
सफलता और उत्थान के लिए एकमात्र उपाय The way to get success
वर्ष 2010 जाने वाला है । जितने लोग इस साल के शुरू में इस धरती पर साँस ले रहे थे उनमें से बहुत से आज हमारे बीच नहीं हैं और उनमें से कुछ तो हमारे ब्लागर्स हैं और कुछ उनके परिवारीजन हैं । जो आज हमारे बीच नहीं हैं , क्या अब उनका कोई वुजूद ही बाकी नहीं है या कहीं न कहीं वे अब भी मौजूद हैं । अगर वे आज भी कहीं मौजूद हैं तो किस दशा में हैं ?
अपमान और असफलता की दशा में या सम्मान और आनंद की दशा में ?
इसका जवाब केवल वही दे सकता है जिसने इस सृष्टि को और समस्त जीवों को पैदा किया और उनका लक्ष्य निर्धारित किया । जो उस लक्ष्य को जान लेता है और उसे पा लेता है , वास्तव में केवल वही सफल है । ब्लागिँग के माध्यम से भी जीव को अपने उसी लक्ष्य को पाने की कोशिश करनी चाहिए जिसके लिए उसे इस दुनिया में भेजा गया है।
अब साल के अंत में हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि हमने ब्लागिंग के माध्यम से कितना समय सत्य को जानने में लगाया और कितना समय कहानी , गीत और चुटकुलों में बर्बाद किया और कितना समय हमने दूसरों का मज़ाक़ उड़ाकर या किसी विपरीत लिंगी से हार्मोन स्रावक बातें करके पाप कमाने में लगाया ?
काश ! हमारा हर पल हमारे उत्थान में ख़र्च हुआ होता या अब होने लगे ।
उत्थान के लिए
धर्म और अध्यात्म
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' दो शब्दों से मिलकर बना है । अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है ख़ुद । इस प्रकार अध्यात्म का अर्थ है ख़ुद को ऊपर उठाना । ख़ुद को ऊपर उठाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ गुण धारण करना अनिवार्य है जैसे कि सत्य, विद्या, अक्रोध, धैर्य, क्षमा और इंद्रिय निग्रह आदि । जो धारणीय है वही धर्म है । कर्तव्य को भी धर्म कहा जाता है। जब कोई राजा शुभ गुणों से युक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करता तभी वह ऊपर उठ पाता है । इसे राजधर्म कह दिया जाता है । पिता के कर्तव्य पालन को पितृधर्म की संज्ञा दे दी जाती है और पुत्र द्वारा कर्तव्य पालन को पुत्रधर्म कहा जाता है। पत्नी का धर्म, पति का धर्म, भाई का धर्म, बहिन का धर्म, चिकित्सक का धर्म आदि सैकड़ों नाम बन जाते हैं । ये सभी नाम नर नारियों की स्थिति और ज़िम्मेदारियों को विस्तार से व्यक्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। सैकड़ों नामों का मतलब यह नहीं है कि धर्म भी सैकड़ों हैं । सबका धर्म एक ही है 'शुभ गुणों से युक्त होकर अपने स्वाभाविक कर्तव्य का पालन करना ।
http://mankiduniya.blogspot.com
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अपमान और असफलता की दशा में या सम्मान और आनंद की दशा में ?
इसका जवाब केवल वही दे सकता है जिसने इस सृष्टि को और समस्त जीवों को पैदा किया और उनका लक्ष्य निर्धारित किया । जो उस लक्ष्य को जान लेता है और उसे पा लेता है , वास्तव में केवल वही सफल है । ब्लागिँग के माध्यम से भी जीव को अपने उसी लक्ष्य को पाने की कोशिश करनी चाहिए जिसके लिए उसे इस दुनिया में भेजा गया है।
अब साल के अंत में हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि हमने ब्लागिंग के माध्यम से कितना समय सत्य को जानने में लगाया और कितना समय कहानी , गीत और चुटकुलों में बर्बाद किया और कितना समय हमने दूसरों का मज़ाक़ उड़ाकर या किसी विपरीत लिंगी से हार्मोन स्रावक बातें करके पाप कमाने में लगाया ?
काश ! हमारा हर पल हमारे उत्थान में ख़र्च हुआ होता या अब होने लगे ।
उत्थान के लिए
धर्म और अध्यात्म
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' दो शब्दों से मिलकर बना है । अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है ख़ुद । इस प्रकार अध्यात्म का अर्थ है ख़ुद को ऊपर उठाना । ख़ुद को ऊपर उठाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ गुण धारण करना अनिवार्य है जैसे कि सत्य, विद्या, अक्रोध, धैर्य, क्षमा और इंद्रिय निग्रह आदि । जो धारणीय है वही धर्म है । कर्तव्य को भी धर्म कहा जाता है। जब कोई राजा शुभ गुणों से युक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करता तभी वह ऊपर उठ पाता है । इसे राजधर्म कह दिया जाता है । पिता के कर्तव्य पालन को पितृधर्म की संज्ञा दे दी जाती है और पुत्र द्वारा कर्तव्य पालन को पुत्रधर्म कहा जाता है। पत्नी का धर्म, पति का धर्म, भाई का धर्म, बहिन का धर्म, चिकित्सक का धर्म आदि सैकड़ों नाम बन जाते हैं । ये सभी नाम नर नारियों की स्थिति और ज़िम्मेदारियों को विस्तार से व्यक्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। सैकड़ों नामों का मतलब यह नहीं है कि धर्म भी सैकड़ों हैं । सबका धर्म एक ही है 'शुभ गुणों से युक्त होकर अपने स्वाभाविक कर्तव्य का पालन करना ।
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