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शुक्रवार, सितंबर 15, 2023
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       आज  अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस(International day of democracy) है।  यह दिवस एक वैश्विक पालन ही है जो मौलिक मानव अधिकार, सुशासन एवं शांति  की आधारशिला के रूप में लोकतंत्र के महत्व को रेखांकित करता है।
      इस दिवस के अस्तित्व का श्रेय 'लोकतंत्र पर सार्वभौमिक  घोषणा' (Universal Declaration of Democracy) को जाता है जिसे 15 सितंबर 1997 को अंतर्- संसदीय संघ (IPU) द्वारा स्वीकार किया गया था जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें विभिन्न देसों की संसदों के प्रतिनिधि होते हैं। 
       8 नवंबर 2007  को IPU के सुझाव पर संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सर्वसम्मति से 'अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस'  15 सितंबर को मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया jजिसका शीर्षक था- " नये अथवा वर्तमान लोकतंत्रों को बढ़ावा देने और समेकित करने  के लिये सरकारों के प्रयासों  का संयुक्त राष्ट्र प्रणाली द्वारा समर्थन।"
       सर्वप्रथम  2008 में  'अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र  दिवस' को मनाया गया और तबसे  यह दिवस लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का एक वार्षिक अवसर बन गया। 
       अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2023 की थीम है  "Empowering the next generation"।  यह दिवस  मात्र औपचरिकता नहीं बल्कि एक आव्हान है  जो मानवाधिकारों की रक्षा, नागरिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और दुनिया भर में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में लोकतंत्र के महत्व को रेखांकित करता है। यह प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये आत्म- मूल्यांकन का भी दिवस है। 

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सोमवार, जून 20, 2022
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 सदोका सलिला 

ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ।
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।१।
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिली
कवि की डलिया में।२।
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।३।
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।४।
 ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पुजा माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय हो नीरव 
क्यों हो रहा शोर?५।
है चौकीदार
वफादार लेकिन
चोरियाँ होती रही।
लुटती रहीं
देश की तिजोरियाँ
जनता रोती रही।६।
गुलाबी हाथ
मृणाल अंगुलियाँ
कमल सा चेहरा।
गुलाब थामे
चम्पा सा बदन
सुंदरी या बगिया?७।
लिए उच्चार
पाँच, सात औ' सात
दो मर्तबा सदोका।
रूप सौंदर्य
क्षणिक, सदा रहे
प्रभाव सद्गुणों का।८।
सूरज बाँका
दीवाना है उषा का
मुट्ठी भर गुलाल
कपोलों पर
लगाया, मुस्कुराया
शोख उषा शर्माई।९।
आवारा मेघ
कर रहा था पीछा
देख अकेला दौड़ा
हाथ न आई
दामिनी ने गिराई
जमकर बिजली।१०।
हवलदार
पवन ने जैसे ही
फटकार लगाई।
बादल हुआ
झट नौ दो ग्यारह
धूप खिलखिलाई।११।
महकी कली
गुनगुनाते गीत
मँडराए भँवरे।
सगे किसके
आशिक हरजाई
बेईमान ठहरे।१२।
घर ना घाट
सन्यासी सा पलाश
ध्यानमग्न, एकाकी।
ध्यान भग्न
करना चाहे संध्या
दिखला अदा बाँकी।१३।
सतत बही
जो जलधार वह
सदा निर्मल रही।
ठहर गया
जो वह मैला हुआ
रहो चलते सदा।१४।
पंकज खिला
करता नहीं गिला
जन्म पंक में मिला।
पुरुषार्थ से
विश्व-वंद्य हुआ
देवों के सिर चढ़ा।१५।
खिलखिलाई 
इठलाई शर्माई 
सद्यस्नाता नवोढ़ा। 
चिलमन भी 
रूप देख बौराया 
दर्पण आहें भरे।१६। 
• 
लहराती है 
नागिन जैसी लट, 
भाल-गाल चूमती। 
बेला की गंध 
मदिर सूँघ-सूँघ 
बेड़नी सी नाचती।१७।
• 
क्षितिज पर 
मेघ घुमड़ आए 
वसुंधरा हर्षाई। 
पवन झूम 
बिजली संग नाचा, 
प्रणय पत्र बाँचा।१८। 
• 
लोकतंत्र में 
नेता करे सो न्याय 
अफसर का राज। 
गौरैयों ने 
राम का राज्य चाहा 
बाजों को चुन लिया।१९। 
• 
घर को लगी 
घर के चिराग से 
दिन दहाड़े आग। 
मंत्री का पूत 
किसानों को कुचले 
और छाती फुलाए। २०।
मेघ गरजे 
रिमझिम बरसे 
आसमान भी तर। 
धरती भीगी 
हवा में हवा हुआ 
दुपट्टा, गाल लाल ।२१। 
• 
निर्मल नीर 
गगन से भू पर 
आकर मैला हुआ। 
ज्यों कलियों का 
दामन भँवरों ने 
छूकर पंकिल किया।२२। 
• 
चुभ रही थी 
गर्मी में तीखी धूप 
जीव-जंतु परेशां। 
धरा झुलसी 
धन्य धरा धीरज  
बारिश आने तक।२३। 
• 
करते पहुनाई 
ढोल बजा दादुर 
पत्ते बजाते ताली। 
सौंधी महक 
माटी ने फैला दी 
झूम उठीं शाखाएँ।२४। 
• 
मेघ ठाकुर 
आसमानी ड्योढी में 
जमाए महफिल। 
दिखाए नृत्य 
कमर लचकाती 
बिजली बलखाती।२५। 
विमर्श
निर्बल नागरिकों के अधिकारों का हनन
लोकतंत्र में निर्बल नागरिकों की जीवन रक्षा का भर जिन पर है वे उसका जीना मुश्किल कर दें और जब कोई असामाजिक तत्व ऐसी स्थिति में उग्र हो जाए तो पूरे देश में हड़ताल कर असंख्य बेगुनाहों को मरने के लिए विवश कर दिया जाए।
शर्म आनी चाहिए कि बिना इलाज मरे मरीजों के कत्ल का मुकदमा आई एम् ए के
पदाधिकारियों पर क्यों नहीं चलाती सरकार?
आम मरीजोंजीवन रक्षा के लिए कोर्ट में जनहित याचिका क्यों नहीं लाई जाती ?
मरीजों के मरने के बाद भी जो अस्पताल इलाज के नाम पर लाखों का बिल बनाते हैं,
और लाश तक रोक लेते हैं उनके खिलाफ क्यों नहीं लाते पिटीशन?
दुर्घटना के बाद घायलों को बिना इलाज भगा देनेवाले डाक्टरों के खिलाफ क्यों नहीं
होती पिटीशन?
राजस्थान में डॉक्टर ने मरीज को अस्पताल में सबके साबके मारा, उसके खिलाफ
आई एम् ए ने क्या किया?
यही बदतमीजी वकील भी कर रहे हैं। एक वकील दूसरे वकील को मारे और पूरे देश में हड़ताल कर दो। न्याय की आस में घर, जमीन बेच चुके मुवक्किदिलाने ल की न्याय की चिंता नहीं है किसी वकील को।
आम आदमी को ब्लैक मेल कर रहे पत्रकारों के साथ पूरा मीडिया जुट जाता है।
कैसा लोकतंत्र बना रहे हैं हम। निर्बल और गरीब की जान बचानेवाला, न्याय
दिलाने वाला, उसकी आवाज उठाने वाला, उसके जीवन भर की कमाई देने का सपना दिखानेवाला सब संगठन बनाकर खड़े हैं। उन्हें समर्थन को संरक्षण चाहिए, और ये सब असहायकी जान लेते रहें उनके खिलाफ कुछ नहीं हो रहा।
शर्मनाक।
२०-६-२०१९
***
संस्मरण:
अपने आपमें छंद काव्य सलिल जी
- आभा सक्सेना, देहरादून
*
संजीव वर्मा सलिल एक ऐसा नाम जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है |उनकी प्रशंसा करना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा |उनसे मेरा परिचय मुख पोथी पर सन २०१४-१५ में हुआ |उसके बाद तो उनसे दूरभाष पर वार्तालाप का सिलसिला चल रहा है| सलिल जी स्वयं में ही एक पूरा छंद काव्य हैं| उन्होने किस विधा में नहीं लिखा हर विधा के वे ज्ञानी पंडित हैं उन के व्यक्तित्व में उनकी कवियित्री बुआ महादेवी वर्मा जी की साफ झलक दिखाई देती है |
सन २०१४, उस समय मैं नवगीत लिखने का प्रयास कर रही थी उस समय मुझे उन्हों ने ही नवगीत विधा की बारीकियाँ सिखाईं। मेरा नव गीत उनके कुछ सुझावों के बाद -
नव गीत
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
अलस्सुबह जा
सांझ ढले
घर को आते हो
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
.....आभा
आजकल वे सवैया छंद पर कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि
“सवैया आधुनिक हिंदी की शब्दावली के लिए पूरी तरह उपयुक्त छंद' है। यह भ्रांति है कि सरस सवैये केवल लोकभाषाओं लिखे जा सकते हैं। सत्य यह है कि सवैया वाचिक परंपरा से विकसित छंद है। लोकगायक प्रायः अशिक्षित या अल्प शिक्षित थे। उन्होंने लोकभाषा में सवैया रचे और उन्हें पढ़कर उन्हीं की शब्दावली हमें सहज लगती है। मैं सवैया कोष पर काम कर रहा हूँ। १६० प्रकार के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं। के सवैये बना चुका हूँ। सब आधुनिक हिंदी में हैं जिनमें वर्णिक व मात्रिक गणना व यति समान हैं”। वे कार्यशालाओं में निरंतर नए प्रयोग कर जिज्ञासुओं को छंदों की बारीकियाँ बताते हैं।
एक कथ्य चार छंद:
*
जनक छंद
फूल खिल रहे भले ही
गर्मी से पंजा लड़ा
पत्ते मुरझा रहे हैं।
*
माहिया
चाहे खिल फूल रहे
गर्मी से हारे
पत्ते कुम्हलाय हरे।
*
दोहा
फूल भले ही खिल रहे, गर्मी में भी मौन।
पत्ते मुरझा रहे हैं, राहत दे कब-कौन।।
*
सोरठा
गर्मी में रह मौन, फूल भले ही खिल रहे।
राहत दे कब-कौन, पत्ते मुरझा रहे हैं।।
रोला
गर्मी में रह मौन, फूल खिल रहे भले ही।
राहत कैसे मिलेगी, पत्ते मुरझा रहे हैं।।
*
सलिल जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। उनको देख कर लगता है कि उनका साहित्य के प्रति विशेष रूप से लगाव है इसीलिए उन्होंने अपना जीवन साहित्य के प्रति समर्पित कर दिया है |दोहा लिखना भी मैंने उनसे ही सीखा है। आजकल अपरिपक्व कवि अधकचरी रचनाओं पर भी कॉपी राइट की बात करते और चोरी होनी की आशंका जताकर अहं की पुष्टि करते रहते हैं जबकि सलिल जी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को निरंतर बिना किसी भय या दावेदारी एक नित्य प्रति परोसते रहते हैं। उनकी उदारता यह कि मुझे प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक दोहा मेरे नाम का प्रयोग करते हुए लिखा और कुझे बहुत पसंद आने पर मेरे नाम ही कर दिया।
आभामय दोहे नवल, आ भा करते बात।
आभा पा आभित सलिल, पंक्ति पंक्ति जज़्बात।।
इसे कहते हैं बड़प्पन | उनकी प्रतिभा दूर दूर तक देदीप्यमान है और रहेगी। बेहद आभार आपका।
ऐसे व्यक्तित्व को मेरा कोटिशः नमन भविष्य में उनकी साहित्यिक प्रगति और अच्छे स्वास्थ्य एवं शतायु की कामना करते हुए .....
आभा सक्सेना 'दूनवी'
२०-६-२०१९, देहरादून
***
ॐ सरस्वत्यै नम: ॐ
शारद वंदना
लाक्षणिक जातीय पद्मावती/कमलावती छंद
*
शारद छवि प्यारी, सबसे न्यारी, वेद-पुराण सुयश गाएँ।
कर लिए सुमिरनी, नाद जननि जी, जप ऋषि सुर नर तर जाएँ।।
माँ मोरवाहिनी!, राग-रागिनी नाद अनाहद गुंजाएँ।
सुर सरगमदात्री, छंद विधात्री, चरण - शरण दे मुसकाएँ।।
हे अक्षरमाता! शब्द प्रदाता! पटल लेखनी लिपि वासी।
अंजन जल स्याही, वाक् प्रवाही, रस-धुन-लय चारण दासी।।
हो ॐ व्योम माँ, श्वास-सोम माँ, जिह्वा पर आसीन रहें।
नित नेह नर्मदा, कहे शुभ सदा, सलिल लहर सम सदा बहें।।
कवि काव्य कामिनी, छंद दामिनी, भजन-कीर्तन यश गाए।
कर दया निहारो, माँ उपकारो, कवि कुल सारा तर जाए।।
*
२०-६-२०२०
***
व्यंग्य गीत:

अभिनंदन
लो
*
युग-कवयित्री!
अभिनंदन
लो....
*
सब जग अपना, कुछ न पराया
शुभ सिद्धांत तुम्हें यह भाया.
गैर नहीं कुछ भी है जग में-
'विश्व एक' अपना सरमाया.
जहाँ मिले झट झपट वहीं से
अपने माथे यश-चंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
मेरा-तेरा मिथ्या माया
दास कबीरा ने बतलाया.
भुला परायेपन को तुमने
गैर लिखे को कंठ बसाया.
पर उपकारी अन्य न तुमसा
जहाँ रुचे कविता कुंदन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
हिमगिरी-जय सा किया यत्न है
तुम सी प्रतिभा काव्य रत्न है.
चोरी-डाका-लूट कहे जग
निशा तस्करी मुदित-मग्न है.
अग्र वाल पर रचना मेरी
तेरी हुई, महान लग्न है.
तुमने कवि को धन्य किया है
खुद का खुद कर मूल्यांकन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
कवि का क्या? 'बेचैन' बहुत वह
तुमने चैन गले में धारी.
'कुँवर' पंक्ति में खड़ा रहे पर
हो न सके सत्ता अधिकारी.
करी कृपा उसकी रचना ले
नभ-वाणी पर पढ़कर धन लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
*
तुम जग-जननी, कविता तनया
जब जी चाहा कर ली मृगया.
किसकी है औकात रोक ले-
हो स्वतंत्र तुम सचमुच अभया.
दुस्साहस प्रति जग नतमस्तक
'छद्म-रत्न' हो, अलंकरण लो
युग-कवयित्री
अभिनंदन
लो....
***
टीप: श्रेष्ठ कवि की रचना को अपनी बताकर २३-५-२०१८ को प्रात: ६.४० बजे काव्य धारा कार्यक्रम में आकाशवाणी पर प्रस्तुत कर धनार्जन का अद्भुत पराक्रम करने के उपलक्ष्य में यह रचना समर्पित उसे ही जो इसका सुपात्र है।
***
स्मृति गीत:
*
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे. यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
लेपहचान गैर-अपनों को-कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अबन गोद में बिठलाते हैं.हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं हर दिन पिता याद आते हैं...
२०-६-२०१०
***
***
लघु कथा
राष्ट्रीय एकता
*
'माँ! दो भारतीयों के तीन मत क्यों होते हैं?'
''क्यों क्या हुआ?''
'संसद और विधायिकाओं में जितने जन प्रतिनिधि होते हैं उनसे अधिक मत व्यक्त किये जाते हैं.'
''बेटा! वे अलग-अलग दलों के होते हैं न.''
'अच्छा, फिर दूरदर्शनी परिचर्चाओं में किसी बात पर सहमति क्यों नहीं बनती?'
''वहाँ बैठे वक्ता अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं न?''
'वे किसी और बात पर नहीं तो असहमत होने के लिये ही सहमत हो जाएँ।
''ऐसा नहीं है कि भारतीय कभी सहमत ही नहीं होते।''
'मुझे तो भारतीय कभी सहमत होते नहीं दीखते। भाषा, भूषा, धर्म, प्रांत, दल, नीति, कर, शिक्षा यहाँ तक कि पानी पर भी विवाद करते हैं।'
''लेकिन जन प्रतिनिधियों की भत्ता वृद्धि, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने, व्यापारियों के कर घटाने, विद्यार्थियों के कक्षा से भागने, पंडितों के चढोत्री माँगने, समाचारों को सनसनीखेज बनाकर दिखाने, नृत्य के नाम पर काम से काम कपड़ों में फूहड़ उछल-कूद दिखाने और कमजोरों के शोषण पर कोई मतभेद देखा तुमने? भारतीय पक्के राष्ट्रवादी और आस्तिक हैं, अन्नदेवता के सच्चे पुजारी, छप्पन भोग की परंपरा का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मद्रास का इडली-डोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, गुजरात का पोहा, बंगाल का रसगुल्ला और मध्यप्रदेश की जलेबी खिलाकर देखो, पूरा देश एक नज़र आयेगा।''
और बेटा निरुत्तर हो गया...
*
***
पैरोडी
*
प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता
हम हारे, तुम भए विजेता।।
प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी
हमें यातना-पीर घनेरी ।।
प्रभु जी! तुम घपला-घोटाला
हमखों मुस्किल भयो निवाला।।
प्रभु जी! तुम छत्तीसी छाती
तुम दुलहा, हम महज घराती।।
प्रभु जी! तुम जुमला हम ताली
भरी तिजोरी, जेबें खाली।।
प्रभु जी! हाथी, हँसिया, पंजा
कंघी बाँटें, कर खें गंजा।।
प्रभु जी! भोग और हम अनशन
लेंय खनाखन, देंय दनादन।।
प्रभु जी! मधुवन, हम तरु सूखा
तुम हलुआ, हम रोटा रूखा।।
प्रभु जी! वक्ता, हम हैं श्रोता
कटे सुपारी, काट सरोता।।
(रैदास से क्षमा प्रार्थना सहित)
***
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस, उन्नाव-कानपूर

***
दोहा सलिला
*
जूही-चमेली देखकर, हुआ मोगरा मस्त
सदा सुहागिन ने बिगड़, किया हौसला पस्त
*
नैन मटक्का कर रहे, महुआ-सरसों झूम
बरगद बब्बा खाँसते। क्यों? किसको मालूम?
*
अमलतास ने झूमकर, किया प्रेम-संकेत
नीम षोडशी लजाई, महका पनघट-खेत
*
अमरबेल के मोह में, फँसकर सूखे आम
कहे वंशलोचन सम्हल, हो न विधाता वाम
*
शेफाली के हाथ पर, नाम लिखा कचनार
सुर्ख हिना के भेद ने, खोदे भेद हजार
*
गुलबकावली ने किया, इन्तिज़ार हर शाम
अमन-चैन कर दिया है,पारिजात के नाम
*
गौरा हेरें आम को, बौरा हुईं उदास
मिले निकट आ क्यों नहीं, बौरा रहे उदास?
*
बौरा कर हो गया है, आम आम से ख़ास
बौरा बौराये, करे दुनिया नहक हास
***
२०-६-२०१६
lnct jabalpur
***
विमर्श
शिवलिंग और शालिग्राम
*
लोकोक्ति है 'कंकर मन शंकर' तथा 'कण-कण में भगवान'।
सनातन धर्मानुसार श्रुति के जन्मदाता ब्रह्मा, पालक विष्णु और विनाशक महेश हैं।
अपने भाव-गुणों के द्वारा त्रिदेव स्थूल रूप में प्रकृति में अन्तर्निहित हैं। यह भी की हर जीव में त्रिदेवों की उपस्थिति त्रिगुण (सत,रज,तम) के रूप में हैं। श्वेताश्वतर उपनिषद अध्याय ४ मंत्र ५ में ऋषि कहते हैं-
एक जन्म देता अनेक को
रक्त, श्वेत अरु श्याम त्रैगुणी।
अग्यासनी, आसक्त भोगता,
ग्यानी प्रकृति को तज देता।
त्रिदेव वास्तव में निराकार हैं कइँती जनसामान्य को उनकी प्रतीति करने के उद्देश्य से उन्हें साकार रूप में भगवान ब्रह्मा को शंख (सरस्वती ध्वनि रूप में), भगवान विष्णु को शालिग्राम () तथा शिव को शिवलिंग और जिलहरी (पार्वती) रूप में पूजा गया है। सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप शंख के मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है।
मूलत: सनातन धर्म में मूर्ति-पूजा मान्य न होने पर भी शालिग्राम और शिवलिंग को विग्रह रूप में मान्य हैं।
शालिग्राम का मंदिर :
शालिग्राम का एकमात्र प्रसिद्ध मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल में है। यह वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। दुर्गम मुक्तिनाथ की की कृपा से सब कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से पोखरा जाना होता है। पोखरा से जोमसोम जाकर २०० किलोमीटर दूर मुक्तिनाथ जाने के लिए बस, हेलिकॉप्टर या फ्लाइट ले सकते हैं।
शालिग्राम
दुर्लभ शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम दुर्लभ हैं। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।
शालिग्राम के प्रकार : विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। गोल शालिग्राम विष्णु का गोपाल रूप है। मछली के आकार का शालिग्राम श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। कछुए के आकार का शालिग्राम भगवान के कच्छप (कूर्म) अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरे चक्र और रेखाएं विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। लगभग ३३ प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से २४ प्रकार विष्णु के २४ अवतारों तथा वर्ष के २४ एकादशी व्रतों से संबंधित हैं।
शालिग्राम की पूजा :
* घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।
* विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
* शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखें।
* प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराएँ।
* जहाँ शालिग्राम-पूजन होता है, वहाँ लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।
* नियमितशालिग्राम पूजन से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
* शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शिवलिंग :
शिवलिंग
भगवान शिव का जीवंत विग्रह तथा जलहरी को माँ पार्वती हैं। 'ॐ नम: शिवाय' पंचाक्षरी मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक कर महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्त्रोत का पाठ करें। रुद्राभिषेक किसी पुजारी से सम्पन्न कराएँ।
शिवलिंग पूजा के नियम :
* शिवलिंग को पंचांमृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएँ।
* शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएँ, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।
* शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएँ।
* केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढ़ाएँ। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएँ।
* कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।
* शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
* शिवलिंग नहीं शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
* शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है
शिवलिंग का अर्थ : शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि।
शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर १७ तत्वों से बना है - मन, बुद्धि, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और पाँच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं बिंदु रूप हैं।
ब्रह्माण्ड का प्रतीक : शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान : भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी।
आकाशीय पिंड : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्त्राब्दि पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहाँ-जहाँ ये पिंड गिरे, वहाँ-वहाँ इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे १०८ ज्योतिर्लिंग।
संग-ए-असवद : शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड धरती पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद (मक्केश्वर महादेव) भी आकाश से गिरा था।
***
स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे.
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर
दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड़, डाँट, झिड़की, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
२०-६-२०१०
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गुरुवार, अप्रैल 21, 2022
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                दिनों बाद !

कैसे हो तुम ? पूछा था तुमने

जब ,बरसों बाद अबोला,

खत्म हुआ था अपना !

बात का सिरा पकड़ने की 

कोशिश में लगा रहा था

मैं !

तभी ,दूसरा प्रश्न


कोई साथी मिला ?

क्या कहता मै ,

तुम्हारे बाद, कामना ही 

कहां रही थी !

कैसे करे दिन अपने ,

तुम्हारे प्रश्नों की बाढ़ !

क्या कहता,

गिनता रहा था बिन तुम्हारे ,

दिन ।

बुनता रहा था, यादों के काफिले ।

और अब 

बस, मकाम आते हैं,चले जाते हैं, जिंदगी के 

एहसास तले !






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सोमवार, सितंबर 06, 2021
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शिक्षक दिवस पर
मिथिलेश जी के लिए-
तुम्हें आकाश छूना है धरा पर पग जमा तो लो
उमगकर नर्मदा जैसे अमर कलकल सुना तो दो
बहुत सामर्थ्य है तुममें, न खुद को कम तनिक आँको
मिलेगा लक्ष्य कर संकल्प दृढ़ पग तुम बढ़ा तो दो
*
विनीता जी के लिए 
नहीं सीमा मिली आकाश की पग थक गए सारे
विनीता बुद्धि के संकल्प से कंटक सभी हारे
मिली श्री वास्तव में उसे जो नित साधना करता
स्वयं आकर सफलता खड़ी हो जाती विहँस द्वारे
*
अनिल जी के लिए 
बना रसायन रसायन, पाई कीर्ति दिगन्त
अनिल अनल सम प्रकाशित, प्रतिभा मिली अनंत
काव्य रसायन को करो, दिन दिन अधिक समृद्ध 
हिंदी में लिख शोध नव पाओ कीर्ति दिगंत
*
अर्चना जी के लिए 
कोकिलकंठी अर्चना, सुनें शारदा मात
मन ही मन मुस्का रहीं, दे खुशियाँ सौगात 
सप्तसुरी संसार में सतरंगा साफल्य
सदा द्वार पर हो खड़ा जैसे नवल प्रभात
*
मुकुल जी के लिए 
अधरों पर मुस्कान धरे, पिक वाणी ले पाथेय
विविध दिशाओं में ध्वज फहरे, सहज मिले हर ध्येय
सदय रहें हरिकृष्ण हमेशा, कीर्ति सूर्य अजिताभ 
जो चाहो पारंगत उसमें, रहे न कुछ अज्ञेय
*
आलोकरंजन जी के लिए 
भारती की आरती, उतारते रहें न भूल तारती है भक्ति, भाव सलिला नहाइए।
गद्य-पद्य लिखें नया, सत्य-तथ्य भी हो भरा, सत्य शिव सुंदर सृजन कर पाइए।।
रंजन आलोक करे, प्रतिभा के सूर्य का, पले हो पलामू में, ध्वजा फहराइए।
विश्ववाणी भारती हो, ठान लें अगर सभी, हिंदी ध्वज आन-बान-शान से फहराइए।।
*
संतोष जी के लिए 
स्नेह सहित वंदन अभिनंदन, माथे तिलक सुशोभित हो
पढ़ें काव्य कालिंदी हरि हरि भी, राधा उस पर मोहित हो
खुशियों की सौग़ात मिले नित, सौर सोरठा नित जन्मे-
ऊषा-संध्या करे आरती, गह संतोष विमोहित हो
*
शोभित जी के लिए 
इलैक्ट्रानिकी शीश के, बने रहो तुम ताज
हिंदी में तकनीक लिख, पाओ यश हृद-राज
तक्षशिला आचार्य सम, तक्षशिला में बैठ
पढ़ा यांत्रिकी गढ़ सको, शुभ भविष्य तुम आज
*
जयप्रकाश जी के लिए 
गीत गीत में प्रीत भर, जय प्रकाश की बोल
जयप्रकाश जी ने रचा, है साहित्य अमोल
कर अवगाहन धन्य हो, जाग्रत सकल समाज 
नवगीतों में रख दिया, अंतर्मन निज खोल
समय का सत्य कह दिया
गरल को अमिय कर दिया
*
मनोरमा सानिंध्य की भेंट अनूठी देख
चकित सलिल कर रहा है सुधियों का अभिलेख 
शिक्षा पा-दे सकूँ तो हो यह जीवन धन्य 
शिक्षक गरिमा अनूठी इस सी कहीं न अन्य

