प्रपोज करने का चलन
राम राज्य से भी पहले का है
वर्ना, सुपनखा ने राम से प्रपोज न किया होता,
और राम ने सीता की उपस्थिति का संज्ञान ले
लक्ष्मण की ओर इंगित न किया होता
( मानस की चौपाई है कि :
सीतहि चितई कही प्रभु बाता,
अहई कुंवांर मोर लघु भ्राता,
जबकि लक्ष्मण भी शादी-शुदा थे )
ऐ तो लक्ष्मण कि नाइंसाफी थी
कि उसने मात्र प्रपोज करने पर ही
सूर्पनखा की नाक काट डाली,
खुद तो सिर्फ गश खाए
सीताजी की जिंदगी चाट डाली,
ऐरा-गैरा भाई भी प्रपोज के दंड पर
दी गयी कुरूपता पर हुंकार उठेगा,
लड़की के बाप भाई तो दूर
सामने खड़े किसी भी व्यक्ति का
रिवाल्वर टंकार उठेगा,
मजाल थी कि राम-रावन युद्ध होता,
यदि लक्ष्मण
इस मामले में थोडा सा सदबुद्ध होता,
रावण को उसकी बहन की करतूत बताता,
और अपने हाथ का चक्कू रावण के हाथ में थमाता,
महाभारत काल में ऐसी स्थिति में
भीम ने अच्छी अक़ल दौड़ाई,
हिडिम्बा के प्रपोजल पर
हाँ करने में ही समझी भलाई,
वर्ना कौरवों के साथ-साथ
हिडिम्बा के रिश्तेदारों से भी लड़ रहा होता,
और घटोत्कच की वीरता से सजी महाभारत में
उसके बाप और हिडिम्बा के पति होने का
दंभ न भर रहा होता,
यह तो बुद्धि पर निर्भर है
कि प्रपोज को कैसे ट्रीट किया जाय,
या तो इंजॉय किया जाय
या आन द स्ट्रीट किया जाय,
क्योंकि प्रपोज कि प्रथा तो सदियों पुरानी है,
डिपेंड करता है सोंच पर
कि महाभारत की तरह निभाना है
या फिर रामायण बनानी है,
गोपालजी
नया ज्ञान मिला..आभार. :)
achchha praposal hai jee...