हिन्दी की वास्तविकता ...-बेस्ट सेलर -अनुवाद ...हिंगलिश ..
चित्र 1<---हम हिन्दी भी पढेंगे तो अंग्रेज़ी में , तभी हिन्दी आगे बढ़ेगी (गुलामी में रहकर )--देखिये --चित्र -२.--->
अब देखिये --आज के घोषित बेस्टसेलर (हिन्दी में 'बिकाऊ' नहीं?? असभ्य शब्द लगता है ! )--'लेडीस कूपे' ..थ्री मिस्टेक्स....'फाइव पाइंट..द गोड आफ ...स्टे हंगरी ...अमेजिंग रेसल्ट...अल्केमिस्ट ..यूं केन हील...फिश ...सबाल ही जबाव ...गुनाहों का देवता...राग दरवारी ...आग का दरिया ...आदि आदि ...अब है इस हिन्दी की कोई टक्कर ...!! क्या इस बेस्ट सेलर में कितने प्रतिशत हिन्दी , हिन्दी साहित्य व हिन्दी-हिन्दुस्तानी संस्कृति है? वैशाली ...और वाण भट्ट....आदि तो..कोई सिरफिरा साहित्यकार ही पढ़रहा होगा ।
----ये सब अंग्रेज़ी से अनुवाद हैं या बकवास कथाएँ ----हिन्दी के दुर्भाग्य में अनुवादों का भी महत्त्व पूर्ण हाथ है जो वस्तुतः बाज़ार, कमाऊ लेखक, धंधेबाज़ व्यापारी -प्रकाशक गुट के भाषा -साहित्य -संस्कृति द्रोही कलापों का परिणाम है ।
-----अजी छोडिये भी .....कौन सी हिन्दी ??---आर आर इंस्टी टयूट, आई दी एस , परफेक्ट , कोफ्स-२०१० , एस सी, एस टी, इंटर स्कूल फेस्ट लांच , सेलीब्रिटी , एल डी ए...धड़ल्ले से 'यूज़' होरहे हैं ....क्यों व्यर्थ हिन्दी वाले रो रहे हैं ।
-----इससे तो अच्छी प्रगति आज़ादी से पूर्व ही थी जब हिन्दी साहित्य सम्मलेन, नागरी प्रचारिणी सभाएं .. आदि हिन्दी के उत्तम साहित्य व संस्कृति के निर्माण में लगी थी। साहित्य सृजन की गंभीरता व मानकी करण पर ध्यान दिया जाता था । पढ़ें ---गोविन्द सिंह का यह तथ्यपरक , आँखें खोलने वाला आलेख....चित्र २पर चटका दें ।
अब देखिये --आज के घोषित बेस्टसेलर (हिन्दी में 'बिकाऊ' नहीं?? असभ्य शब्द लगता है ! )--'लेडीस कूपे' ..थ्री मिस्टेक्स....'फाइव पाइंट..द गोड आफ ...स्टे हंगरी ...अमेजिंग रेसल्ट...अल्केमिस्ट ..यूं केन हील...फिश ...सबाल ही जबाव ...गुनाहों का देवता...राग दरवारी ...आग का दरिया ...आदि आदि ...अब है इस हिन्दी की कोई टक्कर ...!! क्या इस बेस्ट सेलर में कितने प्रतिशत हिन्दी , हिन्दी साहित्य व हिन्दी-हिन्दुस्तानी संस्कृति है? वैशाली ...और वाण भट्ट....आदि तो..कोई सिरफिरा साहित्यकार ही पढ़रहा होगा ।
----ये सब अंग्रेज़ी से अनुवाद हैं या बकवास कथाएँ ----हिन्दी के दुर्भाग्य में अनुवादों का भी महत्त्व पूर्ण हाथ है जो वस्तुतः बाज़ार, कमाऊ लेखक, धंधेबाज़ व्यापारी -प्रकाशक गुट के भाषा -साहित्य -संस्कृति द्रोही कलापों का परिणाम है ।
-----अजी छोडिये भी .....कौन सी हिन्दी ??---आर आर इंस्टी टयूट, आई दी एस , परफेक्ट , कोफ्स-२०१० , एस सी, एस टी, इंटर स्कूल फेस्ट लांच , सेलीब्रिटी , एल डी ए...धड़ल्ले से 'यूज़' होरहे हैं ....क्यों व्यर्थ हिन्दी वाले रो रहे हैं ।
-----इससे तो अच्छी प्रगति आज़ादी से पूर्व ही थी जब हिन्दी साहित्य सम्मलेन, नागरी प्रचारिणी सभाएं .. आदि हिन्दी के उत्तम साहित्य व संस्कृति के निर्माण में लगी थी। साहित्य सृजन की गंभीरता व मानकी करण पर ध्यान दिया जाता था । पढ़ें ---गोविन्द सिंह का यह तथ्यपरक , आँखें खोलने वाला आलेख....चित्र २पर चटका दें ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
भाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है.अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है,
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html
हाँ हिंगलिश को जोर बढ़ रहा है लेकिन कौन बढ़ा रहा है, हमारी पत्रकारिता ही न. फिर भी उसे हम हिंदी से श्रेष्ठ नहीं बना पायेंगे. नाम को हम उसी रूप में वैसे भी प्रयोग कर सकते हैं. ये हमारे ऊपर निर्भर करता है की हम हिंदी को कहाँ ले जा रहे हैं. भाषा प्रवाहमयी होती है और अपने सबको समेटती चलती है तभी तो उसका विकास होता है. हमारी हिंदी में कितनी बोलियाँ और कितनी भाषायों के शब्द इस तरह से घुल मिल गए हैं कि अब वह हिंदी के प्रतीक ही हैं उसमें रच बस गए हैं. इसके वर्तमान स्वरूप को अंतर्राष्ट्रीय मंच तक जाने का मार्ग बनाने दीजिये और निश्चित तौर पर पहुँच कर रहेगी.
Rekha ji ke mat se sahmat...
....बढ़िया प्रस्तुति ..
हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये....
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें