ये होता तो वो होता
( डॉ श्याम गुप्त )
ये होता तो वो होता
यूं होता तो ये होता।
ये न हुआ तो वो न हुआ,
यूं न हुआ तो क्यूं न हुआ।
ये होता तो क्या होता,
ये होता ये ना होता।
वह ना होता वह होता,
जो न हुआ वो ना होता।
यह भी कोइ बात हुई,
बात बात की बात हुई।
तुम्ही कहो क्या बात कहें,
क्या होता क्या बात कहें ।
यह मत सोचो क्या होता,
ये होता या वो होता॥
सोचो हमने किया है क्या,
जग को हमने दिया है क्या।
किसका कितना किया भला,
सत्कर्मों का दीप जला।
कर्म हमारे कैसे हैं,
एसे हैं या वैसे हैं ॥
भला किसी का क्यों न किया,
क्यों न सत्य का साथ दिया।
क्यों न किया परमार्थ कोइ,
सभी कर्म में स्वार्थ जिया।
किया देश हित कर्म कोइ,
औ समष्टि हित धर्म जिया।
मानव मानव प्रीति के हित,
क्यों न समर्पण भाव लिया।
यह सोचें तो अच्छा है,
यही करें तो अच्छा है॥
सत्य कर्म यदि सभी करें,
भला सभी का तब होता।
जैसा जो भी है बोता,
उसके साथ वही होता।
ये होता तब वो होता ,
मैं करता तब तो होता;
तू करता तब तो होता॥
---के-३४८, आशियाना लखनऊ , २२६०१२
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