बिना घरैतिन, घर खंडहर
बस गारा माटी चून,
दिन दहिजार खटावत जांगर
रातै खटिया सून,
घासी कहत बलिन्टन आई
लेवा लाओ भागी भौजाई
कहाँ कपार जाय मैं फोड़ों
सुख्खी छ्वारे मोरी लोगाई
कोट-कचहरी थाना अफसर
सबके पांवन दिया है सर धर
रामकटोरी वापस आवै
मनुवा खिलै, लगै तब घर, घर
लरिका सब उत्पात मचावैं
अम्मा लाओ गोहार लगावें
मनुवा मोहे कचौटे लागत
बलिन्ताइन हम किहे बनावें
सून-सून त्यौहार या जाई
बलिन्ताइन जो मिल ना पाई
फिर ते रामकटोरी जईहों
जानत होँ वा मोहें गरियाई
माघे मोहे पसीना छूटे
लागे आ गओ जून
बलिन्ताइन का नसा न उतरे
सर मोरे चढ़ा जुनून
बिना घरैतिन, घर खंडहर
बस गारा माटी चून,
दिन दहिजार खटावत जांगर
रातै खटिया सून,
गोपालजी
सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार।
सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार।