शिक्षक दिवस पर
मिथिलेश जी के लिए-
तुम्हें आकाश छूना है धरा पर पग जमा तो लो
उमगकर नर्मदा जैसे अमर कलकल सुना तो दो
बहुत सामर्थ्य है तुममें, न खुद को कम तनिक आँको
मिलेगा लक्ष्य कर संकल्प दृढ़ पग तुम बढ़ा तो दो
*
विनीता जी के लिए
नहीं सीमा मिली आकाश की पग थक गए सारे
विनीता बुद्धि के संकल्प से कंटक सभी हारे
मिली श्री वास्तव में उसे जो नित साधना करता
स्वयं आकर सफलता खड़ी हो जाती विहँस द्वारे
*
अनिल जी के लिए
बना रसायन रसायन, पाई कीर्ति दिगन्त
अनिल अनल सम प्रकाशित, प्रतिभा मिली अनंत
काव्य रसायन को करो, दिन दिन अधिक समृद्ध
हिंदी में लिख शोध नव पाओ कीर्ति दिगंत
*
अर्चना जी के लिए
कोकिलकंठी अर्चना, सुनें शारदा मात
मन ही मन मुस्का रहीं, दे खुशियाँ सौगात
सप्तसुरी संसार में सतरंगा साफल्य
सदा द्वार पर हो खड़ा जैसे नवल प्रभात
*
मुकुल जी के लिए
अधरों पर मुस्कान धरे, पिक वाणी ले पाथेय
विविध दिशाओं में ध्वज फहरे, सहज मिले हर ध्येय
सदय रहें हरिकृष्ण हमेशा, कीर्ति सूर्य अजिताभ
जो चाहो पारंगत उसमें, रहे न कुछ अज्ञेय
*
आलोकरंजन जी के लिए
भारती की आरती, उतारते रहें न भूल तारती है भक्ति, भाव सलिला नहाइए।
गद्य-पद्य लिखें नया, सत्य-तथ्य भी हो भरा, सत्य शिव सुंदर सृजन कर पाइए।।
रंजन आलोक करे, प्रतिभा के सूर्य का, पले हो पलामू में, ध्वजा फहराइए।
विश्ववाणी भारती हो, ठान लें अगर सभी, हिंदी ध्वज आन-बान-शान से फहराइए।।
*
संतोष जी के लिए
स्नेह सहित वंदन अभिनंदन, माथे तिलक सुशोभित हो
पढ़ें काव्य कालिंदी हरि हरि भी, राधा उस पर मोहित हो
खुशियों की सौग़ात मिले नित, सौर सोरठा नित जन्मे-
ऊषा-संध्या करे आरती, गह संतोष विमोहित हो
*
शोभित जी के लिए
इलैक्ट्रानिकी शीश के, बने रहो तुम ताज
हिंदी में तकनीक लिख, पाओ यश हृद-राज
तक्षशिला आचार्य सम, तक्षशिला में बैठ
पढ़ा यांत्रिकी गढ़ सको, शुभ भविष्य तुम आज
*
जयप्रकाश जी के लिए
गीत गीत में प्रीत भर, जय प्रकाश की बोल
जयप्रकाश जी ने रचा, है साहित्य अमोल
कर अवगाहन धन्य हो, जाग्रत सकल समाज
नवगीतों में रख दिया, अंतर्मन निज खोल
समय का सत्य कह दिया
गरल को अमिय कर दिया
*
मनोरमा सानिंध्य की भेंट अनूठी देख
चकित सलिल कर रहा है सुधियों का अभिलेख
शिक्षा पा-दे सकूँ तो हो यह जीवन धन्य
शिक्षक गरिमा अनूठी इस सी कहीं न अन्य
आसमान को नाप ले, पाखी निज पर तोल
हर उड़ान हो निरुपमा, बनें प्रेरणा बोल
कांता सम हितकारी
शक्तिमय युक्ति हमारी
*
पुनीता जी के लिए
बच्चे सच्चे बन सकें, तुम सा शिक्षक देख
समय शिला पर लिख रहा हर दिन यह अभिलेख
पुनीता सलिला शिक्षा
गये जो माँगे न भिक्षा
*
गुरु दंपत्ति के लिए
शिक्षक हो यदि गुरु सदृश, खिले मंजरी खूब
शिष्य चमक अरविंद सम, पढ़े विषय को डूब
सफलता कदम चूमती
विहँस तकदीर झूमती
*
चातक जी के लिए
गुरु रमेश तो आप हों, विधि शिव भी आ छात्र
चातक सँग हर पल बने, स्वाति नित ही मात्र
भाग्य निर्माता अपना
हरेक पूरा हो सपना
*
निशि जी के लिए
निशि वासर दें मुस्कुरा ज्ञान, न माँगे हार
शर्माकर बाधा पलट, आप मान ले हार
सीख ले अलंकार रस
छंद नव सीख; न कर बस
*
किरण जी
शिक्षक हो आशा किरण, पुष्पा सुषमा झूम
कोशिश करती अनवरत, सतत सफलता चूम
सँवारे अपनी किस्मत
छात्र मत सारे हिम्मत
*
अर्चना जी
भीख न शिक्षक माँगता, रखता साथ रमेश
जोड़े हाथ कुबेर भी, उसके मौन हमेश
वास्तव में श्री पाता
ज्ञान दे बने विधाता
*
साधना जी
कभी न बोलें साध ना, करें साधना मौन
ज्ञान दान दें अनवरत, कभी न पूछें कौन?
