टूटते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है।
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।
दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में इन्सान यहां क्यों है ।
वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यस नक्श यहां क्यों है।
गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।
तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।
दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में इन्सान यहां क्यों है ।
वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यस नक्श यहां क्यों है।
गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।
तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥
tulsi soor gaalib ki sarjami pe shyam, atank ki fasal sarsabz yahan kyon hai|
vastav me dil ka dard hai jo shabdon me utar aya hai!
गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।
तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है....खूबसूरत शेर
http://veenakesur.blogspot.com/
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