समाचार पत्र "हरिभूमि" के आज के संस्करण में मेरा व्यंग्य -
"चूहा तो महज़ प्राणी है"
सुबह आँख खुली और हमने टीवी का बटन ऑन कर दिया। सामने एक खबरिया चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी कि ‘मुख्यमंत्री जी को चूहें ने काटा’। देखिये कैसा कलयुग आ गया है, अब तक तो सिर्फ इन्सान ही बड़े लोगों को एहमियत देते हैं। परंतु अब तो चूहें जैसे तुच्छ प्राणी भी! हाँ नहीं तो। वैसे मैं मज़ाक कर रहा हूँ, चुहा तो महान प्राणी है। और आज कल तो इस प्राणी के महान अवतार ‘माउस’ के बिना कोई कम्यूटर भी नहीं चलता है। अगर चूहां ना होता, अररररर! मेंरा मतलब ‘माउस ना हो तो हम जैसे ब्लॉग छाप लिखइयों का कार्य कैसे चलता? हमारी रोज़ी-रोटी कैसे चलती? फिर खामाखां लक्ष्मी जी को कष्ट करना पड़ता!
हम डेली अपने पैर खुले छोड़ कर लेटते हैं, कभी-कभी तो चुहों के बिल में ही अपना पैर घुसा कर सोते हैं। और वहां बड़े लोग ऐसी रूम में मखमली बिस्तर पर और शानदार कम्बल में लिपट कर सोते हैं। इधर हम चूहें को खुली दावत देते हुए सोते हैं और उधर बड़े लोग उनके खिलाफ पूरा बंदोबस्त करके। फिर भी चूहें महाराज के द्वारा उन्हें ही एहमियत। मुझे तो इसमें किसी साजिश की बू आ रही है।
हम पर तो अब तक गणेश जी के सबसे करीबी की हम पर नज़र नहीं पड़ी। वो भी पहुँच गए पहुंच गए बड़े लोगों के पास। आखिर मुझ जैसे फक्कड़ के घर में उन्हे खाने को क्या मिलता? अब बड़े लोगों की तो बात ही अलग है, बड़े लोग हैं तो उनके लिए खाना भी बड़ा अच्छा। हमारे यहां तो उन्हे बची हुई सूखी रोटी ही मिलती होगी और वह भी कभी-कभी, क्योंकि अक्सर तो वह हमें ही नहीं मिलती। हाँ उनके यहां अवश्य ही देसी घी के लड्डू मिल जाते होंगे। फिर वहां हिसाब रखने वाला भी कौन होगा कि लड्डू गायब कैसे हो गए, हमें तो पता रहता है कि हमने दो रोटी बनाई थी और उसमें से आधी बचा दी थी कि सुबह उठ कर खा लेंगे। परंतु जब सुबह वह रोटी नहीं मिलती है तो उसके लिए खोजबीन शुरू कर देते हैं। आखिर इतनी मुश्किल से रोटी कमाई जाती है। अब अखबार के लिखईया तो हैं नहीं कि डेली लेख अखबारों की शान बनें। ब्लॉग में ही तो लिखते हैं, कौन छापता है इसे अपने अखबार में? फिर यहां कोई एड-वैड भी नहीं मिलता। कभी-कभार हॉट लिस्ट में आ जाता है हमारा लेख, लेकिन अक्सर ही हमारे दुश्मन (हमसे जलने वाले दुसरे धुरंधर लेखक गण), हमारे लेख के छपते ही ताड़ लेतें हैं। और कहीं दूसरे ना पढ़ लें इसलिए धड़ा-धड़ नापंसद के चटके लगा देते हैं। बस फिर क्या लेख एग्रीगेटर से गायाब! बस यही कहानी है हमारी। कभी-कभार एक-आध कवि सम्मेलन में कोई बुला लेता है तो कुछ दान-दक्षिणा मिल जाती है, उसी से हम अपनी जीविका चला लेते हैं। भला हम जैसे फक्कड़ों के यहां क्यों कोई चूहां, मच्छर, छिपकली जैसे जंतु घूमेंगे?
