![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg12JCNduLb0pgcBlslZF1eAvJqVzPh8Rnl6h9kHPt8ekXIlHoyLUfXVQ8jhyphenhyphent_-W_CHjCIUrhLi6m16K_rBleGC85cP73R0TyLPw86G1JJ_kgAqxZbfqYX-SbmwynwERDB_F1VAsYZk7k/s320/53.jpg)
चुप्पी ख़ामोशी उदासी ओढ़े
हर शमशान
लाशों, लकड़ियों और कफन के
इंतजार में शिद्दत के साथ
मुद्दत से अपनी भूमिका में खड़ा है
न जाने कितनी लाशें
अब तक हो चुकी होंगी पंचतत्व में विलीन
गुमनामी के अँधेरे में खो चुके हैं -
न जाने कितने हाड़-मास के पुतले
स्मृतियों में कुछ शेष रह जाती हैं आकृतियाँ
कुछ आकृतियाँ छोड़ जाती हैं
अपने कामों का इतिहास
-सुनील दत्ता
yahi sach hai !