ये शम्आ जल उठी तो आग दूर तक गई,
तेरे पहलु से जो उठे तो बात दूर तक गई।
दुश्मन को क्या खबर, दिवाने हो चुके हैं हम,
दुश्मन सभी हुए, जो बात दूर तक गई।
यकीं ना हो तो चाक कर दे अपना सीना भी,
उनकी रुसवाई का डर है, जो बात दूर तक गई।
सुना था छुप नही सकती कभी खशबू ज़माने से,
यह आज देख भी लिया, जो बात दूर तक गई।
दिल तो लगा लेते, मगर डर है हमें खुद से,
खुद को भुला लेंगे, जो बात दूर तक गई।
चान्दनी दूर ना हो जाए ये ज़ुलफें सवार लो,
कहीं कह दे ना ज़माना कि रात दूर तक गई।
साजिद
ये शम्आ जल उठी तो आग दूर तक गई,
तेरे पहलु से जो उठे तो बात दूर तक गई।
वाह!! आपने ने नरगिसी अंदाज़ में ख़ूबसूरत लफ्जों में दिल की हर बात बयान की है .. दिल से बधाई
सुना था छुप नही सकती कभी खशबू ज़माने से,
यह आज देख भी लिया, जो बात दूर तक गई।
बात यकीनन दूर तक गयी. बेहतरीन कलाम
बहुत खूबसूरत अल्फाज़ और जज़्बात समेटे है आप का कलाम, दिल से बधाई.......
very good !