दर्द और पीड़ा मानव जीवन के अस्तित्व के लिए एक आवश्यक शर्त है| अगर हमारे शरीर और दिमाग में दर्द प्रणाली नहीं हो तो हम अधिक समय तक जीवित नहीं रह पायेंगे|
हमारे जीवन में अत्यधिक दर्द और पीड़ा की उपस्थिति दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्या उत्त्पन्न करती है| विचार करने की बात यह है कि यह संसार एक शक्तिशाली और हमारे प्यारे भगवान के नियन्त्रण में है तो इतना अधिक दर्द ,पीडा और मृत्यु के लिए इस संसार में स्थान क्यों है? विशेष रूप से जब कि संसार के सभी धर्म एक स्वर में इसे स्वीकार करते हैं कि दर्द,पीड़ा और मृत्यु सभी बाते भगवान के नियंत्रण में हैं |
दार्शनिक और धर्मशास्त्री इसे आध्यात्म की संज्ञा देते हैं| कई महान दार्शनिकों और विचारकों के मध्य इस विवादास्पद मुद्दे पर दुनिया भर में बहस हो चुकी है| आध्यात्म एक ऐसा सिद्दांत जो भगवान के प्रत्येक कार्य को जायज ठहराता है| सारे संसार की बुराइयों, दुखों, मनुष्यों में दर्द, पीड़ा और मृत्यु का दोष ईश्वर पर दिए जाने के बावजूद भी हम उसे प्यार करने वाला और सर्वशक्तिमान मानते हैं|
प्रश्न यह उत्त्पन्न होता है कि मनुष्य द्वारा मनुष्य कि हत्या तथा मनुष्य द्वारा मनुष्य को दर्द और पीड़ा प्रदान किये जाने को भगवान कि इच्छा या न्याय कैसे मान लिया जाये| कई दार्शनिकों और विचारकों का मानना है कि दुःख कि प्रवृति ही मानव व्यक्तित्व में सर्वोत्तम गुणों के विकास को भी उत्पन्न करने की भूमिका निभाती हैं| दर्द और पीड़ा के अभाव में मनुष्य के अनेक गुण जैसे प्रेम, करुणा, दया,उदारता,निस्वार्थता बड़े पैमाने में मनुष्य में विकसित नहीं हो सकती हैं| यह गुण मानव के अच्छे चरित्र को शक्ति देते हैं| मानव का दर्द परमेश्वर के अच्छे उदेश्य के लिए कार्य करता है| हमारे जीवन में दुखों का सामना करने के लिए बहुत से संत महात्माओ द्वारा यही तर्क प्रस्तुत किया जाता रहा है|
हालांकि चिकित्सा विज्ञान के आधार पर वैज्ञानिको ने दूसरे तर्क के अनुसार यह सिद्दान्त निर्धारित किया है कि मानव अस्तित्व के लिए दर्द और पीड़ा क्यों जरुरी हैं| जिसे चार्ल्स डार्विन के अनुसार विकास का सिद्दान्त बतलाया गया है| प्रकृति ने प्राकृतिक चयन को दर्द के सिद्दान्त पर आधारित तंत्र का चुनाव किया है| मातृत्व में प्रजनन के समय दर्द और पीड़ा ही मनुष्य को इस धरा पर लाने में सहायक होती है|
एक दिलचस्प बात पर ध्यान दें कि इस संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने दर्द किसे कहते हैं वो जानते ही नहीं हैं, कारण यह है कि उन्होंने दर्द को कभी महसूस ही नहीं किया है और इस कारण उनका जीवन काल आमतौर पर कम समय के लिए रहता है| इस दुर्लभ अनुवांशिक जन्मजात असामान्य बीमारी को “congenital insensitivity to pain with the unhidrosis’’(CIPA) कहते हैं| इस बीमारी में मरीज को दर्द कि संवेदना नहीं होती है| इस कारण इस रोग से प्रभावित दर्द क्या होता है यह समझ ही नहीं पाते हैं| इस बीमारी के कारण एक अनुवांशिक शारीरिक उत्परिवर्तन होता है जो तंत्रिका कोशिकाओं में किसी निर्माण तथा मस्तिष्क को शरीर के दर्द, गर्मी तथा सर्दी इत्यादि के संकेत नहीं भेजने के लिए जिम्मेदार होता है| जिस कारण इस रोग के रोगी विभिन्न प्रकार कि शारीरिक अक्षमता कि जटिलताओं का शिकार बन जाते हैं, क्योंकि दर्द महसूस न कर पाने की शारीरिक कमी के कारण बहुत सी अंदरूनी दर्दों को बतला नहीं पाते हैं| जैसे घुटनों की चोट, दांतों का दर्द ,आँखों की चोट इत्यादि| प्रकृति ने प्राकृतिक चयन के लिए दर्द की व्यवस्था पसंद की है और पीड़ा को झेलने की शक्ति जब तक हममें नहीं होगी, हम अधिक समय तक संघर्ष नहीं कर पायेंगे फलस्वरूप हमारा जीवनचक्र संक्षेपित हो जायेगा|
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