दूसरी ओर लगभग इसी समय हमारे विदेशमंत्री एस0एम0 कृष्णा, चीन से राजनयिक संबधों के दो दशक पूरे होने पर खुशी जाहिर करने बीजिंग गये। संबंधो को मजबूती हेतु गुलाम कश्मीर, वीजा विवाद और अरूणाचल प्रदेश में दखल अदांजी आदि मसलों को उठाया गया, परन्तु चीन नें कोई तवज्जो नहीं दी।
इसी समय चीनी दूतावास की ओर से विवादित नत्शी वीजा अरूणचल प्रदेश निवासी पेंबा तमांग को जारी किया गया जो राष्ट्रमंडल खेलो में निशानेबाजी का स्वर्ण पदक प्राप्त-करता रहे थे। जाहिर है कि भारत नत्थी वीजा के खिलाफ है, इसी हेतु निशाने बाज नें जाने से इन्कार किया।
हमारे प्रधानमंत्री विदेशी-मामलों के माहिर नहीं हैं, वे प्रख्यात अर्थ-शास्त्री हैं, ये और बात है कि भारतीय अर्थ-व्यवस्था को वह आश्वासनों के बावजूद अभी तक पटरी पर नहीं ला सके और उनकी अर्थ-नीति धनवानों को लाभ पहुँचाने वाली और अमेरिका द्युरी पर नाचने वाली है।
जहाँ तक विदेश-नीति की बात है, इस मोर्चे पर मनमोहन सिंह ने दो अपरिपक्क ब्यक्रियों को लगा दिया। थुरूर नें तो कई विवाद पैदा किये और निकाले गये। कृष्णा जी हर मोर्चे पर असफ़ल रहे। वर्तमान असफ़लता बीजिंग यात्रा की रही। तथा उनके सतकक्ष यंग नियामी नें कृष्णा की बातें दरकिनार कर दीं। यह वही समय था जब ब्राजीलिया में मनमोहन जी जिताओ से हाथ मिला रहे थे।
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये।
किसी शायर द्वारा कही हुई पंक्ति में अगर इस प्रकार संशोधन कर दें, तो कैसा रहेगा ? दिल तो मिलता नहीं, बस हाथ हिलाते रहिये।डॉक्टर एस.एम हैदर

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दिल तो मिलता नहीं, बस हाथ हिलाते रहिये। वाह, क्या खूब.