आज सुबह-सुबह मैं बाईक से जा रहा था तो रास्ते में मेरी नज़र एक बदहवास लड़के पर पड़ी, वो थोड़ा-थोड़ा लंगडा कर बहुत तेज़ी से लगभग भागने वाले तरीक़े से चला जा रहा था. उसने बहुत ही गन्दी शर्ट और बिना कमरबंद के फटी जींस पहना हुआ था जिसे उसने उमेठ-गुमेठ कर किसी तरह बंद रखा था, उसके शरीर के आस-पास दर्जन भर मक्खियाँ भिनभिना रहीं थीं. उसे देखने और अपने ज़ेहन में उसकी तस्वीर बनाने में मुझे चन्द सेकंड ही लगे और तब तक मैं अपनी बाईक को आगे ले जा चुका था. मैंने उपरवाले का शुक्रिया अदा किया कि उसने मुझे जिस हाल में रखा है वह बहुत बेहतर है वर्ना दुनियाँ में कितने परेशान लोग है, कितने मुसीबतज़दां लोग हैं! लेकिन कभी-कभी दूसरों की हालत को देख कर खुद को कुछ ऐसा महसूस हो जाता है जो अन्दर तक झकझोर के रख देता है!! आज वैसी ही कैफ़ियत हो गयी थी मेरी... !!!
ख़ैर, मैं आगे बढ़ गया और गंतव्य तक पहुँचकर काम पूरा कर वापस घर आ गया. जैसे ही घर की तरफ़ वाली गली पर मुड़ा मुझे वही युवक गली में पड़ा मिला. वह तेज़ी से साँसे ले रहा था, ऐसे जैसे मरणासन्न स्थिति में कोई साँसें लेता हो! लगा कि अब यह मरने वाला है या फ़िर शायेद गंजेड़ी या नशेड़ी होगा और इसे चरस आदि मिली नहीं होगी इसलिए तड़प रहा है... कई विचार इस तरह के दिमाग में आये. किसी तरह जल्दी से बाइक घर के पास किनारे स्टैंड की और उस तरफ़ गया, मैंने देखा तभी एक शख्स उसको पुकार कर उठाने की कोशिश कर रहा है और तभी वह बदहवास युवक उठ कर सड़क के किनारे आ गया. और रोने लगा. तब तक आस पास के घरों से निकल कर लोग नज़ारे की नियत से झांकने लगे. मैं उसके क़रीब गया और उसके रोने का कारण पूछा, तो जो कुछ भी उसने बताया... ब्लॉगर बधुवों मैं आपको उसकी आप-बीती अक्षरश बताना चाहता हूँ और 'गर हो सके तो आप भी उसके लिए कुछ न कुछ ज़रूर करें!!!
उसने बताया "मेरा नाम रणजीत है मेरे पिता का नाम विनोद है. मैं मध्यप्रदेश के ज़िला हौशंगाबाद के ग्राम लक्ष्मनपुर का रहने वाला हूँ, मैं पांच साल पहले अपने घर से भाग आया था और सिवान, बिहार पहुँच गया. वहाँ कुलदीप नामक एक सिख के ढाबे में काम करने लगा. वह मुझे बहुत प्रताड़ित करता था और मारता पिटता था, तनख्वाह भी नहीं देता था. बस खाने के लिए ही देता था. मैंने किसी तरह वहाँ से भाग कर आया हूँ."
"तो तुम लखनऊ कैसे पहुँच गए?" मैंने पूछा.
"एक ट्रक वाले से मिन्नतें करीं, वह लखनऊ तक ही आ रहा था." उसने रोते हुए बताया.
वहीँ खड़े एक शख्स ने पूछा, "इतनी बुरी हालत कैसे बन गयी तुम्हारी?"
"मुझे घर से भागने की सज़ा मिल चुकी है, मैं घर जाना चाहता हूँ! भईया मुझे स्टेशन का रास्ता बता दो?"
मैंने वहाँ खड़े लोगों से कहा कि भई जिसके पास जो कुछ हो सके इसको दे दो ताकि ये मध्यप्रदेश तक पहुँच जाए. मैंने रु.50 दिया अरु लोगों ने भी कुछ न कुछ दिया और उसके पास रु.150 इकट्ठे हो गए. 1 जोड़ी पुराना कपड़ा उसे दिया और कहा कि स्टेशन जा कर नहा लेना और बदल लेना.
मेरे घर के पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने उसे सब्जी लगी पूड़ी दी. मैंने अपने घर से एक गिलास चाय और 7-8 पापे (रस्क) दिए. थोड़ी देर बाद नोर्मल हो गया और स्टेशन पर चला गया.
मेरे हिसाब से वह इस वक़्त ट्रेन में होगा और अपने घर की तरफ़ जा रहा होगा, इंशाअल्लाह !
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>>>वैसे मैं एक बात और बता दूं... मेरे घर की गली के वर्टिकल एक गली है जहाँ अमीर लोग रहते हैं और वो सब उस बदनसीब लड़के को देख कर अपना अपना दरवाज़ा बन्द कर लिया और बालकनी से नजारा देखने लगे, उसकी मदद वहाँ के मिडिल क्लास के लोगों ने ही की.
>>>मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि नेट की दुनियाँ बहुत बड़ी है, आप में से जो ब्लॉगर या पाठक सिवान, बिहार का रहने वाला हो और जो शख्स मध्यप्रदेश के दिए गए पते का अथवा आस-पास का रहने वाला हो तो इस बात की तस्दीक कर ले और अगर सक्षम हो तो उसको इन्साफ़ दिलाये ! बस इतनी ही गुजारिश है.
Ameer log garibi ki ahmiyat nahi samajhte hai. Agar samajhne lage to gareebi ko kuchh had tak zinda rehne layak banaya ja sakta hai.
हर ओर ऐसी घटनायें हैं. जहाँ पर भी मदद हो जाये, वहीं ठीक. आपका साधुवाद.
तुम्हारे जैसे इन्सान के दिल में दया भाव ?..हो ही नहीं सकता/
सारा ब्लागजगत जानता है कि कितने नेकदिल इन्सान हो/
अच्छा काम किया है सलीम खान !शुभकामनायें !