एक मोहल्ले में एक परिवार ऐसा था जिससे सभी लोग त्रस्त थे क्यूंकि वह परिवार ऐसा था कि आपस में खूब लड़ता झगड़ता था और अगर ग़लती से कहीं कोई दुसरे घर का व्यक्ति टकरा गया तो उसकी शामत नहीं थी. उस परिवार के हर सदस्यों को फर्राटेदार गालियाँ देनी आतीं थी जैसे लगता था कि गाली देने में पीएचडी कर रखी हो. लोग उस परिवार और उसके सदस्यों से बात करने में क़तराता था. लोग तो उनकी तरफ़ देखते भी नहीं थे, न ही उसका ज़िक्र ही कहीं करते थे... इस तरह से उस परिवार के किसी भी सदस्यों को मोहल्ले के लोग लड़ाई हेतु उपलब्ध होना ख़त्म होते गए तो उन्होंने एक नयी तरकीब सोची और उसके घर से गुजरने वालों से वह ऐड कर कर के झगड़ते... कभी कहते उसने मुझे घूरा था तो कभी कहते उसने मुझे देख कर मुहँ चिढ़ाया था... वगैरह वगैरह !
ब्लॉग जगत में भी एक ब्लॉग ऐसा है जिसके कुछ लोग उसी परिवार की मानसिकता वाले हैं. भले ही कोई उनके मुहँ लगे या न लगे वह ज़बरदस्ती चर्चा में रहने के कारण किसी न किसी सम्मानित ब्लॉगर का नाम ले लेकर उनके ख़िलाफ़ अपशब्द कहते हैं.आपने कहावत तो सुनी ही होगी... 'बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना'. कुछ इसी तरह के हैं वो लोग जिनसे मेरा राबता हुआ पिछले हफ्ते! अब आप समझ गए होंगे मैं बात कर रहा हूँ इस ब्लॉग की!
वैसे उक्त लिंक किये गए ब्लॉग के लोगों ख़ास का इस मंच से डरना लाज़िमी ही है, क्यूंकि जिस मंच पर आप यह पोस्ट पढ़ रहे हैं वह देश को सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला सामुदायिक चिट्ठा है ! और मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मेरे और समर्थकों साथियों ब्लॉगरों ने अगर किसी को कुछ भी कहना भी होता है तो सभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हैं, और भ...वों की तरह अपने ब्लॉग की नीलामी नहीं करते हैं !
अब आता हूँ असली मुद्दे पर ! मुझे मालूम है कि जब बिना मुहँ लगे उन लोगों को एक-तरफ़ा नफ़रत हो गयी तो इस पोस्ट को को लिखने के बाद उनका क्या हाल होगा. मैं सलाह और चेतावनी दोनों एकसाथ देते हुए यह कहना चाहता हूँ कि "यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ जाएगा और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, वरना हमाम में सब नंगे ही होते हैं!" बाद में जब मैंने उस ब्लॉग पर लिखे गए एक सदस्य से बात करने की कोशिश की तो उसने बात करने से इन्कार कर कर दिया.
मैं ब्लॉग जगत के सामने अति-विनम्रता के साथ उनके द्वारा लिखी गयी अपशब्द भाषा की प्रचुर मात्रा से लबरेज़ पोस्ट्स का ज़िक्र कर रहा हूँ और यह अपील कर रहा हूँ कि आप अवलोकन करके फ़ैसला लें... !
लिंक्स:::
अपशब्द संख्या एक- लखनऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन, सुमन जी और गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या दो- मुझको दिया गया.
अपशब्द संख्या तीन- गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या चार- मुझको दिया गया.
अपशब्द संख्या पांच- डॉ अनवर जमाल साहब को दिया गया.
अपशब्द संख्या छः- सुमन जी, गुफ़रान सिद्दीक़ी और डॉ अनवर जमाल को दिया गया.
अपशब्द संख्या सात- डॉ अनवर जमाल साहब को दिया गया.
अपशब्द संख्या आठ- डॉ अनवर जमाल साहब को दिया गया.
अपशब्द संख्या नौ- सुमन जी को दिया गया.
अपशब्द संख्या दस- सुमन जी को दिया गया.
अपशब्द संख्या ग्यारह- गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या बारह- सुमन जी को दिया गया.
अपशब्द संख्या तेरह- गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या चौदह- सुमन जी और गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या पन्द्रह- सुमन जी और गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या सोलह- सुमन जी और गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
अपशब्द संख्या सत्रह- गुफ़रान सिद्दीक़ी को दिया गया.
उक्त सभी ब्लॉगर्स जिनके ख़िलाफ़ उस ब्लॉग पर अपशब्द कहे गए हैं, लखनऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन के सम्मानित सदस्य व पदाधिकारीगण हैं.
आपका फ़ैसला सर-आँखों पर...!!!
सलीम ख़ान
संयोजक
लखनऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन
क्या हुआ सलीम बाबू तुम्हारी एसोसिएशन के सारे लोग मौन व्रत रखे हैं या तुम्हारी बात को सुनते ही नहीं। तुम गला फाड़ फाड़ कर सबसे सम्मानित सदस्यों के अपमानित होने की बात कह कर सलाह मांग रहे हो और घंटा कोई सलाह तो दूर चूं चां तक नहीं कर रहा। क्या बात है नेतागिरी का टोटका काम न आया?
जय जय भड़ास
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