है न अजीब सा शीर्षक, भला बताइए अमीर के कुत्ते और गरीब के बच्चे में भी कोई समानता हो सकती है, भाई वो अमीर का कुत्ता है. शानो-शौकत से रहने की उसकी आदत तो होगी ही, आज सुबह जब मैं सो कर उठा और बाहर निकला तो हमारे गेट के सामने कूड़े के ढेर से कागज उठा एक बच्चा मुझे देखकर सहम गया, जैसे वो कोई चोरी करते हुए पकड़ा गया हो, उसकी आँखों में दया याचना देख मैं खुद ही सिहर उठा, मैं सोचने लगा अभी हम लोंगो के बच्चे सोकर भी नहीं उठे है और यह बच्चा दो रोटी के जुगाड़ के लिए अपने मासूम कंधो पर बोरी उठाये रद्दी कागज बीनने निकल पड़ा है. जी हा भदोही कालीन नगरी के रूप में पूरे विश्व में विख्यात है, करोडो के कालीन यहाँ से निर्यात किये जाते हैं, पर उन्ही कालीनो में अपनी कलात्मकता का रंग भरने वाले मजदूर अपने बच्चों के लिए भरपेट भोजन का भी इंतजाम नहीं कर पाते, सुबह सबेरे रोजाना कालीन नगरी सडको पर तमाम ऐसे बच्चे दिखाई पड़ते हैं जो कूड़े के ढेर पर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते है. कल एक समाचार पढ़ा था, आँध्रप्रदेश के बाद उत्तरप्रदेश दूसरा राज्य है जहा दलितों पर सबसे अधिक अत्याचार हुए है. अफ़सोस की बात तो यह है की दलितों के नाम पर बनी बसपा सरकार भी इनके दुखो को दूर नहीं कर पाई है. केंद्र व् प्रदेश की सरकारे सर्व शिक्षा अभियान का नारा लगाकर करोडो रूपये पानी की तरह बहा रही है किन्तु यह पैसा कहा जा रहा है कहने की बात नहीं है. आज भी लाखों बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल का मुह नहीं देख पाए हैं., पिछले दिनों एक किताब के बिमोचन समारोह में मुझे बोलने के लिए बुलाया गया, मैं ऐसे मौको पर बोलने से बहुत घबराता हू क्योंकि झूठ बोल नहीं सकता और सच बोलने पर लोग नाराज हो जाते है. , फ़िलहाल फंसा तो था ही लिहाजा बोलना पड़ा, जब मैंने कहा की भदोही में करोडपति लोग रहते हैं. गेट के अन्दर जाइये तो संगमरमर बिछे है. जबकि बाहर नालियां बजबजा रही है. इसके लिए लोग नगर पालिका की तरफ मुह उठाये रहते है, बस क्या था लोगो को बुरा लग गया, खुसुर फुसुर शुरू हो गयी, लोगो की गुस्से भरी निगाहे मेरे ऊपर उठ गयी,.. बस चुप हो जाता तो ठीक था लेकिन क्या करे दिल है की मानता ही नहीं... फिर बोल उठा नगर में समाज सेवियों की भरमार है लेकिन कितने मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज कराते-कराते दम तोड़ देते है. हे भगवान संचालक घूर रहा है हट जाता हूँ........
मैं आपसे पूछता हूँ क्या इन मासूमो को अपना बचपन खेलकर बिताने का हक़ नहीं है, इन्हें स्कूल जाने का हक़ नहीं है? क्या अमीर के कुत्ते को देखकर यह नहीं सोचते होंगे की अगले जनम में................
मार्मिक पोस्ट लगाई है .................... पर दुःख की बात यह है कि यह सत्य है .......... हमारे समाज का एक घिनोना और नंगा सच ! जिन की संपत्ति ३ साल में कई गुना बढ़ गयी वह भी कुछ नहीं करते इन लोगो के लिए | अब बारी हमारी है शायद हम ही कुछ कर पाए .........एक कोशिश तो की ही जा सकती है !
मार्मिक स्थितियाँ.
स्थिति बहुत विषम है
भदोही का कालीन उद्योग ही क्यों, उत्तरकाशी में आतिशबाजी उद्योग भी जहाँ की औसत आयु मात्र पच्चीस वर्ष के आसपास ही भटक रही है खतरनाक रसायनों के बीच बचपन के गुम होने के कारण
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इनके लिये किस प्रकार की सन्स्था खोली जाय जहां इन्हे उचित नियन्त्रण के साथ शिक्षा इत्यादि मिल सके। ताकि अमीरों के कुत्तो को देखकर आफ़सोस न हो ? रचना मार्मिक!
इंसानी लोभ लालच और पैसे की भूख ने इंसानियत के जज्बात को दफ़न कर सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ को जन्म दिया और पोषित किया है जिसे आज के शिक्षा व्यवस्था ने विस्तार देने का काम किया है /
वे भी यहीं दूध से जो अपने श्वानों को नहलाते हैं
ये बच्चे भी यहीं कब्र में दूध दूध जो चिल्लाते हैं
चन्द शब्दों में कुछ यूँ समझ लीजिये :::
इन सबकी जड़ है पूंजीवाद............
सलीम ख़ान
संयोजक
Lucknow Bloggers' Association
लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन
प्रशंसनीय ।