के लिए आते हैं , बिल्कुल नहीं . उस दिन मिलें बंद नहीं रहती , कुछ घंटों कि छुट्टी दी जाती है . जो मतदान के लिए आता है वह लोकतंत्र और अपने अधिकारों से वाकिफ नहीं है. बस इतना चिल्ला सकता है कि सरकार मंहगाई बढाती चली जा रही है लेकिन एक बार बाजी उनके हाथ से निकाल चुकी है तो फिर उसे वह सब भुगतना है जो सरकार उसके मतदान के बदले उसको उपहार में दे रही है.<br /> संसद में कितने सांसद हैं जो अपनी स्वतन्त्र राय रखते हैं? कितने सांसद है जो पूरे सत्र के दौरान सिर्फ मेज थपथपाने के अतिरिक्त कुछ करते हों. कितने आपन निश्चित कार्यकाल में उपस्थित होते हैं? फिर राय किसकी जानेगे?<br /> आम मतदाता सिर्फ रोटी , कपड़ा और बच्चों कि पढ़ाई के लिए जूझ रहा है, अगर वह राजनीति पर चर्चा करने बैठ जाएगा तो फिर इसके लिए कब सोचेगा? हमारा लोकतंत्र बेमानी हो चुका है. वो संविधान जो गुलामी के हालातों में बना था उसको पुनर्संसोधनों कि नहीं पुनर्निर्माण कि जरूरत है. हालात बहुत बदल चुके हैं अब उसे भी बदलना होगा. कोई भी बिल सिर्फ सत्तारूढ़ दल के स्वार्थों के अनुरुप नहीं बल्कि देश के हितों के अनुरुप होना चाहिए और उसके पास होने से पूर्व उसकी रूपरेखा पर आम मतदाता को चर्चा का हक़ होना जरूरी है. संसद में बैठे प्रतिनिधि तो मुँह तक नहीं खोलना जानते हैं वे सिर्फ पार्टी के मुहरे बने हैं और जहाँ उन्हें उनके आका चल देते हैं वही बैठ जाते हैं.<br /> इस पर विचार आम आदमी न कर सके तो आप जैसे राजनीति शास्त्र के ज्ञाता बेहतर विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ी जो अभी मतदाता बनाने कि राह पर सही दिशा और सही स्वरूप से परिचय करा सकते हैं.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com