प्रेरणा देती रहतीं
नर्मदा जैसे बहतीं
*
आदरणीया इला जी
सतत न शिक्षा मात्र दें, मौन दिखाएँ राह।
जो पा ले आशीष वह, पाए जग में वाह
सृजन हो नेक रीति का
घोष हो सदा कीर्ति का
*
आदरणीय सुरेश दादा
ज्ञान सिंधु सादे सरल, विनम्रता की मूर्ति
छात्रों को जो चाहिए, जब तब करते पूर्ति
खुशकिस्मत हम दरश पा
सिर पर आशिष परस पा
*
कलाकारों के लिए
थामे जिसके हाथ, हस्तकला की अस्मिता
कला कहे युग सत्य, अनुकृति उसकी अर्जिता
श्वास हर संगीता हो
लक्ष्य हर हँस जीता हो
*
स्मृति शुक्ला
शब्द शब्द में अर्थ समाहित कर जो बोले
अमिय लुटाने ज्ञान कलश का ढक्कन खोले
शुक्ला स्मृतियाँ श्यामा यादों को प्रकाश दे
सहज सरलता संजीवित कर षडरस घोले
*
नीना उपाध्याय
सहज वाग्मिता विषयों का विश्लेषण करती
सृजनधर्मिता आशय नवल प्रकाशित करती
उप अध्याय विशद हो नव अध्याय बनाते
श्रोता सुनते करतल ध्वनि से नभ गुंजाते
*
नीना उपाध्याय
सहज वाग्मिता विषयों का विश्लेषण करती
सृजनधर्मिता आशय नवल प्रकाशित करती
उप अध्याय विशद हो नव अध्याय बनाते
श्रोता सुनते करतल ध्वनि से नभ गुंजाते
*
डॉक्टर अनामिका तिवारी
रामानुज तनया संगीत नृत्य पारंगत
पादप विज्ञानी यश कीर्ति कमाई अक्षत
गद्य-पद्य लेखन में निपुण न कोई सानी
कृषि छात्रों को ज्ञान दान दे; हो चिर वंदित
*
प्रो संजय वर्मा
संजय! जय कर पराजय, पाओ विजय सदैव
अथक अनवरत सफलता तुम्हें सदा दें दैव
वर्मा रक्षक धर्म का, कर्म करे दिन-रात
मर्म समय का समझकर, तक को करे प्रभात
*
देवकांत मिश्र
सत रज तम मिश्रित प्रकृति देव कांति के साथ
सत शिव सुंदर हम रचें सतत नवाकर माथ
जो पाया वह बाँटकर हों संपन्न प्रसन्न
सत चित आनंद पा सकें ईश कृपा आसन्न
*
छाया त्रिवेदी
बालारुण शत प्रकाशित, करते हैं आभार
अँगुली थाम पथ दिखाकर, स्वप्न किया साकार
मन्वन्तर छाया गहे, तुहिना पाकर लाड़
जीवन पथ पर बढ़ करें, नमन करो स्वीकार
*
साधना उपाध्याय
सरस्वती तनया विनत, प्रखर ज्योति आलोक
काम करे निष्काम रह, कंटक सके न रोक
कृष्णकांत कांता सुदृढ़, पग रख थामे हाथ
कई पीढ़ियाँ गढ़ सकी, आलोकित कर लोक
हम सब चरणों में प्रणत
दो आशीष रहें प्रगत
*
वीणा तिवारी जी
शारद-रमा-उमा त्रयी, झलक आपमें व्याप्त
वीणा की झंकार सम, वाणी अनहद आप्त
रामचंद्र के दास की, पाई कृपा अशेष
श्याम हुए गुरुबंधु खुद, है संयोग विशेष
गीता अनुरागिनी नमन
किया सुवासित जग चमन
*
निशा तिवारी
ज्ञान गगन शिक्षा धरा, निशा सुदृढ़ है सेतु
तारे कोशिश सफलता चंद्र बना यश हेतु
शिक्षण लेखन प्रकाशन, तीनों साधे खूब
पढ़ बढ़ गढ़ पीढ़ी नई, गईं खुशी में डूब
*
महीयसी महादेवी जी
देवी त्रय साकार हो, बनें एक अवतार
बंधु निराला शिव सदृश, दे नैकट्य दुलार
छायावादी मनीषा, गाँधीवादी नीत
आदर्शों की स्वामिनी, सत् से पाली प्रीत
शुभाशीष पा सके हम, सचमुच है सौभाग्य
कर्मव्रती हम सब बनें, फल से रखें न राग
*
अंबिकाप्रसाद 'दिव्य'
बापू के आदर्श से, जीवन सके सँवार
ऋषियों सम जीवन जिया, नित रच नव आचार
शिक्षा से आजीविका, हस्तकला से दाम
छात्र स्वनिर्भर हो सके, रहे नहीं बेकाम
महानात्मा शत वंदन
समर्पित श्रद्धा चंदन
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