हमने एलबीए से इस्तीफ़े का ऐलान सुना तो श्री रवीन्द्र प्रभात जी दरख्वास्त की थी कि वे अपने फ़ैसले पर दोबारा ठंडे दिल से ग़ौर करें लेकिन उनकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं मिली है जबकि वे बदस्तूर नेट पर सक्रियता दिखा रहे हैं। इससे अंदाज़ा होता है कि वे वास्तव में ही स्वयं को एलबीए के अध्यक्ष पद से मुक्त कर चुके हैं। अतः अध्यक्ष पद ख़ाली है जिसे कि ज़्यादा देर तक ख़ाली नहीं रहना चाहिए। इस पद पर जल्दी ही किसी कि तक़र्रूरी होनी चाहिए ताकि व्यवस्था बनी रहे और एलबीए हिन्दी की सेवा बदस्तूर कर सके।
कुछ समय पहले एक ख़बर सुनने में आई थी कि महिला वैज्ञानिक पिछड़ रही हैं। हम वैज्ञानिक नहीं हैं इसलिए हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते लेकिन हमें ब्लॉगिंग के क्षेत्र में महिला ब्लॉगर्स को आगे बढ़ाने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। जहां भी कोई कम्यूनिटी ब्लॉग नज़र आता है, उसमें अध्यक्ष पद पर एक मर्द ही विराजमान नज़र आता है।
यह क्या नाइंसाफ़ी है ?
औरत का सबसे क़ाबिले ताज़ीम रूप उसका मां का रूप है। मेरे ब्लॉग प्यारी मां में बहुत सी विद्वान महिलाओं ने शामिल होकर यह भी साबित कर दिया है कि वे मर्दों की तरह गुटबाज़ नहीं होतीं और न ही उनके दिलों में मर्दों की तरह संकीर्णता और खुदग़र्ज़ी ही होती है। जो वास्तव में नारी के मूल तत्व से सुशोभित हैं, ऐसी किसी एक भी महिला से मुझ सहित किसी ब्लागर और ग़ैर-ब्लागर को इस पूरी ज़मीन पर अतीत और वर्तमान में आज तक कोई शिकायत पेश नहीं आई है और न ही भविष्य में ही कभी पेश आने वाली है। ऐसी ही कोई विदुषी महिला इस पद के लिए सर्वथा उपयुक्त है और ऐसी ही किसी महिला को आल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन का भी सर्द मुक़र्रर किया जाए।
ऐसा मेरा विचार है। अगर किसी के पास इससे अच्छा कोई और विचार हो तो उसे पेश किया जाए ताकि एलबीए और हिन्दी की बेहतरी के लिए कोई बेहतर फ़ैसला जल्दी किया जा सके।
कुछ समय पहले एक ख़बर सुनने में आई थी कि महिला वैज्ञानिक पिछड़ रही हैं। हम वैज्ञानिक नहीं हैं इसलिए हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते लेकिन हमें ब्लॉगिंग के क्षेत्र में महिला ब्लॉगर्स को आगे बढ़ाने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। जहां भी कोई कम्यूनिटी ब्लॉग नज़र आता है, उसमें अध्यक्ष पद पर एक मर्द ही विराजमान नज़र आता है।
यह क्या नाइंसाफ़ी है ?
एलबीए की कुर्सी ए सदारत अब किसी औरत के हवाले की जानी चाहिए।
एक ऐसी औरत जिसकी सोच और तजर्बा दोनों पुख्ता हों। जो शिक्षित और आधुनिक तो हो लेकिन पश्चिम के रंग में न रंगी हो। जिसका लिबास देखकर भारतीय संस्कृति का परिचय मिले। ऐसी बहुत सी महिला ब्लॉगर्स एलबीए में शामिल हैं। उनमें से जो भी हिन्दी के लिए समर्पित हो, उसे अब कुर्सी ए सदारत पर बिठाया जाए। एक मां अपने हर तरह के बच्चों को निभा लेती है और कभी घर छोड़कर भी नहीं भागती जबकि बाप अक्सर भागते देखे गए हैं। औरत का सबसे क़ाबिले ताज़ीम रूप उसका मां का रूप है। मेरे ब्लॉग प्यारी मां में बहुत सी विद्वान महिलाओं ने शामिल होकर यह भी साबित कर दिया है कि वे मर्दों की तरह गुटबाज़ नहीं होतीं और न ही उनके दिलों में मर्दों की तरह संकीर्णता और खुदग़र्ज़ी ही होती है। जो वास्तव में नारी के मूल तत्व से सुशोभित हैं, ऐसी किसी एक भी महिला से मुझ सहित किसी ब्लागर और ग़ैर-ब्लागर को इस पूरी ज़मीन पर अतीत और वर्तमान में आज तक कोई शिकायत पेश नहीं आई है और न ही भविष्य में ही कभी पेश आने वाली है। ऐसी ही कोई विदुषी महिला इस पद के लिए सर्वथा उपयुक्त है और ऐसी ही किसी महिला को आल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन का भी सर्द मुक़र्रर किया जाए।
ऐसा मेरा विचार है। अगर किसी के पास इससे अच्छा कोई और विचार हो तो उसे पेश किया जाए ताकि एलबीए और हिन्दी की बेहतरी के लिए कोई बेहतर फ़ैसला जल्दी किया जा सके।
अमां हमारी राय ( वो एश्वर्या राय से अलग टाईप की राय है ) मानें तो ..सोनिया गांधी को तो बिल्कुल मत बनाईयेगा......अरे चट से त्याग करके फ़ट से किसी ...और को गद्दी पर बैठा देंगी । और आप सबको कहती रहेंगी कि , भईया जी ..........हां वही वही ..इश्माईल :)
मजाक से इतर विचार अच्छा है ...शुभकामनाएं
@ अजय जी ! शुक्रिया.
http://charchashalimanch.blogspot.com/2011/02/divine-unity.html
यह कहकर--मर्द- औरत में फ़र्ख क्यों करना चाह्ते हैं----जो काबिल हो वही होना चाहिये...चाहे मर्द हो या औरत...किसी को अलग लाइन लगाने की क्या आवश्यकता है...
@ भाई श्याम जी ! फ़र्क़ पहले से चला आ रहा है . अब तो उस फ़र्क़ को मिटाने की कोशिश की जा रही है. कृपया अपनी टांग न अड़ाएं.
औरत वाला फैसला सही है. नफरत और गन्दी राजनीती ब्लॉगजगत मैं औरतें कम करती हैं. १ -२ नीली लाल को छोड़ दें तो ...
अरे सब झंझट छोडि़ए जी, मुझे आजीवन अध्यक्ष बना दीजिए और लखनऊ में एक आवास मुहैया करवा दीजिए।
मजाक करने का हक सिर्फ, हकवालों को ही होता है। खैर ... मेरा मानना है कि सब तरह की मानसिकता के लोग सब जगह होते हैं। पुरुष कम या स्त्रियां कम अथवा दोनों ही अधिक, जो सामने न आए, वो कम, जो जाहिर हो जाए, वो अधिक। यह तो ऐसे ही चलता रहेगा।
अजय जी की बात पर गंभीरता से मनन किया जाए, सोनिया जी और प्यारे मोहन (पी एम) वाली स्थिति नहीं होनी चाहिए।
मेरी अग्रिम शुभकामनायें। रवीन्द्र भाई के पदमुक्त होने का क्षोभ नहीं होना चाहिए और बदलाव को खुलेमन से स्वीकार कर लेना चाहिए। बदलाव प्रकृति है और प्रकृति स्त्री है या पुरुष, मैं इस बारे में अधिक नहीं जानता हूं। अगर बतलायेंगे तो सीखना अवश्य चाहूंगा।
हां सही है राडिया..नीरा यादव ,,अब पुरुष ही हैं...??????????????---फ़र्ख पहले नहीं था--बाद में किया गया....अब तो स्त्री-पुरुष एक ही लाइन में ख्डे होते हैं जी...प्रिफ़रेन्स--काबिलियत को दीजिये लिन्ग-भेद को नहीं....
यह फ़ोटो तो रज़िया सुल्तान का है ।
इसका मतलब तो यह हुआ कि वह अध्यक्षा विरोधियों से न घबराएगी ।
श्याम डाक्टर जी भी ख़ूब हैं और उनकी बातें भी ।
अपने घर में भी वे लिंग भेद न करते होंगे ?
क्या उनके बच्चे उन्हें मम्मी कहते होंगे ?