सृजन होता है कुछ रचने के लिए और जब ये कलम चलती है तो जो सृजन होता है - उसमें एक शक्ति होती है. इंसान को हंसाने , रुलाने या फिर उत्तेजित और आक्रोशित करने की. सभी मनोभावों से युक्त रचना लेखक को एक महत्वपूर्ण स्थान देती है. इस ब्लॉग्गिंग ने रचना और रचनाकार के लिए बहुत सारे आयाम खोल दिए हैं. अपनी रूचि के अनुरूप विषय को उठ लिया और रच दिया.
कहीं कुछ ऐसा भी रचा जाता है की जो आक्रोश पैदा कर सकता है बल्कि यों कहिये की कर ही देता है. अगर लिखने वाला सामने हो तो कुछ सिरफिरे तो मारपीट तक कर बैठे. लेकिन क्या ये कलम हमने इसलिए उठाई है की इससे निकले शब्द आक्रोश और क्रोध के जनक बनें? नहीं - हमारी एक रचनाधर्मिता है और ये हर एक की होनी चाहिए. हमें धर्म पर लिखने का अधिकार है लेकिन धर्म की वह व्याख्या जो की धार्मिक सहिष्णुता को जन्म दे न की धर्मान्धता का प्रतीक हो. मैं हिन्दू होकर सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ और अगर मैं अन्य धर्म पर या उनके महान चरित्रों को गलत शब्दों में और गलत दृष्टि से व्याख्यायित करने लगूं तो ये इसमें मेरा बड़प्पन बिल्कुल भी नहीं है. वह हमारी मानसिक संकीर्णता को प्रदर्शित कर रहा है. दूसरे धर्म वाले इसको सहन नहीं करेंगे और क्यों करे? हम जिस धर्म के अनुयायी है , उसमें हमारी पूरी श्रद्धा और विश्वास है. हम अपनी श्रद्धा और विश्वास से खेलने का अधिकार किसी को नहीं देते और शायद कोई भी नहीं देगा. इस तरह के लेखों से वाहवाही मिल सकती है क्योंकि एक सोच के बहुत से लोग हो सकते हैं लेकिन खुलकर सामने आने का साहस नहीं तो बेनामी या फिर छद्म नाम से तालियाँ बजने का काम करने लगते हैं और लिखने वाले को लगता है की मेरा लेखन बहुत सार्थक है.
ये क्षेत्र बुद्धिजीवियों का है - उनकी कलम तलवार से अधिक तेज होती है. हम कलम के सिपाही हैं तो अपनी ऊर्जा ऐसे मुद्दों पर लगाये जिससे की वास्तव में समाज , राष्ट्र और जनहित हो सकता हो. हम राम सीता, कृष्ण या फिर गुरुनानक ईसा , मुहम्मद साहब, महावीर या बुद्ध को अपनी गलत बयानी से प्रस्तुत करें तो ये हमारा मानसिक दिवालियापन है. हमें सबकी भावनाओं और विश्वास को सम्मान देते हुए सृजन करना है. इस समाज में व्याप्त लाखों समस्याओं और बुराइयों को उठाना है, उससे जन जागरण होगा. धर्मगुरुओं या धार्मिक चरित्रों को अपने विचार से परिभाषित करने से कोई क्रांति की संभावना नहीं है. हमें धर्म निरपेक्ष होकर लिखना है. धर्म की व्याख्या कीजिये - उसके सकारात्मक पक्षों को उजागर कीजिये. हर चीज की जानकरी किसी को नहीं होती और दूसरे धर्म के बारे में तो बिलकुल ही नहीं. उसको सब प्रेम से पढेंगे और जानेगे . ये सेवा है . हमारी श्रद्धा सभी में है - हम मजार पर चादर चढाते हैं, मंदिरों में घंटे बांधते हैं, गुरुद्वारे में लंगर चखते हैं. क्या ये हमारी धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक नहीं है? हम सिर्फ इंसान है और हर धर्म सत्य, नीति , जीव के प्रति प्रेम, दया , सदाचरण और सद्भाव का ही पाठ पढ़ाता है, अगर हम संकीर्णता में लिप्त है तो हम किसी भी धर्म के अनुयायी हो ही नहीं सकते हैं. लिखिए और दिल खोल कर लिखिए लेकिन ऐसा जो कोई सन्देश दे, जाग्रति दे, यही रचनाधर्मिता है और उसकी शुचिता को कायम रखिये . मेरी तो सभी से यही गुजारिश है कि हम सिर्फ इंसान हैं और इंसान ही बने रहना है.
अच्छा सोच ।
बाहर सार्थक और सटीक लेख....
बहुत सही। उपयोगी चीजें ही रखी जाने योग्य होती हैं।
सृजन होता है कुछ रचने के लिए --- srijan va rachanaa samaanaarthak shabd hain.
Rekha bahan
mujhe yah kahne bilkul bhi sankoch nahi ki main bhi gutkha v tambakoo ka sevan karta hu. vishesh taur par tab jab likhne baithata hu
aaj se band band........band
taki jab kabhi bloger bhaiyon se mulakat ho to sharmindgi na uthani pade.