उन्होंने तो पशु खाया आप ने क्या किया ??
आज दिल ने कहा की एक और सच बात आप सब से सांझी की जाए |
मेरा शहर उत्तरप्रदेश सीमा से लगता है
यहाँ से पशुओं को ले जाया जाता है अर्थार्त पशु तस्करी का बोर्डर ,
मेरे सीमावर्ती जिले में में एक बहुत बड़ा बूचड़खाना और अनेक छोटे - छोटे भी है वहाँ रोजाना हजारों पशु कटते है |
जिनमे गाय,भैंस,कटड़ा ,बछड़ा ,बैल होते है |कुछ मीट लोकल बिक जाता है और बहुत बड़ी मात्रा में पैक/फ्रीज़ कर के अन्य शहरों राज्यों में भेजा जाता है |
हड्डियां फैक्ट्री में जंतु चारकोल(दवा उद्योग में प्रयुक्त)
चमड़ा आगरा को
चर्बी उद्योगों में घरेलू उत्पादों में
खून नालो से होता हुआ नदी/नहर में
बदबू हवाओं में होती हुई सांसो ने ली
नाके पर से ये पशु निम्न तरीको से बोर्डर पार होते है|
१. ट्रको,कैंटरो,ट्रालो से
२.सीमावरती गावों से झुंडो में
३ .यमुना नदी के रास्ते कच्चे से
पहले नम्बर वाला तरीका जयादा प्रचलित है
दूसरा व तीसरा तरीका तब प्रयोग होता है जब माल पास से ही ख़रीदा गया हो या रोजाना वाले छोटे व्यपारी (तस्कर)
अब दूसरा पहलु :-
लोकल शहर में कई दल है जो दबाव गुटों की तरह सक्रिय रह कर इन पशुओं को छुडवाते है
और
नाम ,पुण्य कमाते है अख़बारों में नाम फोटो (मुक्त पशुओं व तस्करों के साथ) आती है |
तस्कर अगले दिन कोर्ट में (कुल में से नाम नात्र ही )
पुण्य आत्माए अपने अपने घरों को
नाके पर सुरक्षाकर्मी अपने काम पर
ट्रक थाने में(बतौर पार्किंग)
और पशु
देखे जरा यहाँ
मजबूर है कूड़ेदानो में मुँह मारने
को ,पोलीथीन निगल कर पेट दर्द से तड़प-तड़प कर मरने को |
हजारों की संख्या में पशु खेतों में फसलों को खाते हुए खदेड़ कर फिर से बार्डर पार या फिर मार दिए जाते है कीटनाशक दे कर |
पशु भी घर घर जा कर भीख मांगने को मजबूर है
ट्रेनों के नीचे आने को
सड़कों पर मरने को
दुत्कार खाने को
छोटे तस्करों के हाथो पैदल फिर वहीँ पहुचने को मजबूर है
कहने को तो गोशालाएं भी है पर वहाँ भी दुधारू पशुओं की ही जरूरत है मुफ्त में चारा खोरो की नहीं |
अब बताओ इन के लिए क्या बदला
अगर ये दूध देते तो पंजाब ,हरियाणा ,हिमाचल के पशुपालक इन को क्यूँ बेचते इनको मात्र २००-३०० रूपयों में
और एक दर्दनाक बात :-
तस्कर इन का वजन बढ़ाने के लिए इनको पानी में कापर सल्फेट घोल के पिलाते है जो किडनी (गुर्दों) की कार्यप्रणाली को बाधित करती है जिस कारण शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है जिस से वजन बढ़ जाता है कंयुकी वहाँ तो इन्होने तोल कर के ही बिकना है
कुछ तो ट्रकों में ही मर जाते है
लाशें भी काट कर बेच दी जाती है
अंत में
रोजगार भी चल रहा है,भूख भी मिट रही है ,पुण्य भी कमा रहे है|
आईये पढें ... अमृत वाणी!
oh bada hi samvedansheel prashn uthaya hai aapne..in maveshiyon ki haalat shehrikaran ki wajah se bad se badtar hoti ja rahi hai...bechare kuch bol bhi nahi sakte...
दिलीप जी
सवेदनशील एवं क्रूरतापूर्ण दोनों
Bahut hi sunder.
Charbi se deshi ghee banega. Haddi s calsium ki goli aur poder.
kabhi mauka mile to padhiyega.
www.taarkeshwargiri.blogspot.com
Shame! Shame!
sach baat man lijiye chehre par dhool hai... iljam aaine pe lagana fijool hai. ham sabhi iske liye doshi hain
हृदय विदारक!
taarkeshwargiri जी
चर्बी का उपयोग साबुन बनाने में भी होता है |
कोन खाता है इनको सब को पता है