मैं मीडिया मंच .कॉम पढ़ रहा था उसी दौरान मेरी निगाह इस फोटो पर पड़ी. मैं यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया रह गया की आज के आधुनिक युग में लोग अपने बच्चो को गोद में लेकर बाहर निकलने में भले ही परहेज करे किन्तु कुत्तो को लेकर निकलने गर्व की अनुभूति करते हैं. जरा ध्यान से देखिये इस फोटो को एक माँ कैसे शान से अपने कुत्ते को कंधे पर बैठा कर ले जा रही है. जबकि उसी माँ की मासूम बच्ची पैदल चलने को मजबूर है. अब जरा कंधे पर बैठे महाशय के चेहरे पर नजर डालिए कैसी शानदार अदा में फोटो खिंचा रहे है.

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nice
क्या कहें …………तभी तो आज इंसान कहता है………………अगले जनम मोहे ……………ही कीजो।
आज ज़माना इंसानों का रहा ही कहाँ है।
वैसे एक तस्वीर से कुछ कह नहीं सकते,
लेकिन पैदल चलने को लेकर ये न कहें कि बच्ची पैदल चलने को मजबूर है। बच्चों के लिये भी पैदल चलना एक्दम मुफ़ीद होता है। उल्टा मुझे अजीब लगता है देखकर कि बहुत से लोग जबरदस्ती बच्चों को गोद उठाये रहते हैं।
वंदना जी के विचार से सहमत ,पता नहीं किधर जा रहा है इन्सान ...
जे जनाब जी जे शक्ल देख के कुते कुतियाँ पहचानने की कला का भी खुलासा कर दीजो जी जे है जो है की हाहा
श्वान पुत्र या पुत्री को पसंद करके - अच्छे खासे पैसे चुका के लाया गया है इसलिए उसे शिरोधार्य किया जाना नितांत स्वाभाविक है |
इसके विपरीत पुत्र या पुत्री तो अनायास ही हो जाते है - बाई मिस्टेक !!!
उन्हें थोड़े ही सिर या कंधे पर बैठाएंगे - टेल टेल - बोलो बोलो ???