आसमान को नाप ले, पाखी निज पर तोल
हर उड़ान हो निरुपमा, बनें प्रेरणा बोल
कांता सम हितकारी
शक्तिमय युक्ति हमारी
*
पुनीता जी के लिए 
बच्चे सच्चे बन सकें, तुम सा शिक्षक देख
समय शिला पर लिख रहा  हर दिन यह अभिलेख 
पुनीता सलिला शिक्षा
गये जो माँगे न भिक्षा
*
गुरु दंपत्ति के लिए 
शिक्षक हो यदि गुरु सदृश, खिले मंजरी खूब 
शिष्य चमक अरविंद सम, पढ़े विषय को डूब
सफलता कदम चूमती
विहँस तकदीर झूमती
*
चातक जी के लिए 
गुरु रमेश तो आप हों, विधि शिव भी आ छात्र 
चातक सँग हर पल बने, स्वाति नित ही मात्र
भाग्य निर्माता अपना
हरेक पूरा हो सपना
*
निशि जी के लिए 
निशि वासर दें मुस्कुरा ज्ञान, न माँगे हार
शर्माकर बाधा पलट, आप मान ले हार
सीख ले अलंकार रस
छंद नव सीख; न कर बस
*
किरण जी
शिक्षक हो आशा किरण, पुष्पा सुषमा झूम
कोशिश करती अनवरत, सतत सफलता चूम
सँवारे अपनी किस्मत 
छात्र मत सारे हिम्मत
*
अर्चना जी
भीख न शिक्षक माँगता, रखता साथ रमेश
जोड़े हाथ कुबेर भी, उसके मौन हमेश
वास्तव में श्री पाता
ज्ञान दे बने विधाता
*
साधना जी
कभी न बोलें साध ना, करें साधना मौन
ज्ञान दान दें अनवरत, कभी न पूछें कौन?
प्रेरणा देती रहतीं
नर्मदा जैसे बहतीं
*
आदरणीया इला जी
सतत न शिक्षा मात्र दें, मौन दिखाएँ राह।
जो पा ले आशीष वह, पाए जग में वाह
सृजन हो नेक रीति का
घोष हो सदा कीर्ति का
*
आदरणीय सुरेश दादा
ज्ञान सिंधु सादे सरल, विनम्रता की मूर्ति
छात्रों को जो चाहिए, जब तब करते पूर्ति
खुशकिस्मत हम दरश पा
सिर पर आशिष परस पा
*
कलाकारों के लिए 
थामे जिसके हाथ, हस्तकला की अस्मिता
कला कहे युग सत्य, अनुकृति उसकी अर्जिता
श्वास हर संगीता हो
लक्ष्य हर हँस जीता हो
*
स्मृति शुक्ला
शब्द शब्द में अर्थ समाहित कर जो बोले
अमिय लुटाने ज्ञान कलश का ढक्कन खोले
शुक्ला स्मृतियाँ श्यामा यादों को  प्रकाश दे
सहज सरलता संजीवित कर  षडरस घोले
*
नीना उपाध्याय 
सहज वाग्मिता विषयों का विश्लेषण करती
सृजनधर्मिता आशय नवल प्रकाशित करती
उप अध्याय विशद हो नव अध्याय बनाते
श्रोता सुनते करतल ध्वनि से नभ गुंजाते
*
नीना उपाध्याय 
सहज वाग्मिता विषयों का विश्लेषण करती
सृजनधर्मिता आशय नवल प्रकाशित करती
उप अध्याय विशद हो नव अध्याय बनाते
श्रोता सुनते करतल ध्वनि से नभ गुंजाते
*
डॉक्टर अनामिका तिवारी
रामानुज तनया संगीत नृत्य पारंगत 
पादप विज्ञानी यश कीर्ति कमाई अक्षत
गद्य-पद्य लेखन में निपुण न कोई सानी
कृषि छात्रों को ज्ञान दान दे; हो चिर वंदित
*
प्रो संजय वर्मा
संजय! जय कर पराजय, पाओ विजय सदैव
अथक अनवरत सफलता तुम्हें सदा दें दैव
वर्मा रक्षक धर्म का, कर्म करे दिन-रात
मर्म समय का समझकर, तक को करे प्रभात
*
देवकांत मिश्र 
सत रज तम मिश्रित प्रकृति देव कांति के साथ 
सत शिव सुंदर हम रचें सतत नवाकर माथ
जो पाया वह बाँटकर हों संपन्न प्रसन्न 
सत चित आनंद पा सकें ईश कृपा आसन्न
*
छाया त्रिवेदी
बालारुण शत प्रकाशित, करते हैं आभार 
अँगुली थाम पथ दिखाकर, स्वप्न किया साकार
मन्वन्तर छाया गहे, तुहिना पाकर लाड़
जीवन पथ पर बढ़ करें, नमन करो स्वीकार
*
साधना उपाध्याय 
सरस्वती तनया विनत, प्रखर ज्योति आलोक
काम करे निष्काम रह, कंटक सके न रोक
कृष्णकांत कांता सुदृढ़, पग रख थामे हाथ 
कई पीढ़ियाँ गढ़ सकी, आलोकित कर लोक
हम सब चरणों में प्रणत
दो आशीष रहें प्रगत
*
वीणा तिवारी जी
शारद-रमा-उमा त्रयी, झलक आपमें व्याप्त
वीणा की झंकार सम, वाणी अनहद आप्त
रामचंद्र के दास की, पाई कृपा अशेष
श्याम हुए गुरुबंधु खुद, है संयोग विशेष
गीता अनुरागिनी नमन
किया सुवासित जग चमन
*
निशा तिवारी
ज्ञान गगन शिक्षा धरा, निशा सुदृढ़ है सेतु
तारे कोशिश सफलता चंद्र बना यश हेतु
शिक्षण लेखन प्रकाशन, तीनों साधे खूब
पढ़ बढ़ गढ़ पीढ़ी नई, गईं खुशी में डूब
*
महीयसी महादेवी जी
देवी त्रय साकार हो, बनें एक अवतार 
बंधु निराला शिव सदृश, दे नैकट्य दुलार
छायावादी मनीषा, गाँधीवादी नीत
आदर्शों की स्वामिनी, सत् से पाली प्रीत 
शुभाशीष पा सके हम, सचमुच है सौभाग्य 
कर्मव्रती हम सब बनें, फल से रखें न राग
*
अंबिकाप्रसाद 'दिव्य'
बापू के आदर्श से, जीवन सके सँवार
ऋषियों सम जीवन जिया, नित रच नव आचार
शिक्षा से आजीविका, हस्तकला से दाम
छात्र स्वनिर्भर हो सके, रहे नहीं बेकाम
महानात्मा शत वंदन
समर्पित श्रद्धा चंदन
*

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मंगलवार, अगस्त 24, 2021
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गीत
बेचता हूँ
संजीव
*
ले लो हुजूर मैं देश बेचता हूँ
जो शर्म बची है शेष बेचता हूँ
*
बोली बोलो बढ़-चढ़कर तुम यारों
मत झिझको-हिचको किंचित भी प्यारों
पंडे झंडे डंडे जो चाहो लो
मंदिर मस्जिद गिरिजा अरु गुरुद्वारों
ईमान धर्म अवशेष बेचता हूँ
ले लो हुजूर मैं देश बेचता हूँ
*

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शनिवार, जुलाई 10, 2021
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आँख की महिमा भारी
*
आँख खुली तो जनम हो गओ, आँख मुँदी तो मरन।
आँख मिली झुक उठ लड़ गई तो, आँख लग गई लगन।।
आँख दिखाई बैर पल गओ, आँख लाल की जलन।
आँख नटेरी, आँख फूट गई, कोऊ नें रै गओ स्वजन।।
आँख से करिए यारी
आँख की महिमा भारी
*
आँख बस गओ हाय रे, आँख खों अंजन घाईं।
आँख बचाकर आँख नें, करी आँख पहुनाई।।
आँख आँख बैरन भईं, फूटी आँख नें भाईं।
आँख कलेजो चीरकर, रो-रो आँख गँवाईं।।
आँख कर रई अय्यारी
आँख की महिमा भारी
*
आँख समा गओ आप तो, टँसुआ आँख बहाए।
आँख भई मीरा मगन, सूर स्याम पतियाए।।
आँख दिवानी राधिका, नैना स्याम बसाए।
आँख चार भईं, फेर लईं, आँधर राह दिखाए।।
आँख है तेज कटारी
आँख की महिमा भारी
*
संजीव 
९४२५१८३२४४
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शनिवार, जून 19, 2021
मिल्खा सिंह का निधन- एथलेटिक्स के एक युग का अंत

