सलीम खान के निरंतर अनुरोध पर अपने तमाम हिचक और हिचकियों के बाद मैंने लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन को आखिर ज्वाईन कर लिया है .मगर मेरी कुछ शर्ते हैं.मगर पहले मैंने क्यों ज्वाईन किया है इस पर कुछ रोशनी डालता चलूँ .सलीम खान के निरंतर अनुरोध को मेरे द्वारा टाला जाना संभव नहीं हो पाया .मैं उस प्रजाति में से हूँ कि किसी को भी न कह पाना बहुत मुश्किल पाता हूँ .दूसरे यह मंच सामाजिक सरोकारों के लिए बहुत कुछ कर सकता है इस संभावना से भी मैं उत्साहित हूँ -मुझे पता नहीं कि यह संस्था सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीन पंजीकृत है या नहीं ? अगर नहीं है तो इसे शीघ्र कराने की कार्यवाही की जानी चाहिए .जाकिर को इसका अनुभव है वे मददगार हो सकते हैं .
मैं एक फुल टाईमर लोकसेवक हूँ इसलिए मात्र वैज्ञानिक और कला विषयक प्रविष्टियों पर मेरी जवाबदेही और सहयोग यहाँ हो सकेगा -बाकी से मेरा कोई नाता नहीं है और न ही मेरी जिम्मेदारी .यद्यपि इस ब्लॉग पर व्यक्त विचारों और टिप्पणियों की साझी जिम्मेदारी से हम मुक्त नहीं हो सकते -इसलिए हमरा प्रयास होना चाहिए कि हम ऐसी कोई बात न कहें और न प्रचारित करें जिससे समाज की साम्प्रदायिक संरचना को ठेस पहुँचती हो .हमें धर्म के मामलों पर बातों को कहने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए -धर्म वही है जो इंसानियत सिखाये ,इंसान बनाए बाकी सब बकवास है कूड़ा-करकट है .मैं जनता हूँ यह कहना आसान है और अमल में लाना मुश्किल .मगर कोशिश करने से क्या संभव नहीं है ?
हम यहाँ समाज के कई और मुद्दों को ले सकते हैं जो ज्यादा जमीनी हैं ,ज्यादा जरूरी हैं .हनुमान ने मंदिर क्यों नहीं तोडा और फलाने ने मस्जिद क्यों ढहाई ? शायद इन बातों की समझ और सलीके से कहने को अभी यह मंच परिपक्व नहीं है .यह सब कहते हुए हम अपने कबीलाई दौर में पहुँच जाते हैं जहाँ पत्थरों के बड़े भोडे आकार के आयुधों से लोगों के सर भुरता कर दिए जाते थे-तबसे मानव का बड़ा सांस्कृतिक विकास हुआ है- हमने बहुत तहजीब सीखी है -हम फिर उसी हिंस्र युग में नहीं जा सकते -मगर मनुष्य की तहजीब ने जो बदलाव किये हैं दुःख है कि वह बहुत कुछ ऊपरी ही है -आज भी हमारे अंदर एक वनमानुष ही छुपा है -क्या इस को साबित करने के लिए प्रमाण चाहिए ? बात बात में हम एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठते हैं .क्या यह प्रमाण कुछ कम है ? और हमको फिर से वनमानुष बनाने वाले तत्व कौन हैं -मजहब /धर्म की श्रेष्ठता की बकवादें,दीगर रकीबी - जर जोरू जमीन के मामलात ,खुद को सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ -हिटलर बनने का सपना ,नस्ली श्रेष्टता की सोच -हम यह भूल जाते हैं कि हम सब एक ही माँ के जाए हैं जो आज धरती पर मानव के नाम से जाने जाते हैं -हमारी वह माँ जो करीब करोड़ वर्ष पहले अफ्रीका में जन्मी थी -बस उस एक की औलादें ही आज कई अरब हो चुकी हैं -बाकी माओं के न जाने दूध में कुछ जान न रही होगी शायद जो उनकी संताने हमारे साथ यहाँ तक मनुष्यता का परचम थामे नहीं आ पाई .
हम एक मूल के हैं -सभी जेनेटिक तौर पर ९९.९ फीसदी समान -बस समयांतराल के साथ इस विशाल धरा पर फैलते गए -याद है वह नूह की कश्ती ? आर्क आफ नोआ ? मनु की नौका ? सब एक है मेरे भाई -उस महाप्रलय से हम बच गए मगर आज के भाई भाई की दुश्मनी से बच पायेगें -यह कहना मुश्किल लगने लगता है . हमारा मूल एक है -हम एक वंशमूल के हैं -मैंने अपना डी एन ये जंचवाया -जो कि ईरान की आबादी में आज रह रहे लोगों से सौ फीसदी मिलता है .तब भी हम इतने अहमक हैं कि धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं -हो सकता है सलीम की उसी जीनिक पुकार ने मुझे विचलित कर दिया हो और आज इस नक्षत्र -घड़ी में मैंने लखनऊ ब्लागर असोसिएशन ज्वाईन कर लिया है.
आशा है सलीम भाई मेरे विश्वास की कद्र और रक्षा करेगें .
अरविन्द मिश्रा जी, आपकी एक एक बात अक्षरशः सत्य है और मुझे लगता है कि इन सभी बातों को लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन के सभी सदस्यों को ध्यान में रखना चाहिए और मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी को कोई भी आपत्ति होनी चाहिए. यह सभी के लिए, और लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन के लिए हितकारी होगा. मुझे उम्मीद है कि मेरे साथी सदस्य-गण इन बातों को समझ सकेंगे !!!
सबसे बड़ी बात यह है कि अभी यह संदर्भित संस्था से पंजीकृत नहीं है और इस विषय पर ज़ाकिर भाई से थोड़ी बातें भी हुई हैं, मुलाक़ात न हो सकने पर आगे कुछ नहीं हो सका है. इंशा अल्लाह मैं इस बारे में बात करूंगा...
सलीम खान,
संयोजक
लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन
हम एक मूल के हैं -सभी जेनेटिक तौर पर ९९.९ फीसदी समान -बस समयांतराल के साथ इस विशाल धरा पर फैलते गए -याद है वह नूह की कश्ती ? आर्क आफ नोआ ? मनु की नौका ? सब एक है मेरे भाई -उस महाप्रलय से हम बच गए मगर आज के भाई भाई की दुश्मनी से बच पायेगें -यह कहना मुश्किल लगने लगता है . हमारा मूल एक है -हम एक वंशमूल के हैं -मैंने अपना डी एन ये जंचवाया -जो कि ईरान की आबादी में आज रह रहे लोगों से सौ फीसदी मिलता है .तब भी हम इतने अहमक हैं कि धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं -हो सकता है सलीम की उसी जीनिक पुकार ने मुझे विचलित कर दिया हो और आज इस नक्षत्र -घड़ी में मैंने लखनऊ ब्लागर असोसिएशन ज्वाईन कर लिया है.
आमीन, सुम्मा आमीन।
I am highly sceptical about this move of yours. Having my own apprehensions in this regard, I am not welcoming your decision. Sorry.
मिश्र जी, अपनी तो आदत है खरी बात कहने की,चाहे किसी को बेशक बुरी लगे।
सच कहें, हमें तो आपका ये निर्णय किसी भी प्रकार से उचित नहीं लगा। हमें तो लगने लगा है कि कहीं न कहीं आप अपनी प्रकृ्ति को छोडकर कुछ लोगो के रंग में रंगते चले जा रहे हैं। एक नहीं बल्कि कईं लोग हैं जो आपका दुरूपयोग कर रहे हैं...ये मैं आपके सिर्फ इस मंच से जुडने की वजह से नहीं कह रहा हूँ..बल्कि मैं बहुत पहले से इसे अनुभव कर रहा हूँ।
कुछ गलत कह दिया हो तो क्षमा चाहूँगा....कह इसलिए रहा हूँ क्यों कि लाख वैचारिक मतभेद होने(ज्योतिष<>विज्ञान के चलते)के बावजूद भी कहीं न कहीं आपकी प्रतिभा, आपकी विद्वता हमें कायल करती रही है।
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आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
आपने निर्णय लिया है तो सही ही होगा... परन्तु सामूहिक ब्लॉग ज्वायन करने का एक ही फायदा मुझे समझ में आता है कि आप अपनी पोस्ट एक और जगह लगा सकते हो... थोड़ी विजिबिलिटी बढ़ जाती है... कुछ बंधे हुऐ पाठक-टिप्पणीकार भी मिल जाते हैं (उसी सामुदायिक ब्लॉग के अन्य सदस्यों के रूप में)...
पर ब्लॉगिंग एक व्यक्तिपरक (individualistic) माध्यम है... अत: मुझे लगता है कि आप फालतू के टेंशन के अलावा कुछ नहीं पायेंगे यहाँ...
लखनऊ बलोगर एशोसियेसन के नाम पर पिछले दिनों जिस तरह की गंद बिखेरी गई है....उसे देखकर लगता नहीं कि आप उसे कुछ कम कर पायेंगे....औऱ कर पाये तो बहुत अच्छा.....बाकि सामुहिक ब्लोग मैं हर पोस्ट सब की सामुहिक जिम्मेदारी सी होती है.....तो क्या आप भी......
@मिहिरभोज ऐसी सभी पोस्ट डिलीट कर दी गयीं हैं....
@मिहिरभोज और ऐसी कोई भी टिपण्णी और पोस्ट आईंदा डिलीट कर दी जायेंगी जो कि वैमनष्यता फैलाएं.... धार्मिक सौहार्द और प्रोत्साहन के लेख का स्वागत है लेकिन वैमनष्यता फ़ैलाने वाले तत्वों से हम गुरेज़ रखने में इंशा अल्लाह सक्षम रहेंगे!!!