मनुष्य
आदर करने पर- चापलूसी समझता है !
उपदेश देने पर- मुहँ घुमा लेता है !
विश्वास करने पर- विश्वासघात करता है !
क्षमा करने पर- कमज़ोर समझता है !
प्यार करने पर- आघात करता है !
सुखी देख कर- इर्ष्या करता है !
दुखी देख कर- प्रसन्न होता है !
आश्रित होने पर- ठोकर मारता है !
स्वार्थ आने पर- तलवे चाटता है !
काम निकल जाने पर- भूल जाता है !
मनुष्य रोते हुए पैदा होता है, निंदा और शिकायते करते हुए जीता है और अंत में निराशा लिए मर जाता है !
इसी को मनुष्य कहते हैं !
इसी को मनुष्य कहते हैं !
इसी को मनुष्य कहते हैं !!!!!!!!!!!!!!!!!!
मनुष्य उसे कहते हैं जो स्वयं की गलती से सीखता है।
रविकांत जी से सहमत
EJAZ AHMAD IDREESI भाई यह एक बेहतरीन पोस्ट है और मैं इसको अपनी किसी पोस्ट मैं शामिल करना चाहता हूँ. आप के ब्लॉग लिंक के साथ.. धन्यवाद् इस पोस्ट के लिए.