१.
ब्रज की भूमि भई है निहाल।
आनंद कंद प्रकट भये ब्रज में, बिरज भये ब्रज ग्वाल ।
सुर - गंधर्व -अपसरा नाचहिं, गावहिं दै - दै ताल ।
आसिस देंय विष्णु, शिव, ब्रह्मा, मुसुकावें गोपाल।
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ़ ढफ़ली खडताल ।
पुरजन परिजन हरस मनावैं, जन्म लियो नंदलाल ।
बाजहिं ढोल म्रदंग मंजीरा, नाचहिं ब्रज के बाल ।
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल ।
सुर दुर्लभ छवि-लीला लखि-छकि,श्याम भये हैं निहाल॥
२ .
कैसो बानक धरयो गोपाल।
पीताम्बर कटि पग पैंजनियां, मोर मुकुट लियो भाल ।
मनहर मुद्रा, धरी त्रिभंगी, उर बैजंती माल ।
छवि सांवरी, नैन रतनारे, सुन्दर भाल विशाल ।
ओठ मुरलिया शोभित छेडै, पंचम राग धमाल ।
सुर दुरलभ छवि निरखि कन्हाई’श्याम’ भये हैं निहाल॥
कृष्ण जन्माष्टमी के मंगलमय पावन पर्व अवसर पर ढेरों बधाई और शुभकामनाये ...
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