काले-काले मतवाले... (घनाक्षरी छंद )
बरखा सुहानी आई रितुओं की रानी है।
रिम झिम रिम झिम रस की फ़ुहार झरें
बहि रही मंद मंद पुरवा सुहानी है ।
दम दम दामिनि दमकि रही जैसे प्रिय,
बिहंसि बिहंसि सखियों से बतरानी है ।
बरसें झनन झन ,घनन घन गरजें,
श्याम डरै जिया, उठे कसक पुरानी है ॥
टप टप बून्द गिरें, खेत गली बाग वन,
छत छान छप्पर चुए बरसा का पानी ।
ढरि ढरि जल चलै नदी नार पोखर ताल,
माया वश जीव चलै राह मनमानी ।
सूखी सूखी नदिया, बहन लगी भरि जल,
पाय सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम’ गली मग राह, ताल औ तलैया बने,
जल-जन्तु क्रीडा करैं बोलें बहु बानी ॥
वन वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर टर रट यूं , लगाये है ददुरवा ।
चतुर टिटेहरी चाहै, पग टिकै आकाश,
चक्रवाक अब न लगाये रे चकरवा ।
सारस बतख बक, जल में विहार करें,
पिउ पिउ टेर यूं लगाये रे पपिहवा ।
मन बाढै प्रीति और तन में अगन श्याम’
छत पै सजन भीजै, सजनी अंगनवा ॥
खनन खनन मेहा पडै टीन छत छान,
छनन छनन छनकावै, द्वार अंगना ।
पिया की दीवानी,झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल नवेली, खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि! जियरा को चैन आवै,
बरसें नयन, उठै मन में उमन्ग ना ।
बरखा दिवानी, हरषावै,धडकावै जिया,
रितु है सुहानी, श्याम’ पिया मोरे संग ना ॥
-----डा श्याम गुप्त
छनक छनक बाजे मन की पैजनिया, उल्हास जगावे आपका ये अद्भुत छंद है। जामे प्रकृति की छटा के संग मन मे उमड़त घुमड़त सुघर भाव बंद है। बहुत सुन्दर रचना!
छनक छनक बाजे मन की पैजनिया, उल्हास जगावे आपका ये अद्भुत छंद है। जामे प्रकृति की छटा के संग मन मे उमड़त घुमड़त सुघर भाव बंद है। बहुत सुन्दर रचना!