बहुत कुछ सिखाती है गंगा
चीज़ें बोलती हैं लेकिन इन्हें सुनता वही है जो इनके संकेतों पर ध्यान देता है। प्रज्ञा, ध्यान और चिंतन से ही मनुष्य अपने जन्म का उद्देश्य जान सकता है। ये गुण न हों तो मनुष्य पशु से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है।
भारत की विशालता, हिमालय की महानता और गंगा की पवित्रता बताती है कि स्वर्ग जैसी इस भूमि पर जन्म लेने वाले मनुष्य को विशाल हृदय, महान और पवित्र होना चाहिए। ऋषियों की वाणी भी यही कहती है। ज्ञान ध्यान की जिस ऊँचाई तक वे पहुँचे, उसने सिद्ध कर दिया कि निःसंदेह मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है।
परन्तु अपने पूर्वजों की दिव्य ज्ञान परम्परा को हम कितना सुरक्षित रख पाये? नैतिकता और चरित्र की रक्षा के लिए सबकुछ न्यौछावर करने वालों के आदर्श को हमने कितना अपनाया? ईश्वर को कितना जाना? उसके ‘दूत’ को कितना पहचाना? और उसकी ओर कितने कदम बढ़ाए?
गंगा केवल एक नदी मात्र ही नहीं है बल्कि गंगा भारत की आत्मा और उसका दर्पण भी है जिसमें हर भारतवासी अपना असली चेहरा देख सकता है और अगर सुधरना चाहे तो सुधर भी सकता है। गंगा हमें सत्य का बोध कराती है लेकिन हम उसके संकेतों पर ध्यान नहीं देते।
गंगा की रक्षा हम नहीं कर पाये। अपना कचरा, फैक्ट्रियों का ज़हरीला अवशिष्ट, मूर्तियाँ और लाशें सभी कुछ हम गंगा में बहाते रहे। नतीजा गंगा का जल न तो जलचरों के बसने लायक़ बचा और न ही हमारे पीने योग्य बचा। अमृत समान जल को विष में बदलने का काम किसने किया?
निःसंदेह गंगा की गोद में बसने वाले हम मनुष्यों ने ही यह घोर अपराध किया है।
भारत की दिव्य ज्ञान गंगा भी आज इसी प्रकार दूषित हो चुकी है। उसमें ऐसे बहुत से विरोधी और विषैले विचार बाद में मिला दिये गए जो वास्तव में ‘ज्ञान’ के विपरीत हैं।
चीज़ें बोलती हैं लेकिन इन्हें सुनता वही है जो इनके संकेतों पर ध्यान देता है। प्रज्ञा, ध्यान और चिंतन से ही मनुष्य अपने जन्म का उद्देश्य जान सकता है। ये गुण न हों तो मनुष्य पशु से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है।
भारत की विशालता, हिमालय की महानता और गंगा की पवित्रता बताती है कि स्वर्ग जैसी इस भूमि पर जन्म लेने वाले मनुष्य को विशाल हृदय, महान और पवित्र होना चाहिए। ऋषियों की वाणी भी यही कहती है। ज्ञान ध्यान की जिस ऊँचाई तक वे पहुँचे, उसने सिद्ध कर दिया कि निःसंदेह मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है।
परन्तु अपने पूर्वजों की दिव्य ज्ञान परम्परा को हम कितना सुरक्षित रख पाये? नैतिकता और चरित्र की रक्षा के लिए सबकुछ न्यौछावर करने वालों के आदर्श को हमने कितना अपनाया? ईश्वर को कितना जाना? उसके ‘दूत’ को कितना पहचाना? और उसकी ओर कितने कदम बढ़ाए?
गंगा केवल एक नदी मात्र ही नहीं है बल्कि गंगा भारत की आत्मा और उसका दर्पण भी है जिसमें हर भारतवासी अपना असली चेहरा देख सकता है और अगर सुधरना चाहे तो सुधर भी सकता है। गंगा हमें सत्य का बोध कराती है लेकिन हम उसके संकेतों पर ध्यान नहीं देते।
गंगा की रक्षा हम नहीं कर पाये। अपना कचरा, फैक्ट्रियों का ज़हरीला अवशिष्ट, मूर्तियाँ और लाशें सभी कुछ हम गंगा में बहाते रहे। नतीजा गंगा का जल न तो जलचरों के बसने लायक़ बचा और न ही हमारे पीने योग्य बचा। अमृत समान जल को विष में बदलने का काम किसने किया?
