जनमत
"अपनी आँखें बंद करो, परमेश्वर की आवाज सुनते हैं,
वह हम सब से कुछ
कह रही है, "मुझे बचाओ." धरा को बचाओ... अपने भविष को बचाओ"
नारी कोई उपभोग की वस्तु नहीं है यह एक जीती जगती इंसान है जिसमें भावनाएँ हैं, अभिप्रेरणा है तथा भविष्य के निर्माण करने की इसमें पूर्ण शक्ति है यदि कोई इसका अपमान करता है तो वो धरा का भी अपमान करता है यूं तो आज भी नारी देवी के रूप में पूजी जाती है पर आज भी इसका अस्तित्व प्राण विहीन है क्योंकि आज भी पुरुष सामाजिक मानसिकता इसे भोग विलासता की वस्तु समझता है!
आज भी नारी के पास न तो उसका घर है न ही उसकी कोई पहचान है! आज भी उसे छोटी छोटी खुशियों के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है तथा अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता है !
यूँ तो हम आज के परिवेश में केवल दस प्रतिशत उन महिलाओं को देखते हैं जो सत्ता और समाज तक पहुँच गयी परन्तु हम भूल जाते हैं उन नब्बे प्रतिशत महिलाओं की जो पुरुष बर्बरता का शिकार हैं आज भी ग्रामीण इलाकों में महिला शिक्षा का स्तर ५ से १० प्रतिशत तक ही है !आज भी पड़े-लिखे लोगों के यहाँ कन्या भ्रूण-हत्या आम बात है इसी कारण निरंतर कन्या जन्म दर घटता जा रहा है और इसे महिलाएं भी प्रेरित कर रहीं हैं क्योंकि वो नहीं चाहती कि जो उनके साथ हो रहा है उनकी बेटियाँ भी झेले! आज उन्हें अपने अधिकारों को पाने के लिए आरक्षण कि मांग करनी पढ़ रही है !
आप को पता है
हर 6 लड़कियों में १ लड़की अपना 15 जन्मदिन देख नहीं पाती .12 मिलियन भारत में पैदा लड़कियों में , 1 लाख लडकियां अपना पहला जन्मदिन देख नहीं पाती .12 मिलियन भारत में पैदा लड़कियों में , 3 लाख लडकियां अपना पन्द्रहवें जन्मदिन देख नहीं पाती . और उनमें से एक लाख लडकियां अपने पहले जन्मदिन तक जीवित रहने में असमर्थ.एक-तिहाई लडकियां इनमें से जन्म लेते समय मर जाती हैं
हर छठी लड़की बच्चे की मौत लैंगिक भेदभाव के कारण होता है.महिलाएं पुरुषों से अब तक बचपन के दौरान से ज्यादा प्रताड़ित हो रहीं हैं.
3 लाख से अधिक लड़किया लड़कों से जादा हर साल मर जाती हैं महिलाओं की मृत्यु दर पुरुष कि मृत्यु दर में २२४ से अधिक है 402 जिलों में 4 वर्ष की आयु से नीचे की लड़कियों के बीच मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है. यहां तक कि अगर वह शिशु हत्या या भ्रूण हत्या से एक लड़की बच्चा बच जाती है तो भी एक नर बच्चे की तुलना में टीकाकरण, पोषण या चिकित्सा उपचार प्राप्त होने की संभावना शून्य होती है!
भारत एक देश है जहां एक तरफ तो नारी को पुजती है वाही सबसे जादा नुकसान सामाजिक तोर पर लड़की हो रहा है कन्या भ्रूण हत्या, कन्या शिशु हत्या, महिला जननांग विईतीकरण, बेटा idolization, जल्दी शादी और दहेज जसा भेदभावपूर्ण व्यवहार पुरे राष्ट्र के भविष्य को दफन कर रही है ! इसका कारण गरीबी, निरक्षरता और लैंगिक भेदभाव का परिणाम है. , कैसे एक माँ इतनी क्रूर हो सकता है कि आज वो अपने हे बच्ची को गर्भ में मतुदंड देदेती ! इसका कारण हमारी छोटी मानसिकता ही है ! देश के विभिन्न भागों में आज भी इतने सकत कानून होने कि बाद भी है आज भी बाला को मतुदंड दिया जरह है . महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या सबसे अधिक लोकप्रिय हैं.
आज भी उन्हें उनकी अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है ! आज भी वो अपनी घरो में तथा खुले असमान में अपने को आजाद महसूस नहीं कर सकती ! नजाने कोण सा भड़िया मुह खोली उसका इंतजार कर रहा हो ! आज भी बलात कर कि न्यूज़ सभी टीवी चनलो में सुर्खियों में रहती है! आज हर मोड़ पर नारी पुरुस प्रतारणा को झाल रही है चाहे वो ऑफिस हो या घर या को सामाजिक स्थान ! सीता से लेकर आज तक नारी परीक्षा ही दे रही है तब से आज तक अपने सम्मान की लिए लड़ रही है! जरा दिल से सोचा इसकी विवशता को आज भी कितनी लाचार है
"अपनी आँखें बंद करो, परमेश्वर की आवाज सुनते हैं, वह हम सब से कुछ कह रही है, "मुझे बचाओ." धरा को बचाओ... अपने भविष को बचाओ"
MANJUU SHUKLA
CHIF EDITAR OF
AWADH REGAL TIMES
नारी के लिए जीवन एक हलाहल है जिसको वह ताउम्र पीती रहती है. हर कोई उससे धोखा, विश्वशघात करते चले जा रहे है जिससे अब उसकी प्रवृति भी कुरुर होती जा रही है. सोच संकुचित, मन विचलित , आत्मा त्रस्त, विश्वास कमजोर हो गया है नारी का.
नारी के त्यागो को निरर्थक मन जाता रहा है हम आप सब बेबस है .पुरुष को दूसरी स्त्री का दर्द पता चलता है पर अपनी पत्नी ,बेटी , बहन का दर्द कभी नही puchhta
घर के बाहर हर जगह मुह मरने को कह दो तो अव्वल दर्जे का ठरकी निकलता है. किसी को नही छोड़ता. शादी के बाद तो जैसे कुत्ता बन जाता है. पत्नी को छोड़ कर सबसे इश्क लड़ना चाहता है. कमीने पन की हद तो तब होती है जब एक साथ दो बिबिया भी रख लेता है. दूसरा परिवार बनता है . एक से मन नही भरता थीं चार को एक साथ बेवकूफ बनाता है.
yes u r rt