
नेह जलधि लहराओ.......डा श्याम गुप्त का गीत....
कवि एसी तान सुनाओ
जन जन हरषे, तन मन सरसे,
नेह जलधि लहराओ,
मन एसे गीत सजाओ ॥
जाग उठे हर अन्चल अन्चल
ऐसा प्रेम - पियाला |
राष्ट्र गीत गायें हिल मिल कर ,
छलके प्रीति की हाला |
हर जन गण मन बने देश की
भक्ति-प्रीति मतवाला|
दहक उठे हर अंग अंग में,
राष्ट्र-प्रेम की ज्वाला|
जग काँपे भूधर हिल जाए,
राग धमाल मचाओ ||..................कवि एसे...
नेह जलधि लहराए मन में,
मन दर्पण होजाए |
निर्मल तन निर्मल मन हो, सब-
प्रभु अर्पण होजाए |
मैं और तू का भेद रहे न ,
तदाकार तदमय हो जीवन |
अहं ब्रह्म , सोsहं, तत्वमसि ,
भेदाभेद परे हो यह मन |
प्रेम सुमन बिखरें हर पथ पर,
ताल से ताल मिलाओ ||...........कवि ऐसी तान.......
राष्ट्र प्रेम का मर्म जगे मन
विश्व प्रीति ध्वज फहरे |
प्रीति तिरंगा नीलगगन सज ,
जन गण मन में लहरे |
जन मन होगा शुद्ध सरल शुचि,
जीवन ऋजु-पथ जाए |
सत्यनीति पथ,धर्मं-भक्ति मय,
कर्म ज्ञान मन भाये |
कर्म के बाती ,ज्ञान का घृत हो,
प्रीति के दीप जलाओ |
सुर लय तान मिलाओ ,
नेह जलधि लहराओ |
कवि ऐसी तान सुनाओ
मन एसे गीत सजाओ ||
जन जन हरषे, तन मन सरसे,
नेह जलधि लहराओ,
मन एसे गीत सजाओ ॥
जाग उठे हर अन्चल अन्चल
ऐसा प्रेम - पियाला |
राष्ट्र गीत गायें हिल मिल कर ,
छलके प्रीति की हाला |
हर जन गण मन बने देश की
भक्ति-प्रीति मतवाला|
दहक उठे हर अंग अंग में,
राष्ट्र-प्रेम की ज्वाला|
जग काँपे भूधर हिल जाए,
राग धमाल मचाओ ||..................कवि एसे...
नेह जलधि लहराए मन में,
मन दर्पण होजाए |
निर्मल तन निर्मल मन हो, सब-
प्रभु अर्पण होजाए |
मैं और तू का भेद रहे न ,
तदाकार तदमय हो जीवन |
अहं ब्रह्म , सोsहं, तत्वमसि ,
भेदाभेद परे हो यह मन |
प्रेम सुमन बिखरें हर पथ पर,
ताल से ताल मिलाओ ||...........कवि ऐसी तान.......
राष्ट्र प्रेम का मर्म जगे मन
विश्व प्रीति ध्वज फहरे |
प्रीति तिरंगा नीलगगन सज ,
जन गण मन में लहरे |
जन मन होगा शुद्ध सरल शुचि,
जीवन ऋजु-पथ जाए |
सत्यनीति पथ,धर्मं-भक्ति मय,
कर्म ज्ञान मन भाये |
कर्म के बाती ,ज्ञान का घृत हो,
प्रीति के दीप जलाओ |
सुर लय तान मिलाओ ,
नेह जलधि लहराओ |
कवि ऐसी तान सुनाओ
मन एसे गीत सजाओ ||