निःसंदेह गंगा की गोद में बसने वाले हम मनुष्यों ने ही यह घोर अपराध किया है।
भारत की दिव्य ज्ञान गंगा भी आज इसी प्रकार दूषित हो चुकी है। उसमें ऐसे बहुत से विरोधी और विषैले विचार बाद में मिला दिये गए जो वास्तव में ‘ज्ञान’ के विपरीत हैं।
हम भारतीय न ज्ञान गंगा को सुरक्षित रख पाये और न ही जल गंगा को।
गंगा अपने उद्धार के लिए हमें पुकार रही है। कौन सुनेगा उसका चीत्कार?
गंगा अपने उद्धार के लिए हमें पुकार रही है। कौन सुनेगा उसका चीत्कार?
कौन महसूस करेगा अपना दोष?
किसे होगा अपने कर्तव्य का बोध?
कौन कितनी और क्या पहल करता है? गंगा यही निहार रही है।
महाकुम्भ का यह स्नान तभी सफल सिद्ध होगा जबकि नहाने वाले अपने शरीर के मैल की तरह अपने दोष भी त्याग दें। अपनी आस्था, विचार और कर्म को उन प्राचीन ऋषियों जैसा बनायें जिनसे आदि में धर्मज्ञान निःसृत हुआ था। इसी में आपकी मुक्ति है।
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
वेदमार्ग
नूनव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः।
प्रत्नवद् रोचया रूचः ।। ऋग्वेद 1:1:8।।
अनुवाद- नये और नूतनतर सूक्तों के लिए पथ हमवार
करता जा, जैसे पिछले लोगों ने ऋचाओं पर अमल किया था।
यज्ञं प्रच्छामि यवमं।
सः तद्दूतो विवोचति किदं ऋतम् पूर्व्यम् गतम।
कस्तदबिभर्ति नूतनौ।
वित्तम मे अस्य रोधसी।। ऋग्वेद 1:105:4।।
अनुवाद- मैं तुझसे सबसे बाद में आने वाले यज्ञ का सवाल पूछता हूँ। उसकी विवेचना वह पैग़म्बर आकर बताएगा। वह पुराना शरीअत का निज़ाम कहाँ चला गया जो पहले से चला आ रहा था ? उसकी नयी व्याख्या कौन करेगा? हे आकाश पृथ्वी! मेरे दुख पर ध्यान दो।
ग़ज़ल
पानी
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी
ज़फ़र गोरखपुरी (मुंबई)
लिप्यांतरण : अबू शाहिद जमील
इतना जहर घोला गंगाजल में
कानपुर-कानपुर शहर का मैला ढोते-ढोते रूठ गई गंगा ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। गंगा बैराज बनाकर भले गंगा का पानी घाटों तक लाने की कवायद हुई मगर वो रौनक शहर के घाटों पर नहीं लौटी। कानपुर शहर गंगा का बड़ा गुनाहगार है। 50 लाख की आबादी का रोज का मैला 36 छोटे-बडे़ नालों के जरिए सीधे गंगा में उड़ेला जाता है। 50 करोड़ लीटर रोजाना सीवरेज गंगा में डालने वाले इस शहर में गंगा एक्शन प्लान, इंडोडच परियोजना के तहत करोड़ों रूपए खर्च किए गए। जाजमऊ में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर इस शहर में स्थापित हैं। गंगा की गोद में सैकड़ों लाशे यूँ ही फेंकी जाती रहीं है और यह हरकत अब तक जारी है। गंगा की गोद के किनारे बसे जाजमऊ की टेनरियों से निकला जहरीला क्रोमियम गंगा के लिए काल बन गया। टेनरियों से निकलने वाले स्लज में क्रोमियम की मात्रा खतरानक स्थितियों तक पहुँच गई, तब भी यह शहर और सरकार के अफसर नहीं जागे। जाजमऊ के दो दर्जन पड़ोसी गाँव शेखपुर, जाना, प्योंदी, मवैया, वाजिदपुर, तिवारीपुर, सलेमपुर समेत अन्य में ग्राउंड वाटर 120 फिट नीचे तक जहरीला हो गया तो प्रशासन के होश उड़ गए। खेत जल गए और अब पशुओं का गर्भपात होने लगा है। काला-भूरा हो गया गंगा का पानी आचमन के लायक तक नहीं बचा।
पुनश्चः
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
महाकुम्भ का यह स्नान तभी सफल सिद्ध होगा जबकि नहाने वाले अपने शरीर के मैल की तरह अपने दोष भी त्याग दें। अपनी आस्था, विचार और कर्म को उन प्राचीन ऋषियों जैसा बनायें जिनसे आदि में धर्मज्ञान निःसृत हुआ था। इसी में आपकी मुक्ति है।
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
वेदमार्ग
नूनव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः।
प्रत्नवद् रोचया रूचः ।। ऋग्वेद 1:1:8।।
अनुवाद- नये और नूतनतर सूक्तों के लिए पथ हमवार
करता जा, जैसे पिछले लोगों ने ऋचाओं पर अमल किया था।
यज्ञं प्रच्छामि यवमं।
सः तद्दूतो विवोचति किदं ऋतम् पूर्व्यम् गतम।
कस्तदबिभर्ति नूतनौ।
वित्तम मे अस्य रोधसी।। ऋग्वेद 1:105:4।।
अनुवाद- मैं तुझसे सबसे बाद में आने वाले यज्ञ का सवाल पूछता हूँ। उसकी विवेचना वह पैग़म्बर आकर बताएगा। वह पुराना शरीअत का निज़ाम कहाँ चला गया जो पहले से चला आ रहा था ? उसकी नयी व्याख्या कौन करेगा? हे आकाश पृथ्वी! मेरे दुख पर ध्यान दो।
ग़ज़ल
पानी
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी
ज़फ़र गोरखपुरी (मुंबई)
लिप्यांतरण : अबू शाहिद जमील
इतना जहर घोला गंगाजल में
कानपुर-कानपुर शहर का मैला ढोते-ढोते रूठ गई गंगा ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। गंगा बैराज बनाकर भले गंगा का पानी घाटों तक लाने की कवायद हुई मगर वो रौनक शहर के घाटों पर नहीं लौटी। कानपुर शहर गंगा का बड़ा गुनाहगार है। 50 लाख की आबादी का रोज का मैला 36 छोटे-बडे़ नालों के जरिए सीधे गंगा में उड़ेला जाता है। 50 करोड़ लीटर रोजाना सीवरेज गंगा में डालने वाले इस शहर में गंगा एक्शन प्लान, इंडोडच परियोजना के तहत करोड़ों रूपए खर्च किए गए। जाजमऊ में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर इस शहर में स्थापित हैं। गंगा की गोद में सैकड़ों लाशे यूँ ही फेंकी जाती रहीं है और यह हरकत अब तक जारी है। गंगा की गोद के किनारे बसे जाजमऊ की टेनरियों से निकला जहरीला क्रोमियम गंगा के लिए काल बन गया। टेनरियों से निकलने वाले स्लज में क्रोमियम की मात्रा खतरानक स्थितियों तक पहुँच गई, तब भी यह शहर और सरकार के अफसर नहीं जागे। जाजमऊ के दो दर्जन पड़ोसी गाँव शेखपुर, जाना, प्योंदी, मवैया, वाजिदपुर, तिवारीपुर, सलेमपुर समेत अन्य में ग्राउंड वाटर 120 फिट नीचे तक जहरीला हो गया तो प्रशासन के होश उड़ गए। खेत जल गए और अब पशुओं का गर्भपात होने लगा है। काला-भूरा हो गया गंगा का पानी आचमन के लायक तक नहीं बचा।
पुनश्चः
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
सच में हम कुछ भी नहीं बचा पा रहे है.....
अब इन पहेलियों को कौन बचायेगा?
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विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
sahi kah apne
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी