हनुमान जी – प्रार्थना
(१.)
(मनहरण कवित्त-३१ वर्ण,१६-१५ ,अन्त गुरु )
दुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी ,
बस हनुमत गुण- गान नित करिये ।
सिन्धु पारि करि,सिय सुधि लाये लन्क जारि,
ऐसे बजरन्ग बली का ही,ध्यान धरिए ।
करें परमार्थ सत कारज निकाम भाव , । ,
ऐसे उपकारी पुरुशोत्तम को भजिये
रोग दोष,दुख शोक,सब का ही दूर करें
श्याम के हे राम दूत !अवगुन हरिये ॥
(२)
(जल हरण घनाक्षरी-,३२ वर्ण,१६-१६ ,अन्त-दो लघु)
बिना हनुमत कृपा ,मिलें नहीं राम जी,
राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।
रिद्धि–सिद्धि दाता,नव-निधि के प्रदाता प्रभु,
मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी वर ।
राम औ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,
दौनों पक्ष के ही दिये सन्कट उबार कर।
सन्कट हरण हरें, सन्कट सकल जग,
श्याम अरदास करें,कर दोऊ जोरि कर ॥
अति सुन्दर ।
हनुमान जी ऐसे पात्र हैं रामचरित मानस मे कि उनके बिना इतने बडे महाकाव्य कहें या ग्रन्थ की रचना हो पाती कि नही ऐसा लगता है। और गोस्वामी तुलसी दास जी ने उन्हे "स्वामी़ से सेवक बडे" ऐसे ही नही कहा है। भक्ति गीत की सुंन्दर प्रस्तुति। जय हनुमान जय जय सियाराम जय जय गुरुवर क्रिपा निधान।