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            भारत के महान धावक एवं एथलेटिक्स में देश का गौरव बढ़ाने वाले पद्मश्री मिल्खा सिंह जी का गत दिवस (शुक्रवार )को निधन 91 वर्ष कीआयु में निधन हो गया. वे कोरोना संक्रमण से ग्रसित थे.
            मिल्खा सिंह जी का जन्म 20 नवंबर 1929 को अविभाजित भारत के गोविंदपुरा में  एक किसान परिवार में हुआ था. वे अपने माता पिता की  15 संतानों में से एक थे. विभाजन की त्रासदी  के दौरान उनके माता-पिता  एवं आठ भाई-बहन मारे गए. इस  भयावह हादसे  के बाद मिल्खा सिंह पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर किसी तरह दिल्ली पहुंचे.
           मिल्खा सिंह जी ने देश के  विभाजन के बाद दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने दुखदायी दिनों को याद करते हुए एक बार कहा था, '"जब पेट खाली हो तो देश के बारे में कोई कैसे सोच सकता है? जब मुझे रोटी मिली तो मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया." इन विषम परिस्थितियों से उत्पन्न आक्रोश ने उन्हें आखिरकार असाधारण लक्ष्य तक  पहुॅंचा दिया. उन्होंने कहा था, 'जब आपके माता-पिता को आपकी आंखों के सामने मार दिया गया हो तो क्या आप कभी भूल पाएंगे... कभी नहीं.'
             मिल्खा सिंह 'फ्लाइंग सिख' के नाम से जाने जाते थे.  2016 में 'इंडिया टुडे' को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इसके पीछे की घटना बतायी ," 1960 में उनको पाकिस्तान की "इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता' में भाग लेने का आमंत्रण मिला था. पर देश के विभाजन की त्रासदी के अपने दुःखद अनुभव को  भुला नहीं पा रहे थे, और पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जब यह बात पता चली तो उन्होंने मिल्खा सिंह को समझाया.  तब वे पाकिस्तान जाने के लिए राजी हुए.
             पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक की तूती बोलती  थी जो वहाँ  के वह सबसे तेज धावक थे. प्रतियोगिता के दौरान लगभग 60000 पाकिस्तानी फैन्स अब्दुल खालिक का जोश बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा सिंह की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए थे.  
              इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' का नाम  से संबोधित किया और वे इस नाम से जाने जाने लग."
               मिल्खा सिंह चार बार  एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता रहे. उन्होंने 1958 के  'कामनवैल्थ गेम्स' में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया था.  1959 में उन्हें खेलों में योगदान के लिये देश के महान सम्मान 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया. उन्होंने 1956, 1960   एवं1964  के ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. यद्यपि उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन  1960 के 'रोम ओलंपिक' में था, जिसमें वे 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे.
            'राष्ट्रमंडलीय  और एशियाई खेलों' के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा सिंह के नाम 400 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड 38 साल तक रहा.
             मिल्खा सिंह जी के महाप्रयाण के साथ एथलीट के एक युग का अवसान हो गया. वे ऐसे व्यक्तित्व थे जिनका देशवासियों जिनका  के ह्रदय में विशेष सम्मान था.  देश के ऐसे महान रत्न को विनम्र श्रद्धांजलि.
                               🙏🙏🙏

