साम्राज्यवाद का दुःस्वप्नः क्यूबा और फिदेल
आइजनहावर, कैनेडी, निक्सन, जिमी कार्टर, जानसन, फोर्ड, रीगन, बड़े बुश और छोटे बुश, बिल क्लिंटन और अब ओबामा-भूलचूक लेनी-देनी भी मान ली जाए तो अमेरिका के 10 राष्ट्रपतियों की अनिद्रा की एक वजह लगातार एक ही मुल्क बना रहा - क्यूबा।
1991 में जब सोवियत संघ बिखरा और यूरोप की समाजवादी व्यवस्थाएँ भी एक के बाद एक ढहती चली गईं तो यह सिर्फ पूँजीवादियों को ही नहीं वामपंथियों को भी लगने लगा था कि अब क्यूबा नहीं बचेगा। फिर जब फिदेल कास्त्रो की बीमारी और फिर मौत की अफवाह फैलाई गई तब भी यही लगा था कि फिदेल के मरने के बाद कौन होगा जो इतनी समझदारी और कूटनीति से काम लेते हुए क्यूबा को अमेरिकी आॅक्टोपस से बचाये रख सके।
लेकिन क्यूबा बना रहा। न केवल बना रहा बल्कि अपने चुने हुए रास्ते पर मजबूत कदमों के साथ आगे बढ़ता रहा।
फिदेल कास्त्रो को मारने और क्यूबा की आजादी खत्म करने की कितनी कोशिशें अमेरिका की तरफ से हुई हैं, इसकी गिनती लगाते-लगाते ही गिनती बढ़ जाती है। सन 2006 में यू0के0 में चैनल 4 ने एक डाॅक्युमेंट्री प्रसारित की थी जिसका शीर्षक था-कास्त्रो को मारने के 638 रास्ते (638 वेज टु किल कास्त्रो)। फिल्म में फिदेल कास्त्रो को मारने के अमेरिकी प्रयासों का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया था जिसमें सी.आई.ए. की मदद से फिदेल को सिगार में बम लगाकर उड़ाने से लेकर जहर का इंजेक्शन देने तक के सारे कायराना हथकंडे अपनाए गए थे। तकरीबन 40 बरस तक फिदेल कास्त्रो के सुरक्षा प्रभारी और क्यूबा की गुप्तचर संस्था के प्रमुख रहे फेबियन एस्कालांते बताते हैं कि ’लाल शैतान’ को खत्म करने के लिए अमेरिका, सी0आई0ए0 और क्यूबा के भगोड़े व गद्दारों ने हर मुमकिन कोशिश की। फिल्म के निर्देशक डाॅलन कैन्नेल और निर्माता पीटर मूर ने अमेरिका में ऐशो-आराम की जिंदगी बिता रहे ऐसे बहुत से लोगों से मुलाकात की, जिन पर फिदेल की हत्या की कोशिशों का इल्जाम है। उनमें से एक सी0आई0ए0 का रिटायर्ड अधिकारी फेलिक्स रोड्रिगुएज भी था जो 1961 में क्यूबा पर अमेरिकी हमले के वक्त क्यूबा के विरोधियों का प्रशिक्षक था और जो 1967 में चे ग्वेवारा के कत्ल के वक्त बोलीविया में भी मौजूद था। यहाँ तक कि अमेरिकी जासूसी एजेंसियों की नाकामियों से परेशान होकर अमेरिकी हुक्मरानों ने फिदेल को मारने के लिए माफिया की भी मदद ली थी।
कुछ बरसों पहले 80 पार कर चुके फिदेल कास्त्रो भाषण देते हुए हवाना में चक्कर खाकर गिर गए थे। उनकी पैर की हड्डी भी इससे टूट गई थी। बस, फिर क्या था। अमेरिकी अफवाह तंत्र पूरी तरह सक्रिय होकर फिदेल की मृत्यु की अफवाहें फैलाने लगा। लेकिन फिदेल ने फिर दुनिया के सामने आकर सब अफवाहों को ध्वस्त कर दिया। जब फिदेल के डाॅक्टर से किसी पत्रकार ने पूछा कि क्या उनकी जिंदगी का यह आखिरी वक्त है तो डाॅक्टर ने कहा कि फिदेल 140 बरस की उम्र तक स्वस्थ रह सकते हैं।
लेकिन फिदेल ने क्यूबा की जिम्मेदारियों को सँभालने में सक्षम लोगों की पहचान कर रखी थी। सन् 2004 से ही धीरे-धीरे फिदेल ने अपनी सार्वजनिक उपस्थिति को कम करना शुरू कर दिया था। फिर 2006 में फिदेल ने अपनी जिम्मेदारियाँ अस्थायी तौर पर राउल कास्त्रो को सौंपीं। चूँकि राउल कास्त्रो फिदेल के छोटे भाई भी हैं इसलिए सारी दुनिया में पूँजीवादी मीडिया को फिर दुष्प्रचार का एक बहाना मिला कि कम्युनिस्ट भी परिवारवाद से बाहर नहीं निकल पाए हैं। लेकिन ये बात कम लोग जानते हैं कि राउल कास्त्रो फिदेल के भाई होने की वजह से नहीं बल्कि अपनी अन्य योग्यताओं की वजह से क्यूबा के इंकलाब के मजबूत पहरेदार चुने गए हैं। सिएरा मास्त्रा के पहाड़ों पर 1956 में जिस सशस्त्र अभियान में चे और फिदेल अपने 80 अन्य साथियों के साथ ग्रान्मा जहाज में मैक्सिको से क्यूबा आए थे, राउल उस अभियान का बेहद महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे। बटिस्टा की फौजों से चंद महीनों के भीतर हुई सैकड़ों मुठभेड़ों में फिदेल, चे, राउल और उनके 10 अन्य साथियों को छोड़ बाकी सभी मारे गए थे। यह भी कम लोग जानते हैं कि फिदेल के कम्युनिस्ट बनने से भी पहले से राउल कम्युनिस्ट बन चुके थे। न सिर्फ जंग के मैदान में एक फौज के प्रमुख की तरह बल्कि सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों का भी राउल कास्त्रो ने मुकाबला किया है। मंदी के संकटपूर्ण ौर में खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आज क्यूबा के जिस शहरी खेती के प्रयोग की दुनिया भर में प्रशंसा होती है, वह दरअसल राउल कास्त्रो की ही कल्पनाशीलता का नतीजा है।
बेशक पूरी दुनिया में फिदेल एक जीवित किंवदंती हैं इसलिए क्यूबा से बाहर की दुनिया में हर क्यूबाई उपलब्धि चे और फिदेल के खाते में ही जाती है। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि फिदेल ने अपना इतना विस्तार कर लिया है कि वहाँ अनेक अनुभवी व नये लोग तैयार हैं। राउल कास्त्रो सिर्फ फिदेल के भाई होने का नाम ही नहीं, बल्कि इंकलाब की जिम्मेदारी सँभालने के लिए तैयार लोगों में से एक नाम है।
इंकलाब का बढ़ता दायरा
आज सोवियत संघ को विघटित हुए करीब दो दशक पूरे हो रहे हैं। ऐसी कोई बड़ी ताकत दुनिया में नहीं है जो अमेरिका को क्यूबा पर हमला करने से रोक सके। क्यूबा से कई गुना बड़े देश इराक और अफगानिस्तान को अमेरिका ने सारी दुनिया के विरोध के बावजूद ध्वस्त कर दिया। चीन में कहने के लिए कम्युनिस्ट शासन है लेकिन बाकी दुनिया के कम्युनिस्ट ही उसे कम्युनिज्म के रास्ते से भटका हुआ कहते हैं। उत्तरी कोरिया ने अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु शक्ति संपन्न बनने का रास्ता अपनाया है। फिर अब अमेरिका को कौन सी ताकत क्यूबा को नेस्तनाबूद करने से रोकती है? वह ताकत क्यूबा की क्रान्तिकारी जनता की ताकत है जिसे पूरी दुनिया की मेहनतकश और इंसाफ पसंद जनता अपना हिस्सा समझती है और अपनी ताकत का एक अंश सौंपती है।
