एक अच्छी खबर देश के सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों को ‘सत्यमेव जयते’ का प्रयोग करने के निर्देश दिये गये हैं, इसीक्रम में उ0प्र0 सरकार ने इसके अनुपालन के निर्देश जारी किये।
भौतिकता की बुराईयों से बचने के लिये हल निकालना ही चाहिये। पहले भी इस तरफ ध्यान दिया गया था, जब हर दफतर में गांधी जी की शांति स्थापना वाली मुद्रा की फोटो लगायी गई थी, उनके उठाये हुए हाथ की पांचो उंगुलियां सामने थीं। सभी जानते हैं कि पहले बाबू लोग (सभी नहीं) दो रूपया शर्माकर ले लेते थे, बाद में महंगाई आई तो मांग भी बढ़ी, शर्माते सकुचाते गांधी की तस्वीर का सहारा लेने लगे।
सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिये कुछ टोटके करती हैं। यूरोप में तो कुछ दूसरे ही उपाय किये जाते हैं, जब बुराई हद से आगे बढ़ जाती है तो कानून बनाकर उसे जायज करार दे देते हैं, यह देश, सभ्य देश है?
अगर बुराई को समाप्त करने का दृढ़ संकल्प न हो तो विधि विधान या शासनादेशों से कुछ भी होने वाला नहीं है, इसे ‘फेस-सेविंग’ ही कहा जायेगा।
आदर्श वादिता बड़ी अच्छी चीज है अगर यह अपने स्थान पर न रूक जाये, इसके आगे भी एक लम्बा सफर है। मनसा, वाधा कर्मणा तक जाते हैं विचार तथा शब्दों की सीढियां हम को व्यवहार परिवर्तन की मंजिल तक ले जाती हैं। राष्ट्रीय त्यौहारों पर भारत माता की जय बोलने की आवाजे गगन भेंदी होती हैं बन्दे मातरम बोलने में भी किसी से कम नहीं। बड़े बड़े भ्रष्ट अफसर इन मौकों पर अपने भाषणों के द्वारा मातहतों को उपदेश की खुराके पिलाते हैं परन्तु व्यवहार परिवर्तन की किसी को फिक्र नहीं है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे भौतिकता की बुराईयों से बचने के लिये हल निकालना ही चाहिये। पहले भी इस तरफ ध्यान दिया गया था, जब हर दफतर में गांधी जी की शांति स्थापना वाली मुद्रा की फोटो लगायी गई थी, उनके उठाये हुए हाथ की पांचो उंगुलियां सामने थीं। सभी जानते हैं कि पहले बाबू लोग (सभी नहीं) दो रूपया शर्माकर ले लेते थे, बाद में महंगाई आई तो मांग भी बढ़ी, शर्माते सकुचाते गांधी की तस्वीर का सहारा लेने लगे।
सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिये कुछ टोटके करती हैं। यूरोप में तो कुछ दूसरे ही उपाय किये जाते हैं, जब बुराई हद से आगे बढ़ जाती है तो कानून बनाकर उसे जायज करार दे देते हैं, यह देश, सभ्य देश है?
अगर बुराई को समाप्त करने का दृढ़ संकल्प न हो तो विधि विधान या शासनादेशों से कुछ भी होने वाला नहीं है, इसे ‘फेस-सेविंग’ ही कहा जायेगा।
आदर्श वादिता बड़ी अच्छी चीज है अगर यह अपने स्थान पर न रूक जाये, इसके आगे भी एक लम्बा सफर है। मनसा, वाधा कर्मणा तक जाते हैं विचार तथा शब्दों की सीढियां हम को व्यवहार परिवर्तन की मंजिल तक ले जाती हैं। राष्ट्रीय त्यौहारों पर भारत माता की जय बोलने की आवाजे गगन भेंदी होती हैं बन्दे मातरम बोलने में भी किसी से कम नहीं। बड़े बड़े भ्रष्ट अफसर इन मौकों पर अपने भाषणों के द्वारा मातहतों को उपदेश की खुराके पिलाते हैं परन्तु व्यवहार परिवर्तन की किसी को फिक्र नहीं है।
जो व्यवरहिं ते नर न घनेरे।
डॉक्टर एस एम हैदर
satymev jayate!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!