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सोमवार, जून 07, 2021
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एक रचना-
*
शिव-राज में
शव-राज की
जयकार कीजिए.
*
मर्ज कर्ज का बढ़ाकर
करें नहीं उपचार.
उत्पादक को भिखारी
बना करें सत्कार.
गोली मारें फिर कहें
अन्यों का है काम.
लोकतंत्र का हो रहा
पल-पल काम तमाम.
दे सर्प-दंश
रोग का
उपचार कीजिए.
शिव-राज में
शव-राज की
जयकार कीजिए.
*
व्यापम हुआ गवाह रहे
हैं नहीं बाकी.
सत्ता-सुरा सुरूर चढ़ा,
गुंडई साकी.
खाकी बनी चेरी कुचलती
आम जन को नित्य.
झूठ को जनप्रतिनिधि ही
कह रहे हैं सत्य.
बाजीगरी ही
आंकड़ों की
आप कीजिए.
शिव-राज में
शव-राज की
जयकार कीजिए.
*
कर-वृद्धि से टूटी कमर
कर न सके कर.
बैंकों की दे उधार,गड़ी
जमीन पे नजर.
पैदा करो, न दाम पा
सूली पे जा चढ़ो.
माला खरीदो, चित्र अपना
आप ही मढ़ो.
टूटे न नींद,
हो न खलल
ज़हर पीजिए.
शिव-राज में
शव-राज की
जयकार कीजिए.
****
७-६-२०१७
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पुस्तक सलिला
'सही के हीरो' साधारण लोगों की असाधारणता की मार्मिक कहानियाँ
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण- सही के हीरो, कहानी संग्रह, ISBN 9789385524400, डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, प्रथम संस्करण २०१६, आकार २१.५ से.मी. x १३.५ से.मी., आवरण पेपर बैंक बहुरंगी, कहानीकार संपर्क- डी ७ जसूजा सिटी, जबलपुर ४८२००३]
*
मनुष्य में अनुभव किये हुए को कहने की अदम्य इच्छा वाक् क्षमता के रूप में विकसित हुई। अस्पष्ट स्फुट ध्वनियाँ क्रमशः सार्थक संवादों के रूप में आईं तो लयबद्ध कहन कविता के रूप में और क्रमबद्ध कथन कहानी के रूप में विकसित हुए। कहानी, कथा, किस्सा, गल्प, गप्प और चुटकुले विषयवस्तु के आकार और कथ्य के अनुरूप प्रकाश में आये। गद्य में निबन्ध, संस्मरण, यात्रावृत्त, व्यंग्य लेख, आत्मकथा, समीक्षा आदि विधाओं का विकास होने के बाद भी कहानी की लोकप्रियता सर्वकालों में सर्वाधिक थी, है और रहेगी। कहानी वह जो कही जाए, अर्थात उसमें कहे जाने और सुने जाने योग्य तत्व हों। वर्तमान पूँजीवादी राजनीति-प्रधान व्यक्तिपरक जीवन शैली में साहित्य संसाधनों और पहुँच के सफे पर हाशिये में रखे जा रहे जीवट और संघर्ष को पुनर्जीवन दे रहा है।
स्वतंत्रता के पश्चात अहिंसा की माला जपते दल विशेष ने सत्ता पर और हिंसा पर भरोसा करनेवाले अन्य दल विशेष ने शिक्षा संस्थानों और साहित्यिक अकादमियों पर कब्ज़ा कर साहित्यिक विधाओं में वैषम्य और विसंगतियों के अतिरेकी चित्रण को सामने लाकर सामाजिक संघर्ष को तेज करनेवाले साहित्य और साहित्यकारों को पुरस्कृत किया। फलतः, आम आदमी के नाम पर स्त्री-पुरुष, संपन्न-विपन्न, नेता-जनता, श्रमिक-उद्योगपति, छात्र-शिक्षक, हिन्दू-मुस्लिम आदि के नाम पर टकराव ने सद्भाव, सहयोग, सहकार, विश्वास, निष्ठा आदि को अप्रासंगिक बनने का काम किया। इस पृष्ठभूमि में अत्यन्त अल्प संसाधनों और पिछड़े क्षेत्र से संघर्ष कर स्वयं को विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में स्थापित कर, अपने मरीजों के इलाज के साथ-साथ उनके जीवन-संघर्ष को पहचान कर मानसिक संबल देनेवाले डॉ. अव्यक्त अग्रवाल ने निर्बल का बल बनने के अपने महाभियान में विवेच्य कहानी संग्रह के माध्यम से पाठकों को भी सहभागी बनने का अवसर दिया है।
इस कहानी संग्रह के अधिकांश पात्र निम्न जीवन स्तर और विपन्नता की मेंड़ पर लगातार चुभ रहे काँटों के बीच पैर रखते हुए आगे बढ़ते हैं। नियति ने भले ही इन्हें मरने के लिए पैदा किया हो पर अपनी जिजीविषा के सहारे ये मौत के अनुकूल परिस्थितियों से जूझकर जीवन का राजमार्ग तलाश पाते हैं। साहित्य के प्रभाव, उपयोगिता और पठनीयता पर प्रश्न उठानेवाले इस संग्रह को पढ़ें तो उनके जीवन की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता का वरण कर सकेगी। परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फँसकर लहूलुहान होते हुए भी ऊपर उठने और आगे बढ़ने को प्रेरित करते इस कथा-संग्रह में कथाकार शिल्प पर कथ्य को वरीयता देता है। कहानी के पात्र पारिस्थितिक वैषम्य और विसंगति के हलाहल को कंठ में धारकर अपने सपने पूरे होते देखने का अमृत पान करते हुए कहीं काल्पनिक प्रतीत नहीं होते। ये कहानियाँ वास्तव में कल से प्राप्त विरासत को आज सँवार-सुधार कर कल को उज्जवल थाती देने का सारस्वत अनुष्ठान हैं।
'सही के हीरो' शीर्षक और मुखपृष्ठ पर अंकित देबाशीष साहा द्वारा निर्मित चित्र ही यह बता देता कि आम आदमियों के बीच में से उभरते हुए चरित नायक अपनी भाषा, भूषा, सोच और संघर्ष के साथ पाठक से रू-ब-रू होंगे। मर्मस्पर्शी कहानियाँ तथा प्रेरक कहानियाँ और संस्मरण दो भागों में क्रमशः १० + १८ कुल २८ हैं। संस्मरणात्मक कहानियाँ, पाठक को देखकर भी अनदेखे किये जाते पलों और व्यक्तियों से आँखें मिलाने का सुअवसर उपलब्ध कराते हैं। पात्रों और परिवेश के अनुकूल शब्द-चयन और वाक्य-संरचना कथानक को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। अंतर्जाल पर सर्वाधिक बिकनेवाले संग्रहों में सम्मिलित इस कृति की प्रथम कहानी 'लाइफगार्ड' के नायक एक बेसहारा बच्चे विक्टर को फ्रांसिस पालता है, युवा विक्टर अन्य बेसहारा बच्चे एडम को अपना लेता है और उसे विमाता से बचाने के लिए अपनी प्रेमिका से विवाह करने से कतराता है। डूबते फ्रांसिस को बचाते हुए मौत के कगार पर पहुँचे विक्टर की चिकित्सा अवधि के मध्य विक्टर की प्राणरक्षा की दुआ माँगते एडम और मारिया
एक दूसरे केइतने निकट आ जाते हैं कि नन्हा एडम विक्टर से मारिया मम्मी की माँग कर उसे नया जीवन देता है।
कहानी 'चने के दाने' एक न हो सके किशोर प्रेमियों के पुनर्मिलन की मर्मस्पर्शी गाथा है। कठोर ह्रदय पाठकों की भी ऑंखें नम कर सकने में समर्थ 'आधी परी' तथाकथित समझदारों द्वारा स्नेह-प्रेम की आड़ में अल्पविकसित का शोषण करने पर आधारित है। तरुणी प्रीति के बहाने जीवनसाथी चुनते समय स्वस्थ्य - समझ का संदेश देती है 'पासवर्ड' कहानी। 'एक अलग प्रेम कहानी' साधनहीन ग्रामीण दंपति के एकांतिक प्रेम के समान्तर चिकित्सक-रोगी के बीच महीन विश्वास तन्तु के टूटने तथा बढ़ते व्यवसायीकरण को इंगित करती व्यथा-कथा है। पारिवारिक रिश्तों के बिखरने पर केंद्रित चलचित्र 'बावर्ची' में नायक घरेलू नौकर बनकर परिवार के सदस्यों के बीच मरते स्नेह बंधन को जीवित करता है। कहानी जादूगर में नायिका के कैशोर्य काल का प्रेमी जो अब मनोचिकित्सक है, नायिका में उसके पति के प्रति घटते प्रेम को पुनर्जीवित करता है। 'बहुरुपिया' में साधनहीन भाई-बहिन का निर्मल प्रेम, 'आइसक्रीम कैंडी' में राजनेताओं के कारण आहत होते आमजन, 'ज़िंदगी एक स्टेशन' में बदलते सामाजिक ढाँचे के कारण स्थापित व्यवसायों के अलाभप्रद होने की समस्या और समाधान तथा 'मेरा चैंपियन' में पिता के सपने को पूरा करते पुत्र की कहानी है।
