
डॉ श्याम गुप्त का गीत ...कुछ पलों को और ....
कुछ पलों को और....
कुछ पलों को और रुक जाओ सजनि तुम ,
मैं प्रणय की याचना वंदन तो करलूं |
रूप की रस गंध प्राणों में बसालूँ,
प्रीति के मधु पल ह्रदय में बंद करलूं |
ये तेरे पिक बैन पिकबयनी प्रिया,
गीत के बोलों में ढालूँ, बंद भरलूँ ।
सुछवि आँखों में बसालूँ हे सुनयनी !
गर्म साँसों में तेरी मृदु सांस भरलूँ।
जलज मुख मन में सजाऊँ मोहिनी !
रूप नयनों के पलक में बंद करलूं।
सजनि विधुबदनी ! रुको कुछ और पल,
रागिनी पगध्वनि की अंतर में बसालूँ।
पायलों की झनक औ नूपुर की रुन झुन,
प्रीति रसमय काव्य के छंदों में भरलूँ ।
तुम रुको कुछ और पल मनभावनी !
भाव की हर सह्गानता तो जानलूँ ।
तुम चली भी जाओ तो भी मैं , सदा -
तुम ह्रदय में ही रहोगी, मानलूं ।
आज निज मनविहग को स्वच्छंद करदो,
गीत की जीवंत धुन पहचान लूं ।
प्रीति की पावन सुरभि तन मन में भरकर,
मधु मिलन के पलों को जीवंत कर लूं ॥
कुछ पलों को और रुक जाओ सजनि तुम,
मैं प्रणय की याचना वंदन तो कर लूं ॥
Read More
कुछ पलों को और रुक जाओ सजनि तुम ,
मैं प्रणय की याचना वंदन तो करलूं |
रूप की रस गंध प्राणों में बसालूँ,
प्रीति के मधु पल ह्रदय में बंद करलूं |
ये तेरे पिक बैन पिकबयनी प्रिया,
गीत के बोलों में ढालूँ, बंद भरलूँ ।
सुछवि आँखों में बसालूँ हे सुनयनी !
गर्म साँसों में तेरी मृदु सांस भरलूँ।
जलज मुख मन में सजाऊँ मोहिनी !
रूप नयनों के पलक में बंद करलूं।
सजनि विधुबदनी ! रुको कुछ और पल,
रागिनी पगध्वनि की अंतर में बसालूँ।
पायलों की झनक औ नूपुर की रुन झुन,
प्रीति रसमय काव्य के छंदों में भरलूँ ।
तुम रुको कुछ और पल मनभावनी !
भाव की हर सह्गानता तो जानलूँ ।
तुम चली भी जाओ तो भी मैं , सदा -
तुम ह्रदय में ही रहोगी, मानलूं ।
आज निज मनविहग को स्वच्छंद करदो,
गीत की जीवंत धुन पहचान लूं ।
प्रीति की पावन सुरभि तन मन में भरकर,
मधु मिलन के पलों को जीवंत कर लूं ॥
कुछ पलों को और रुक जाओ सजनि तुम,
मैं प्रणय की याचना वंदन तो कर लूं ॥