tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post9196037273251660783..comments2023-10-29T18:16:26.466+05:30Comments on <center>Lucknow Bloggers' Association लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन</center>: जिसका बदन जितना अधिक दिखेगा उसे लोग उतना ही सुंदर व सेक्सी कहेंगे!!! (मिथिलेश दुबे तुस्सी ग्रेट हो!!!)Saleem Khanhttp://www.blogger.com/profile/17648419971993797862noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-71375109350714441062010-03-11T09:46:01.637+05:302010-03-11T09:46:01.637+05:30इसके लिए नारी को अपनी किम्मेवारी स्वयम ही लेनी पड़े...इसके लिए नारी को अपनी किम्मेवारी स्वयम ही लेनी पड़ेगी,<br /><br />ये उसे ही सुनिश्चित करना है के वो वासना की देवी बनना चाहती है जो कि कुछ विक्षिप्त मानसिकता<br /><br />वाले लोग चाहते है या फिर वो भावनाओ कि देवी बनना चाहती है जो कि उसे होना ही चाहिए!असल में<br /><br />वो देवी तो है,बस खुद को थोडा गलत नजरिये से देखना उसने शुरू कर दिया है!<br /><br />इसमें कुछ हद तक पुरुष वर्ग का हाथ हो सकता है लेकिन निर्णय तो नारी का ही है कि <br /><br />वो क्या हो कर रहना चाह रही है!<br /><br /> कुंवर जी,kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-52868506394629674502010-03-10T13:45:40.494+05:302010-03-10T13:45:40.494+05:30nice postnice postकैरियर्स वर्ल्डhttps://www.blogger.com/profile/08776853808956745257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-554106341036687061.post-24078170363378026012010-03-10T12:03:18.668+05:302010-03-10T12:03:18.668+05:30हम उस लोकतांत्रिक देश के वासी हैं जहां किसी भी को ...हम उस लोकतांत्रिक देश के वासी हैं जहां किसी भी को अपनी बात कहने में किसी बैसाखी की जरूरत नहीं होनी चाहिए -आपने नारी की दुर्दशा के जो चित्र खींचे हैं और जो दुखद है की वास्तविक भी है के पीछे निहित निहित स्वार्थी पुरुष और नारी दोनों की ही भूमिका rahee है -बहुओं को जलाने में सासे भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती आयी हैं .दहेज़ न मिलने की ज्यादा प्रताड़ना औरते ही देती रही हैं -<br />नारी लिबास में जैवीय उद्दीपन कम से हो इसका ध्यान खुद नारियों को ही रखना ही चहिये -भारत में जहां यौन सम्बन्धों को लेकर वर्जनाएं तो कूट कूट कर भरी हुयी हैं मगर कपड़ो के भार से मुक्त होने की चाह भी है -ये दोनों विपरीत बाते हैं -यौनोन्मुक्त परिवेश के लिए वह परिधान तो चल जाएगा क्योकि वहां यौन सम्बन्ध सहज ही बन जाते हैं मगर हम कई विपरीत और विरोधी बातों को भी एक साथ कंधे पर लादे चलते रहने के लिए अभिशप्त हैं -भ्रमित थकित से हम यह सोच नहीं पाते की हमारे लिए कौन सा जीवन दर्शन श्रेयस्कर है -पश्चिम की चकाचौध और माल कल्चर हमें उकसाती और आकर्षित करती है मगर हमारा वर्जनाओं से घिरा मन एक जगह ठहर जाने को कह देता है वहां जहाँ ठहराव की संभावना ही नहीं रह जाती -<br />और फिर नैतिकता की दुहाईयाँ शुरू होती हैं ! नारी के वस्त्र ,पहनावे देश काल परिस्थति के अनुकूल होने ही चाहिए -यह उनके हित में ही हैं .मगर बार बार हम यह बात क्यूं सिखाते जा रहे हैं ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com