दूसरे भाग में 'सही का हीरो' एक साधनहीन किन्तु अपने सपने साकार करने के प्रति आत्मविश्वास से भरे बच्चे की कथा है। 'गूगल' किसी घटना को देखने के दो भिन्न दृष्टिकोण, 'मैं ठीक हूँ' मौत के मुख से लौटी नन्हीं बच्ची द्वारा जीवन की हर साँस का आनंद लेने की सीख, 'दुश्वारियाँ एक अवसर' अपंग बच्चे के संकल्प और सफलता, 'सफलता मंत्र' जीवन का आनंद लेने, 'मेरी पचमढ़ी और मैं' संस्मरण, 'आसान है' में सच को स्वीकार कर औरों को ख़ुशी देने, 'उमैया एक तमाशा' विपन्न बच्चों में छिपी प्रतिभा, 'एक और सुबह' बचपन की यादों, 'फाँस' जीवनानंद की खोज, 'लोकप्रियता का रहस्य' अपनी क्षमताओं की पहचान, 'वो अधूरी कहानी' जीवन के उद्देश्य की पहचान, 'सफलता सबसे शक्तिशाली मंत्र ' निज सामर्थ्य से साक्षात्, 'स्वतः प्रेरणा' मन की आवाज़ सुनने, 'हम सब रौशनी पुंज' निराशा में आशा, 'हवा का झौंका समीर' में बेसहारा बच्चों के लालन-पालन तथा 'ज़िन्दगी एक चैस बोर्ड' में अपने उद्देश्य की तलाश को केंद्र में रखकर कथा का ताना-बाना बुना गया है।
'सही का हीरो' कहानी संग्रह की विशेषता इसमें साधारणता का होना है। अधिकांश कहानियाँ जीवन में घटी वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं। यथार्थ को कल्पना का आवरण पहनाते समय यह ध्यान रखा गया है कि मूल घटना और पात्रों की विश्वसनीयता, उपयोगिता और सन्देशवाहकता बनी रहे। अधिकांश घटनाएँ और पात्र पाठक के इर्द-गिर्द से ही उठाये गए हैं किन्तु उन्हें देखने की दृष्टि, उनके मूल्याङ्कन का नज़रिया और उसने सीख लेने का हौसला बिलकुल नया है। इन कहानियों में अभाव-उपेक्षा, टकराव-बिखराव, सपने-नपने, गिराव-उठाव, निराशा-आशा, अवनति-उन्नति, विफलता-सफलता, नासमझी और समझदारी अर्थात जीवन रूपी इंद्रधनुष का हर रंग अपनी चमक और चटख के साथ उपस्थित है। नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय, पाठक को लड़ने, बदलने और जीतने का सन्देश देती है। शिल्प की दृष्टि से ये रचनाएँ कहानी, लघुकथा, संस्मरण, शब्द चित्र आदि विधाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
डॉ. अव्यक्त अग्रवाल की भाषा सहज, सरस, सुगम, विषय, पात्र और परिवेश के अनुकूल है। किसी पहाड़ी से नि:सृत निर्झर की तरह अनगढ़पने में देने की आकुलता, नया ग्रहण करने की आतुरता और सबको अपना लेने की उत्सुकता पात्रों को जीवंत और प्रेरणादायी बनाती है। अव्यक्त जी खुद घटना को व्यक्त नहीं करते, वे पात्र या घटना को सामने आने देते हैं। कम से कम में अधिक से अधिक कहने का कौशल सहज नहीं होता किन्तु अव्यक्त जी इसे कुशलतापूर्वक साध सके हैं। वे पात्र के मुँह में शब्द ठूँसने या कहलाने का कोई प्रयास नहीं करते। उनके पात्र न तो भदेसी होने का दिखावा करते हैं, न सुसंस्कृत होने का पाखण्ड। कथ्य संक्षिप्त - गठा हुआ, संवाद सारगर्भित, भाषा शैली सहज - प्रचलित, शब्द चयन सम्यक - उपयुक्त, मुहावरों का यथोचित प्रयोग, हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन के अनुसार प्रयोग पाठक को बाँधता है। इस उद्देश्यपूर्ण कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्य में शुमार होना आश्वस्त करता है कि हिंदी तथा साहित्य के प्रेमी पाठकों का अभाव नहीं है। सही के हीरो' ही देश और समाज का गौरव बढ़ाकर मानवता को परिपुष्ट करते हैं। अव्यक्त जी को इस कृति हेतु बधाई। उनकी आगामी कृति की प्रतीक्षा होना स्वाभाविक है।
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-२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४
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मुक्तक
नेह नर्मदा में अवगाहो, तन-मन निर्मल हो जाएगा।
रोम-रोम पुलकित होगा प्रिय!, अपनेपन की जय गाएगा।।
हर अभिलाषा क्षिप्रा होगी, कुंभ लगेगा संकल्पों का,
कोशिश का जनगण तट आकर, फल पा-देकर तर जाएगा।।
७-६-२०१६
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नवगीत गोल क्यों? नवगीत घोंसले में नवगीत छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत जगो सूर्य आता है नवगीत त्रिपदिक नवगीत दर्पण का दिल नवगीत दिवाली नवगीत नव वर्ष नवगीत नागफनी उग आयी नवगीत निर्माणों के गीत नवगीत पहले गुना नवगीत भटक न जाए नवगीत भीड़ में नवगीत मिली दिहाडी नवगीत में नए रुझान नवगीत राम बचाए नवगीत रार ठानते नवगीत लोकतंत्र का पंछी नवगीत वह खासों में खास है नवगीत शिव नवगीत संक्रांति काल है नवगीत संग्रह नवगीत सत्याग्रह के नाम पर नवगीत समय वृक्ष नवगीत समीक्षा नवगीत सड़क पर नवगीत सड़क पर... नवगीत: उगना नित नवगीत: उड़ चल हंसा नवगीत: दीन प्रदर्शन नवगीत: नाम बड़े हैं नवगीत: भाग्य कुंडली नवगीत: लोकतंत्र का पंछी बेबस नवगीत: कुण्डी खटकी नवगीत: छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत: बजा बाँसुरी नवगीत: भारत आ रै नवगीत: रब की मर्ज़ी नवभारत टाईम्स नशा नाक की सर्जरी नाग नाभिक ऊर्जा नारि नारी मुक्ति नारी-भाव नाश प्रकृति का निर्निमेष निर्विकार निष्काम कर्म निष्ठुरता नीति व्यवहार नीति-नियम नीति-व्यवहार नीलकंठ नेकियां नेह नर्मदा तीर पर नेह-नाता नैतिकता नैन-डोर नैना नौ कन्या न्यू-ईयर गिफ्ट नज़र नज़ारा पंचौदन अजः पद चिन्ह पद-चिन्ह पद्मिनी परब्रह्म परम-पिता परमाणु परमानंद परमार्थ परलोक परहित पराग पराया-धन पल- छिन पशु पहलू पाँच पर्व पायल पिचकारी पीयूषवर्ष छंद पीर पुरुषार्थ पुरोवाक : यह बगुला मन पुरोवाक ओस की बूँद पुरोवाक केरल एक झाँकी पुरोवाक बुधिया लेता टोह पुरोवाक् पुलिस पूजा पूर्ण-ब्रह्म पूर्णकाम पृथ्वी पैरोडी पोखर ठोके दावा प्यार प्रकृति प्रकृति दोहन प्रकृति बादल प्रजापति प्रणम्य शहीद प्रणय प्रणय -दीप प्रणय के पल प्रतिकण प्रतियोगिता प्रत्रकार प्रदूषण प्रभाव प्रभु प्रभु ज्ञान प्रश्न मन के प्राण शर्मा प्रातस्मरण स्तोत्र प्रिय प्रवास प्रीति के रंग प्रीति-चलन प्रेम के छःलक्षण प्रेम प्याला प्रेम ममता फरवरी कब क्या? 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ब्लॉगर्स बन्धुवों !
आप सभी को हर्ष और बधाई के साथ यह सूचना देना चाहता हूँ कि LBA अपनी सफलता के उस मुक़ाम तक आ चुका है कि इसकी सदस्यता संख्या अपने चरण तक पहुँच चुकी है और जो ब्लॉगर्स बन्धु इससे जुड़ने की इच्छा रख रहे हैं और जिनके मेल मुझे मिल रहे हैं उसको मद्देनज़र रखते हुए नयी सदस्यता के इच्छुक ब्लॉगर्स को एक और भी शक्तिशाली और नया मंच का गठन आज किया जा रहा है जिसका नाम है 'ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन' अर्थात AIBA ! इस मंच का हिस्सा सभी भारतीय बन सकते है, फ़िर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में रह रहें हों !!!
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