अभी कुछ दिनों पहले की बात है मै टी वी देख रहा था , की अचानक मेरी नजर इड़िया टीवी पर पड़ी और देखा किसी अदालत नामक सीरियल पर पड़ी , जहाँ एक एपिसोड में एक कटघरे में स्वामी बाबा रामदेव थे औत दूसरे कटघरे में बोलीवुड की आइटम गर्ल समंभावना सेठ और कश्मिरा शाह थी । मुद्दा चल रहा था भारतीय संस्कृति को लेकर , तो बाबा जी कह रहे थे कि ये जो आप कम कपड़ो मर डांस करती है ये अच्छा नहीं होता । इसपर समंभावना सेठ ने कहा कि बाबा अभी शर्त लगाईये , यही नाचूँ और हर मर्द खड़े होकर ताली बजाने पर मजबूर ना हो जायें तो कहिएगा । इस पर बाबा जी चुप हो गये । अब आप ही बताईये अगर वहाँ मर्द होंगे तो ऐसे नित्य पर तालियाँ तो बजेंगी ही । छोटे कपड़े पहनकर अपने बदन की सुंदरता का प्रदर्शन करना युवा लड़कियों के लिए अब एक फैशन बन गया है। जिसका बदन जितना अधिक दिखेगा उसे लोग उतना ही सुंदर व सेक्सी कहेंगे। अब लड़कियों के लिए 'सेक्सी' संबोधन एक अपशब्द नहीं बल्कि सुंदरता का पैमाना बन गया है। एक समय था जब हम और आप या कोई भी सेक्सी शब्द कहने में शर्म महशुस करता था , परन्तु एक समय आज है कि ऐसे शब्दो का प्रयोग करना मतलब इज्जत देना । फैशन शो, फिल्मी अभिनेत्रियों के कपड़े आदि सभी युवा लड़कियों को ग्लैमर के रंग में ढाल रहे हैं। कल तकमल्लिका शेरावत व राखी सावंत के छोटे कपड़े दर्शकों को आँखे मूँदने पर मजबूर करते थे परंतु आज सबसे ज्यादा माँग इन्हीं बिंदास अदाकाराओं की है। शर्म की बात है ना , जो हमारे संस्कृति को धूमिल करने मे लगा है उसकी माँग मार्केट मे सबसे ज्यादा है । कल तक हम बस फिल्मो में इन्हे देख पाते थे परन्तु अब इनकी परछाई हर जगह आसानी से दिख जाती है ।
ऐसे छोटे कपड़ो की माँग भी नित्य ही बढ़ती जा रही है , । अब आप बाजार या कपड़े की दूकानं पर जायेगे तो सबसे पहले स्कर्ट या इस प्रकार के ही छोटे कपड़े दिखेंगे । मुंबई की मायानगरी से निकलकर ग्लैमरस कपड़ों का फैशन बड़े-बड़े महानगरों तक पहुँचता जा रहा है, जहाँ शोरूम में सजने के बाद सर्वाधिक बिक्री उन्हीं कपड़ों की होती है जिनकी लंबाई कम व लुक ट्रेंडी होता है। यही नहीं महानगरों के नामी स्कूलों, कॉलेजों, एयर होस्टेस एकेडमी आदि का ड्रेस कोड ही मिनी स्कर्ट-टॉप व फ्रॉक बन गए हैं। कल तक घर-गृहस्थी संभालने वाली लड़कियाँ भी अब फैशन शो व सौंदर्य प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं और नए फैशनेबल वस्त्रों के अनुरूप अपने बदन को ढाल रही हैं। अब जब माँ अपनी बेटी को सलवार-कमीज पहनने को कहती है तो बेटी शान से कहती है कि 'माँ, अब तुम भी बदल जाओ। आज तो स्कर्ट व कैप्री का दौर है। सलवार-कमीज तो गाँव की लड़कियाँ पहनती हैं।' बुद्धि से बच्चे भले ही बड़े न हों, पर पहनावे से आजकल की किशोरियाँ अपनी उम्र से बहुत अधिक बड़ी हो गई हैं। यह सब बदलते दौर की 'फैशन' का प्रभाव है जिसने भारतीय संस्कृति की छाप को मिटाकर सिर से आँचल व पैरों से पायल को लुप्त कर दिया है ,आजकल का फैशन ही शार्ट स्कर्ट, शार्ट फ्रॉक्स आदि हैं।
जो फैशन बाजार में दिखता है, वही बिकता है। इसी तर्ज पर आज छोटे कपड़े युवतियों की पहली पसंद बन गए हैं। । भला जिस भावी पीढ़ी का नेतृत्व रिया सेन, किम शर्मा व राखी सावंत जैसी अभिनेत्रियाँ करें उस पीढ़ी की युवतियाँ पूरे शरीर को ढँकने वाले लंबे कपड़े कैसे पहन सकती हैं?
pasand aya
’जो दिखता है वही बिकता है’ में मामूली संशोधन करें कि जो बेचा जाना होता है वही दिखाया जाता है. अब सप्लाई क्रियेट डिमांड का फार्मूला चलता है, मित्र.
badan se kapde hi nahi bhai aatama bhi dhere dhree kam hoti ja rahai hai. sanskaro ki tho maa..........di in filmi balikao ney.
यह बात जब एक टीनेजर छोकरा कहे तो सोचना तो पड़ेगा -क्योकि यह किसी परम्परावादी ,शुचितावादी पंडित का प्रलाप नहीं है -यह भारत का भविष्य बोल रहा है! हम व्यक्ति की आजादी और अंध आधुनिकता के नाम पर कितनी छूट दे सकते हैं कोई आचार संहिता तो बनानी ही पड़ेगी !
बस आपसे यही कहना है मिथिलेश कि आपका यह आक्रोश इस तरह केवल स्वस्थ विचार विमर्श के स्तर पर ही बना रहना चाहिए -छींटाकशी नहीं!
मिथिलेश जी आपकी सोच में खोट नहीं लगता लेकिन जो भी कहें शालीनता से. अरविन्द मिश्रा जी की टिप्पणी विशेष ध्यान देने योग्य है.
भाई मिथलेश जी अगर इस भारतीय विरोदी सेकुल गिरोह जिसमें मिडीया भी सामिल है की यथाशीघ्र नकेल न कशी गयी तो समझो कि बलात्कार ,हिंसा और ब्याभिचार के सिवा कुछ न घटेगा हर तरफ lawlessness ही नजर आएगी। मुम्बई में इस सेकेलुर गिरोह के महेश भट जैसे लगभग सैंकड़ों कंजर बैठे हैं जिन्होंने हर भारतीय को कंजर बनाने का वीड़ा उठाया हुआ है भारत को इन दुष्टों से आप जैसे नौजवान ही बचा सकते हैं।
मिथिलेस को बधाई !!! नारी के मुद्दे पर अनवरत सुधारात्मक लेख लिखने के लिए !!! सौ में सौ अंक !!!
अरविन्द मिश्रा सर जी से सौ प्रतिशत सहमत !!!
सबसे ज्यादा चिंता का विषय तो यह है जो आपने अपने इस लेख में बताया भी है कि "महानगरों के नामी स्कूलों, कॉलेजों, एयर होस्टेस एकेडमी आदि का ड्रेस कोड ही मिनी स्कर्ट-टॉप व फ्रॉक बन गए हैं"
हमें लगता है शीघ्र ही वो सभी फैक्ट्रियां लुप्त हो जायेंगी जो दुपट्टा बनातीं थीं ....
सलीम ख़ान
संयोजक
Lucknow Bloggers' Association
लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन
(विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक चिट्ठा; उत्तर प्रदेश के ब्लॉगर्स के लिए)
बाज़ारवाद सब कुछ करवा सकता है
I appreciate ur concern gentleman. Keep it up ! Shamelessness has become order of the day and men must come forward to put an end to it.
क्या कीजिएगा भाई आधुनिकता की आँधी दौड़ जो चल रही है..
बराबरी की सारी कागजी और कानूनी कार्रवाईयों के बावजूद भारत में संबंधों की शतरंज में नारियाँ पुरुषों के हाथ में होती है.पुरुष ही तय करता है कि महिला को कितने प्रतिशत आधुनिक होना है और कितने प्रतिशत पारंपरिक.
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....: महिला दिवस ...हिम्मत से पतवार सम्हालो......
laddoospeaks.blogspot.com
मुझे कतई नहीं लगता कि स्थिति इतनी खराब है कि आचार संहिता बनाने की ज़रूरत पड़े. भारत की दो-तिहाई आबादी गाँवों में रहती है और वहाँ लड़कियाँ अब भी सलवार-कमीज पहनती हैं. कस्बों में भी शालीन पहनावा ही पहना जाता है. और दुपट्टों की बात करते हैं तो दिल्ली के कमलानगर जैसे नये फ़ैशन के बाज़ार में मुख्य चौराहे पर करीब सात-आठ दुकानें सिर्फ़ दुपट्टों की हैं.
ऊट-पटांग कपड़े पहनने के पक्ष में कोई भी समझदार नहीं होता. मुझे दुःख इस बात का होता है कि मुट्ठी भर औरतों को आपलोग भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि मान लेते हैं. और जो औरतें खट-खटकर घर-बाहर दोनों जगह का काम सँभालती हैं, रोज़ बसों में धक्के खाती और पुरुषों का अनचाहा स्पर्श सहती हैं, कमेंट सुनती हैं उनकी कोई परवाह नहीं करता.
याद रखिये हमारी संस्कृति इतनी भंगुर नहीं जो पहनावे के आधार पर टूट जायेगी. पहनावे प्रत्येक काल में बदलते रहे हैं. हमारी संस्कृति बनी है प्रेम से, मानवता से, सहिष्णुता से और उन औरतों के त्याग और बलिदान से, जो चाहे जो भी कपड़े पहनें, हमेशा अपने परिवार के लिये पहले सोचती हैं, अपने लिये बाद में.