अब जब खाते कम हैं तो पक्का है कि शरीर में खून भी कम ही होगा ना। बड़े लोगों की तरह थोड़े ही कि बदन में खून लबा-लब भरा रहे और महाशय अस्पताल में खून की कमीं के बहाने से मुफ्त में अपना ईलाज कराने के बहाने आराम करते रहें, चाहे अदालतें उनका कितना ही इंतज़ार करती रहे। और जब हमें कभी अस्पताल की ज़रूरत पड़ जाए तो जनरल बैड भी खाली नही मिल सकते। उसमें भी ले-दे कर काम चलाना पड़ता है।
खैर चूहा तो चूहा है, मनमौजी है! जब जी चाहेगा, जहाँ जी चाहेगा, वहीं जाएगा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
हम पर तो अब तक गणेश जी के सबसे करीबी की हम पर नज़र नहीं पड़ी। वो भी पहुँच गए पहुंच गए बड़े लोगों के पास। आखिर मुझ जैसे फक्कड़ के घर में उन्हे खाने को क्या मिलता? अब बड़े लोगों की तो बात ही अलग है, बड़े लोग हैं तो उनके लिए खाना भी बड़ा अच्छा। हमारे यहां तो उन्हे बची हुई सूखी रोटी ही मिलती होगी और वह भी कभी-कभी, क्योंकि अक्सर तो वह हमें ही नहीं मिलती। हाँ उनके यहां अवश्य ही देसी घी के लड्डू मिल जाते होंगे। फिर वहां हिसाब रखने वाला भी कौन होगा कि लड्डू गायब कैसे हो गए, हमें तो पता रहता है कि हमने दो रोटी बनाई थी और उसमें से आधी बचा दी थी कि सुबह उठ कर खा लेंगे। परंतु जब सुबह वह रोटी नहीं मिलती है तो उसके लिए खोजबीन शुरू कर देते हैं। आखिर इतनी मुश्किल से रोटी कमाई जाती है। अब अखबार के लिखईया तो हैं नहीं कि डेली लेख अखबारों की शान बनें। ब्लॉग में ही तो लिखते हैं, कौन छापता है इसे अपने अखबार में? फिर यहां कोई एड-वैड भी नहीं मिलता। कभी-कभार हॉट लिस्ट में आ जाता है हमारा लेख, लेकिन अक्सर ही हमारे दुश्मन (हमसे जलने वाले दुसरे धुरंधर लेखक गण), हमारे लेख के छपते ही ताड़ लेतें हैं। और कहीं दूसरे ना पढ़ लें इसलिए धड़ा-धड़ नापंसद के चटके लगा देते हैं। बस फिर क्या लेख एग्रीगेटर से गायाब! बस यही कहानी है हमारी। कभी-कभार एक-आध कवि सम्मेलन में कोई बुला लेता है तो कुछ दान-दक्षिणा मिल जाती है, उसी से हम अपनी जीविका चला लेते हैं। भला हम जैसे फक्कड़ों के यहां क्यों कोई चूहां, मच्छर, छिपकली जैसे जंतु घूमेंगे?
अब जब खाते कम हैं तो पक्का है कि शरीर में खून भी कम ही होगा ना। बड़े लोगों की तरह थोड़े ही कि बदन में खून लबा-लब भरा रहे और महाशय अस्पताल में खून की कमीं के बहाने से मुफ्त में अपना ईलाज कराने के बहाने आराम करते रहें, चाहे अदालतें उनका कितना ही इंतज़ार करती रहे। और जब हमें कभी अस्पताल की ज़रूरत पड़ जाए तो जनरल बैड भी खाली नही मिल सकते। उसमें भी ले-दे कर काम चलाना पड़ता है।
खैर चूहा तो चूहा है, मनमौजी है! जब जी चाहेगा, जहाँ जी चाहेगा, वहीं जाएगा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
शानावाज़ जी बहुत बढ़िया लिखा है !
aap accha lekh likhte ho sir
main aap ke sare post padhty ho par comments aaj pehli bar de rahi ho...
शानावाज़ अच्छा बिना चूहे का भी कंप्यूटर होता है लेपटोप !
गुड पोस्ट !
बेटे ! तू तो खुद Mouse की भी औकात नहीँ रखता । तू मीठी छुरी है । तू लिखता हरिभूमि मेँ है और उसे दिखाकर मेहनताना अरब व ईरान से लेता है । गणेश जी के चूहे पर लिखने के बजाय अपने नबियोँ की सवारियोँ ऊँट , खच्चर व गधे पर कुछ लिख के दिखा ।
bahut accha lekh , maja aa gaya
हम डेली अपने पैर खुले छोड़ कर लेटते हैं, कभी-कभी तो चुहों के बिल में ही अपना पैर घुसा कर सोते हैं। और वहां बड़े लोग ऐसी रूम में मखमली बिस्तर पर और शानदार कम्बल में लिपट कर सोते हैं। इधर हम चूहें को खुली दावत देते हुए सोते हैं और उधर बड़े लोग उनके खिलाफ पूरा बंदोबस्त करके।
सटीक सामाजिक असंतुलन का वर्णन ,धन्यवाद |
@परम आर्य जी इस तरह आप जैसे कृषि जो की इमानदार लोगों का पेशा है से जुरे लोगों को किसी के ऊपर इस तरह का आरोप लगाना शोभा नहीं देता है ,आप एकबार शाहनवाज जी से मिलकर तो देखें तो आप खुद समझ जायेंगे की शाहनवाज जी सच्चे इन्सान हैं या झूठे ...इस तरह का आरोप किसी पे भी लगाने से पहले किसी के बारे में जानने का प्रयास जरूर किया कीजिये |
@ PARAM ARYAएक बात तो आपने बिलकुल ठीक कही की मेरी औकात चूहें जितनी भी नहीं है, यह तो उस मालिक का करम है जो उसने मुझे इंसान बनाने का फैसला किया. मैं उसके इस करम का जितना भी शुक्रिया अता करूँ वह कम है.
परम आर्य जी, अगर हरी भूमि में लिखूंगा तो उसका मेहनताना भी हरी भूमि से ही मिलेगा ना..... इरान अथवा अरब से कैसे मिलेगा??? अपना यह गुण मुझे भी समझा देते तो मज़ा आ जाता. एक काम की दो-दो कमियाँ. वाह क्या बात है! रही बात गणेश जी के चूहें पर लिखने अथवा नबियों के ऊँट, खच्चर पर ना लिखने की तो महाशय यह तो एक विषय के ऊपर लिखा गया व्यंग है किसी जानवर अथवा धर्म विशेष के ऊपर नहीं. आप खामखा ही इसे दुसरे सन्दर्भ में ले रहे हैं और फिर व्यंग का मकसद किसी की बुराई नहीं होता है.
kal mere office ke printer men chuha ghus gaya tha...
bahut koshish ke baad bhi nahin nikla... akhir men us printer ko office ke bahar sadak kii taraf khula rakh diya fir jaakar thodi der baad wah nikla
wah re chuehe!!!!!!!!!!!!!!!
bandook wale param se sahmat
बेटे ! तू तो खुद Mouse की भी औकात नहीँ रखता । तू मीठी छुरी है । तू लिखता हरिभूमि मेँ है और उसे दिखाकर मेहनताना अरब व ईरान से लेता है । गणेश जी के चूहे पर लिखने के बजाय अपने नबियोँ की सवारियोँ ऊँट , खच्चर व गधे पर कुछ लिख के दिखा ।
बहुत बढिया
बधाई
शाहबाले ! तू सिददीकी है कि नही ।सदका खाने वाले को कहते हैँ सिददीकी । नन्गा भूखा अपने को तूने खुद लिखा , यहा भी तू सदका ही मागने आया है । सलीम ने भी अपना अकाउन्ट न0 छाप रखा है सदका मान्गने के लिये । देखा तुम्हारे धर्म ने तुम्हे इन्टरनेशनल भिखारी बना दिया ।
chuho ki bhi bat chuho nay likh di hai.nice
@परम आर्य
इसी को कहते हैं पढ़ाँ लिखा जाहिल.....
meri taraf se aap ko vot
i think shahnwaj ek sache arya hain, agar ek uttam aadme ho, aur kisi bhi dharam ka ho, christian ho, ya musalman ya koi aur dharam ho, weh arya hi hai, . ARBI bhasha mein anuwad karo to mualman ka matlab arya hi hai,this is translation of mualman to hindi, = i.e. ARYA. arya hone ka matlab,aryasamaji hona nahi hai. sabhi arya samaji arya nahin aur sabhi arya,arya samaji nahin . arya ka matlab noble man hai, sari dunya me har desh me noble man hain. aao kuen se niklen, aur wishal samunder me utren. LET THE WHOLE WORLD BE NOBLE. S.K.ARYA
bhout Shandar......kya khub likhte hai aap......sir.....
Gudluck....
Apne bilkul Sahi kha ki ye sirf viyang hai kisi janvar athwa dharam pr nahi.........!!!!!!!!!!
बहुत बढिया लिखा आपने !!
क्यो जवाब नही बन पड़ा .