पिछले बीस बरसों से वे लगातार चुनौतियों से जूझ रहे हैं अनेक मोर्चों पर बिजली की कमी की समस्याएँ, रोजगार में कमी, उत्पादन और व्यापार में कमी और बाहरी दुनिया के दबाव अपनी जगह बदस्तूर कायम हैं ही, फिर भी, इतने कम संसाधनों और इतनी ज्यादा मुसीबतों के बावजूद क्यूबा ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जन पक्षधर जरूरी चीजों को अपने नागरिकों के लिए अनुपलब्ध नहीं होने दिया। अप्रैल 2010 में क्यूबा के लाखों युवाओं को संबोधित करते हुए राउल कास्त्रो ने कहा कि ’इतनी मुश्किलों में से उबरने की ताकत सिर्फ सामूहिक प्रयासों और मनुष्यता को बचाने की प्रतिबद्धता से ही आती है, और वह ताकत समाजवाद की ताकत है।’ ये सच है कि कई मायनों में क्यूबा की जनता आज सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। लेकिन वे जानते हैं कि इसका सामना करने और हालातों को अपने पक्ष में मोड़ लेने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सर्वग्रासी पूँजीवाद अपने जबड़े फैलाए क्यूबा के इंकलाब को निगलने के लिए 50 वर्षों से ताक में है। चे ने 1961 में लिखा था कि गलतियाँ तो होती हैं लेकिन ऐसी गलतियाँ न हों जो त्रासदी बन जाएँ। क्यूबाई जनता जानती है कि समाजवाद के बाहर जाने की गलती त्रासदियाँ लाएगी।
आज सिर्फ क्यूबा में ही नहीं, सारी दुनिया में हर उस शख्स के भीतर की आवाज फिदेल और क्यूबा के लोगों और क्यूबा की आजादी के साथ है जिसके भीतर अन्याय के खिलाफ जरा भी बेचैनी है। आज चे, फिदेल और क्यूबा सिर्फ एक देश तक महदूद नाम नहीं हैं बल्कि वे पूरी दुनिया के और खासतौर पर पूरे दक्षिण अमेरिका के साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन के प्रतीक हैं। अमेरिका जानता है कि फिदेल और क्यूबा पर किसी भी तरह का हमला अमेरिका के खिलाफ एक ऐसे विश्वव्यापी जबर्दस्त आंदोलन की वजह बन सकता है जिसकी लहरों से टकराकर साम्राज्यवाद-पूँजीवाद की नाव तिनके की तरह डूब जाएगी।
क्यूबा की प्रेरणा, जोश और फिदेल की अनुभवी सलाहों के मार्गदर्शन में आज लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में अमेरिकी साम्राज्यवाद और सरमायादारी के खिलाफ आंदोलन मजबूत हुए हैं और वेनेजुएला और बोलीविया में तो परेशानहाल जनता ने इन शक्तियों को सत्ता भी सौंपी है। अपनी ताकत को बूँद-बूँद सहेजते हुए पूरी सतर्कता के साथ ये आगे बढ़ रहे हैं। क्यूबा ने उनकी ताकत को बढ़ाया है और वेनेजुएला के राष्ट्रपति चावेज और बोलीवियाई राष्ट्रपति इवो मोरालेस के उभरने से क्यूबा को भी बल मिला है। अमेरिकी चक्रव्यूह से अन्य देशों को भी निजात दिलाने के लिए वेनेजुएला की पहल पर लैटिन अमेरिकी देशों को एकजुट करके ’बोलीवेरियन आल्टरनेटिव फाॅर दि अमेरिकाज’ (एएलबीए) और बैंक आॅफ द साउथ के दो क्षेत्रीय प्रयास किए हैं जिनसे निश्चित ही पूँजीवाद के बनाए भीषण मंदी के दलदल में फँसे देशों को कुछ सहारा भी मिलेगा और साथ ही समाजवादी विकल्प में उनका विश्वास बढ़ेगा। अब तक इन प्रयासों में हाॅण्डुरास, निकारागुआ, डाॅमिनिका, इक्वेडोर, एवं कुछ अन्य देश जुड़ चुके हैं। यह देश मिलकर अमेरिका की दादागीरी को कड़ी व निर्णायक चुनौती दे सकते हैं। नये दौर में ऐसी ही रणनीतियाँ तलाशनी होंगी।
-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740
(क्रमश:)
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