मैंने पहली बार एक ग़ज़ल लिखी थी... अब कभी ग़ज़ल लिखी नहीं... फिर भी कोशिश की.. मेरी उस ग़ज़ल तो अपने खूबसूरत भावों और सही मायनों में , खूबसूरत लफ़्ज़ों से संवारा मेरे प्रिय छोटे भाई अमरेन्द्र ने...ग़ज़ल सीखने में अमरेन्द्र मेरी काफी मदद कर रहे हैं... जिनका मैं आभारी हूँ... तो पेश है... मेरी ग़ज़ल का संशोधित रूप.... अमरेन्द्र के खूबसूरत लफ़्ज़ों में....
"नाम तेरा अभी मैं अपनी ज़ुबां से मिटाता हूँ....: एक ग़ज़ल जो मैंने पहली बार लिखी........और संवारा अमरेन्द्र ने देख कर बताइयेगा...: महफूज़"
फिर भी देखो मैं पूरा नजर आ रहा |
मुझको छोड़ा है तुमने गहन अंध में
अपने अन्दर ही मैं इक दिया पा रहा |
भागना है अंधेरों को घर से मेरे ,
रोशनी में नहा करके मैं आ रहा |
ये न समझो कि ऐसे बिखर जाऊँगा
चोट खाने से पहले सिमट जा रहा |
तेरी चर्चा भी मेरी जुबां पर न हो
नाम तेरा अभी मैं मिटा जा रहा | ''
-- अमरेन्द्र ....
भागना है अंधेरों को घर से मेरे ,
रोशनी में नहा करके मैं आ रहा |
महफूजजी ये लाईनें बहुत खूबसूरत हैं
अच्छा लगा जानकर की अमरेन्द्रजी की मदद आपको है, इंशा अल्लाह कुछ दिनों में आप स्वयं और बेहतर लिखने लग जायेंगे.
बहुत बढ़िया गजल है बधाई आप दोनों को
यह तो पहले ही पढ़ लिया था महफूज भाई!
सुंदर भाव..और क्या खूबसूरत निखारा है ग़ज़ल को अमरेंद्र भाई जी ने..बहुत बढ़िया भाव ..बेहतरीन ग़ज़ल..महफूज़ भाई अब तो आप ग़ज़ल के भी उस्ताद हो गये है..अब अगली कड़ी का इंतज़ार है..आप दोनों को बहुत बहुत बधाई...
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अमरेन्द्र जी बहुत कुशल व्यक्ति है, बहुत सुन्दरता से बिना भाव छेड़े निखारा है..साधुवाद!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
ग़ज़ल की तारीफ तो पहले ही कर चुके हैं हम ...
दिमाग और दिल ऐसी रचनात्मकता में ही लगाये रखो ...
बहुत शुभकामनायें ...!!
महफूज़ अली और गज़ल!!! शीर्षक पढ़कर तो कुछ नहीं लगा लेकिन गज़ल पढ़ने के बाद रोंगटे जरूर खड़े हो गए (इस में कुछ कारण सर्दी का भी था). भई, शक्ल-सूरत, इल्म, ज़हानत वगैरह में तो प्रार्थी पहले ही आपसे मार खाए बैठा है, अब गजलों में भी??? बहुत अच्छी गज़ल रची, मुबारकबाद.
ये हुई न बात. आप दोनों को बधाई.
बहुत ही उम्दा भाईजान। अमरेन्द्र जी को हमारी ओर से शुभ कामनाएँ।
जोड़ी का सुन्दर निखार वाह भाई वाह !!!
महफूज़ भाई अमरेन्द्र भाई आप मिल कर और ऐसी सुन्दर सुन्दर रचना करते रहे ,
मन लुभाते रहे !!!
अमरेन्द्र जी ने बिलकुल सलामत रखा है भाव को ।
आपको और अमरेन्द्र जी को बधाई ।