कानून के हाथ लम्बे होते हैं, इतने......ऐ
कि दू..ऊ.ऊ..र किसी बेगुनाह की
गर्दन तक पहुँच जाते हैं,
और सामने खड़े अपराधी की
गर्दन में माला पहनाते हैं,
कानून में सिर्फ यही तो एक अच्छाई है,
कि उसने अपने पैदा होने की वज़ह
दिल से अपनाई है,
जैसे चिराग तले का अँधेरा
चिराग से ही अस्तित्व में आता है,
और उसी की छत्र-छाया में
चैन की बंसी बजाता है,
सारा जग जानता है
की क़ानून और अपराध का
चोली-दामन का साथ है,
और वास्तव में क़ानून
अपराध की सगी औलाद है,
और वैसे भी संसद में पहुंचा
ज्यादातर अपराधी ही क़ानून बनाता है,
और सिर्फ सीधा-सच्चा नागरिक उसे निभाता है,
क़ानून की रोटी भी अपराध से ही चलती है,
क़ानून के रखवालों की रंगत भी
अपराध के फलने-फूलने से ही निखरती है,
भला बताइए, जिसके ऊपर क़ानून जैसी
सर्वप्रतिष्ठित सुंदरी मेहरबान हो,
क्यों न उसके चेहरे पर चिरजयी मुस्कान हो,
क्यों न उसका बोलबाला हो,
जिसका क़ानून का ऊँचा से उंचा
ओहदेदार हमप्याला हो,
इतिहास गवाह है कि,
कानून सिर्फ अपराधियों की
हिफाज़त के लिए ही जी रहा है,
आज भी, अग्नि-परीक्षित और सच्ची
सीताओं का खून पी रहा है,
गोपालजी
कि दू..ऊ.ऊ..र किसी बेगुनाह की
गर्दन तक पहुँच जाते हैं,
और सामने खड़े अपराधी की
गर्दन में माला पहनाते हैं,
कानून में सिर्फ यही तो एक अच्छाई है,
कि उसने अपने पैदा होने की वज़ह
दिल से अपनाई है,
जैसे चिराग तले का अँधेरा
चिराग से ही अस्तित्व में आता है,
और उसी की छत्र-छाया में
चैन की बंसी बजाता है,
सारा जग जानता है
की क़ानून और अपराध का
चोली-दामन का साथ है,
और वास्तव में क़ानून
अपराध की सगी औलाद है,
और वैसे भी संसद में पहुंचा
ज्यादातर अपराधी ही क़ानून बनाता है,
और सिर्फ सीधा-सच्चा नागरिक उसे निभाता है,
क़ानून की रोटी भी अपराध से ही चलती है,
क़ानून के रखवालों की रंगत भी
अपराध के फलने-फूलने से ही निखरती है,
भला बताइए, जिसके ऊपर क़ानून जैसी
सर्वप्रतिष्ठित सुंदरी मेहरबान हो,
क्यों न उसके चेहरे पर चिरजयी मुस्कान हो,
क्यों न उसका बोलबाला हो,
जिसका क़ानून का ऊँचा से उंचा
ओहदेदार हमप्याला हो,
इतिहास गवाह है कि,
कानून सिर्फ अपराधियों की
हिफाज़त के लिए ही जी रहा है,
आज भी, अग्नि-परीक्षित और सच्ची
सीताओं का खून पी रहा है,
गोपालजी
कानून निर्जीव यंत्र है। उसे इस्तेमाल आदमी बनाता है और इस्तेमाल करता है। बदनाम कानून होता है।
आदरणीय दिवेदी जी
क्षमा के साथ,
मैंने मात्र कानून के क़ानून का मूल्यांकन किया है
आप स्वयं स्वीकार कर रहे है कि राम ने क़ानून जैसे
निर्जीव यन्त्र का गलत इस्तेमाल किया था .
परिस्थितियाँ कुछ भी हों पर सीता, लव और कुश ने
उसका दर्द सहा था.
गोपालजी