
त्रिपदा ग़ज़ल --दिल से...डा श्याम गुप्त ....
दिल से...
लाख बददुआयें दीं दिल से,
बहुत चाहा न चाहें दिल से;
न निकल पाए वो दिल से |
सोचा चले जाँय महफ़िल से,
यह न होगा अब तो दिल से;
बुलाया है आपने दिल से ।
अब महफ़िल से जाएं कैसे ,
बिना दीदार जाएं कैसे;
सदाएं दीं हैं उसने दिल से ।
लाख दुआ करे ये दुनियाँ,
मन्नतें माने 'श्याम' दुनियां ;
न निकल पायें तेरे दिल से ॥
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लाख बददुआयें दीं दिल से,
बहुत चाहा न चाहें दिल से;
न निकल पाए वो दिल से |
सोचा चले जाँय महफ़िल से,
यह न होगा अब तो दिल से;
बुलाया है आपने दिल से ।
अब महफ़िल से जाएं कैसे ,
बिना दीदार जाएं कैसे;
सदाएं दीं हैं उसने दिल से ।
लाख दुआ करे ये दुनियाँ,
मन्नतें माने 'श्याम' दुनियां ;
न निकल पायें तेरे दिल से ॥