
डा श्याम गुप्त की कविता.....
कस्मै देवाय हविषा विधेम
"कस्मै देवाय हविषा विधेम"
किस देवता की पूजा करें हम,
किस देवता की अर्चना करें हम?
कहीं नहीं है, किन्तु-
हर जगह पर रहता है;
पृथ्वी जिससे स्थिर है और जल बहता है।
जिसकी इच्छा से ही तपता है यह सूरज,
जिसकी इच्छा से ही यह वायु बहता है ।
:ईशावास्यं इदं सर्वं ,
यात्किंचिता जगत्यां जगत । "
जिसकी इच्च्छा से ही है यह जगत पसारा,
जिसकी माया से आच्छादित ये जग सारा।
" वो अस्नाविर और अकायम शुद्धमपापं ।
कविर्मनीषी और स्वयंभू पापम्विद्धम । "
निराकार है, निर्विकार है,
वही वेद है वह पुराण है ।
वही बाइबल, वह रामायण ,
वही भागवत वह कुरआन है।
वही ब्रह्म है वही सत्य है,
वही तत्व है वही स्वत्व है।
एसे उस देवता की पूजा करें हम।
'तस्मै देवाय हविषा विधेम' ॥
"तद्देजति, तन्नैजति,
तद्दूरे , तद्वन्तिके । "
सदा अजन्मा, फिर भी सदा जन्म लेता है ;
बहुत दूर है,लेकिन कण कण में रहता है ।
वह ईश्वर है,जगदीश्वर है,
वही हमारा अल्लाह प्यारा।
वह ही ईसा , वह सतगुरु है,
संत शिरोमणि नानक प्यारा।
वही राम है, वह रहीम है,
वही कृष्ण है वह करीम है।।
"अणो अणीयान, महतो महीयान,
अनेजदेकं मनसो जवीयो।"
लघुतम का भी केंद्र तत्व है,
महानतम का महत्तत्व है।
एक वही है, अनेक वही है,
मन की गति से तेज वही है।
एसे उस देवता की पूजा करें हम,
तस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
"ॐ पूर्णस्य पूर्मादाय ,
पूर्नामेवावशिष्यते..... । "
वह जो सदा पूर्ण रहता है,
चाहे घटता है बढ़ता है।
चाहे जीता है मरता है,
लेकिन वह शाश्वत रहता है।
जिसने जगती सकल बनाई,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ।
उसी सत्य की उसी स्वत्व की,
उसी एक की उसी देव की।
पूजा करें सभी हम मिलकर,
करें अर्चना पुष्पार्पण कर।
तस्मै देवाय हविषा विधेम,
तस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
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"कस्मै देवाय हविषा विधेम"
किस देवता की पूजा करें हम,
किस देवता की अर्चना करें हम?
कहीं नहीं है, किन्तु-
हर जगह पर रहता है;
पृथ्वी जिससे स्थिर है और जल बहता है।
जिसकी इच्छा से ही तपता है यह सूरज,
जिसकी इच्छा से ही यह वायु बहता है ।
:ईशावास्यं इदं सर्वं ,
यात्किंचिता जगत्यां जगत । "
जिसकी इच्च्छा से ही है यह जगत पसारा,
जिसकी माया से आच्छादित ये जग सारा।
" वो अस्नाविर और अकायम शुद्धमपापं ।
कविर्मनीषी और स्वयंभू पापम्विद्धम । "
निराकार है, निर्विकार है,
वही वेद है वह पुराण है ।
वही बाइबल, वह रामायण ,
वही भागवत वह कुरआन है।
वही ब्रह्म है वही सत्य है,
वही तत्व है वही स्वत्व है।
एसे उस देवता की पूजा करें हम।
'तस्मै देवाय हविषा विधेम' ॥
"तद्देजति, तन्नैजति,
तद्दूरे , तद्वन्तिके । "
सदा अजन्मा, फिर भी सदा जन्म लेता है ;
बहुत दूर है,लेकिन कण कण में रहता है ।
वह ईश्वर है,जगदीश्वर है,
वही हमारा अल्लाह प्यारा।
वह ही ईसा , वह सतगुरु है,
संत शिरोमणि नानक प्यारा।
वही राम है, वह रहीम है,
वही कृष्ण है वह करीम है।।
"अणो अणीयान, महतो महीयान,
अनेजदेकं मनसो जवीयो।"
लघुतम का भी केंद्र तत्व है,
महानतम का महत्तत्व है।
एक वही है, अनेक वही है,
मन की गति से तेज वही है।
एसे उस देवता की पूजा करें हम,
तस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
"ॐ पूर्णस्य पूर्मादाय ,
पूर्नामेवावशिष्यते..... । "
वह जो सदा पूर्ण रहता है,
चाहे घटता है बढ़ता है।
चाहे जीता है मरता है,
लेकिन वह शाश्वत रहता है।
जिसने जगती सकल बनाई,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ।
उसी सत्य की उसी स्वत्व की,
उसी एक की उसी देव की।
पूजा करें सभी हम मिलकर,
करें अर्चना पुष्पार्पण कर।
तस्मै देवाय हविषा विधेम,
तस्मै देवाय हविषा विधेम ॥