बढ़िया चिन्तन है। अरविंदजी से सौ फीसद सहमत।
जिस को जैसा मन करता पहने, इससे कोई अन्तर पड़ता है बस अपनी सोच ठीक होनी चाहिए| मुझको तो लगता है कि आप अकारण ही कठोर बन रहे हैं |
@आराधना ji ,
मिथिलेश और हम भी उन्ही मुट्ठीभर लोगों की ही बात कर रहे हैं जिनके चलते एक ट्रेंड वजूद में आ रहा है!
सच्ची ,आप तो एक सच्ची नारीवादी हैं तनिक भी आक्षेप भी आपको नागवार लग जाता है -मगर हम शायद बात एक ही कर रहे हैं -थोडा डंडे दिमाग से मिल बैठकर समझने बूझने की जरूरत है जिससे कोई संवादहीनता न रह जाय !
Bahut sundar post,
shaharon ki hava ab ganv ko bhi lag rahi hai.
badlav hote ja raha hai.
aabhar
बिल्कुल सही कहा, १०० फ़ीसदी सहमत .
ab waqt badal raha hai to sab kuch badlega hi ........vaise lekh apne aap mein sarthak hai magar waqt ke sath thoda bahut dhyan apni tahjeeb par bhi hamein hi dena hoga .
कितनी महिला अकेली फिल्म देखने जाती है ??
कितने पुरुष अकेले फिल्म देखने जाते हैं ??
फिल्मो मे नग्नता को बढ़ावा कौन देता हैं इसकी statistic report पर कोई प्रकाश डाले ।
sabhi tippani kartaon ka shukriya
हम सब परिवार वादी लोग हैं इसलिए हमारे यहाँ पुरुष और स्त्री दोनों के लिए ही मर्यादाएं हैं। यह भी सत्य है कि पश्चिम के भोगवादी चिन्तन के कारण आज कतिपय महिलाएं अपनी वर्जनाएं तोड़ रही हैं और उससे पुरुष आहत हो रहा है। भारत में सदैव पुरुष को संस्कारित करने का प्रयास किया जाता था लेकिन आज न तो संस्कारित करने की परम्परा शेष है और उल्टे उन्हें ऐसे पहनावे से उकसाया जा रहा है। यह निश्चय ही दुख का विषय है। यदि हमारे पुत्र इस कारण हिंसक बनते हैं तो समाज को इसका खामियाजा उठाना पडेगा। लेकिन यह भी सत्य है कि भारत में आज भी अधिसंख्य परिवारों में शालीनता शेष्ा है। हमें सब को मिलकर इस भोगवादी प्रवृत्ति को लगाम देनी चाहिए। यदि पुरुष भी अपने सारे वस्त्र उतारता है तो उसकी भी घोर निन्दा होनी चाहिए। चाहे वो सलमान हो, रणधीर कपूर हो या फिर जॉन इब्राहिम। जॉन ने तो एक फिल्म में हद ही कर दी जब वो अपना अधोवस्त्र तक उतारने पर आमादा हो गया। इन सबसे भी महिलाओं की मानसिकता में विकार आता है और प्रतिक्रिया स्वरूप वे भी नग्नता का वरण करती हैं। वे कहती हैं कि तुम्हारे अन्दर विकार न आए इस कारण हम बुर्के में क्यों रहें? इसलिए आज सभी को संस्कारित होने की आवश्यकता है। और एक बात, हम सभी विचारवान लोग है, सभी के विचार भिन्न होंगे ही, किसी की टिप्पणी को उसके विचारों की तरह ही लेना चाहिए। हम लिखते ही इसलिए है कि लोगों के विभिन्न मत हम जान सकें। इसलिए किसी के लिखने से आहत नहीं होना चाहिए और न ही किसी को भी अपने पक्ष में करने के लिए बहस होनी चाहिए। आशा है मेरी बात को अन्यथा नहीं लिया जाएगा।
डॉ गुप्ता जी ,
आपने बहुत ही संतुलित और स्वस्थ तरीके से अपनी बात रख दी है
मैं पूर्णतः सहमत हूँ और आशा अकर्ता हूँ मिथिलेश और सलीम भी इसी इत्तेफाक करेगे ही
आपका बहुत आभार !
अकर्ता =कर्ता
बिलहुल सही कहा आपने श्रीमान आप को मेरा ब्ळोग भी पंसद आय्गा जरुर पढे http://bit.ly/9Ctt9K
बिल्कुल सटीक लेख है आपका। अब सारी ज़िम्मेदारियाँ सिर्फ़ महिलाओं की ही तो हैं। सारे समाज का बीड़ा ही आखिर महिलाओं ने उठा रखा हैं। महिलाओं को तो शालीनता से रहना ही चाहिए। उसे इस तरह से कम कपड़े पहनने से आज़ादी से घूमने से मर्द बेचारा मासूम उत्तेजित हो जाएं तो इसमें ग़लती तो महिला की ही हुई। बहुत ही उम्दा सोच है आपकी। मैं समझ सकती हूँ कि आपकी ज़िंदगी में शामिल महिलाओं की क्या स्थिति होगी।