दिनों बाद !
कैसे हो तुम ? पूछा था तुमने
जब ,बरसों बाद अबोला,
खत्म हुआ था अपना !
बात का सिरा पकड़ने की
कोशिश में लगा रहा था
मैं !
तभी ,दूसरा प्रश्न
कोई साथी मिला ?
क्या कहता मै ,
तुम्हारे बाद, कामना ही
कहां रही थी !
कैसे करे दिन अपने ,
तुम्हारे प्रश्नों की बाढ़ !
क्या कहता,
गिनता रहा था बिन तुम्हारे ,
दिन ।
बुनता रहा था, यादों के काफिले ।
और अब
बस, मकाम आते हैं,चले जाते हैं, जिंदगी के
एहसास तले !
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