एक अध्यक्षीय अपील
इस समय हिंदी में लगभग १५००० के आसपास ब्लोग्स हैं , जबकि यह संख्या अंग्रेजी की तुलना में काफी कम है । समय के लिहाज से अंग्रेजी और हिंदी के बीच मात्र छ: साल की दूरी है लेकिन ब्लॉग की संख्या के लिहाज से दोनों के बीच कई प्रकाश वर्ष का अंतर है !
इसमें कोई संदेह नहीं कि संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं ये ब्लोग्स । यदि हिन्दी ब्लोग्स की बात की जाय तो आज का हिन्दी ब्लॉग अति संवेदनात्मक दौर में है , जहाँ नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज़्यादा हो गया है। समूह ब्लॉग में हर प्रकृति के लोग होते हैं जिनका ख्याल रखना होता है इसलिए कभी-कभार लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। समूह ब्लॉग की सफलता इसी में है जब हम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें । एक दूसरे को सार्थक लेखन के लिए उत्प्रेरित करें और उनके विचारों को ज्यादा से ज्यादा फैलाएं । लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन उन्हीं उद्देश्यों की पूर्ती की दिशा में एक कदम है । अर्थात एल बी ए संगठन नहीं भावनाओं पर आधारित एक परिवार है जिसमें सभी धर्म-जाति और संप्रदाय के लोग हैं इसलिए हमें कोई भी ऐसा कार्य न करना चाहिए जिससे किसी की भी भावना को ठेस पहुंचे ।
कहा गया है कि ब्लोगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र,आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की है ! यहाँ आप स्वयं लेखक, प्रकाशक और संपादक की भूमिका में होते हैं !ब्लॉग की दुनिया समय और दूरी के सामान अत्यंत विस्तृत और व्यापक है ! यहाँ केवल राजनीतिक टिप्पणियाँ और साहित्यिक रचनाएँ ही नहीं प्रस्तुत की जाती वल्कि महत्वपूर्ण किताबों का इ प्रकाशन तथा अन्य सामग्रियां भी प्रकाशित की जाती है . आज हिंदी में भी फोटो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग, पोडकास्ट, , विडिओ ब्लॉग, सामूहिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग आदि का प्रचलन तेजी से बढ़ा है ! यानी हिंदी चिट्ठाकारिता आज संवेदनात्मक दौर में है इसमें कोई संदेह नहीं है !
जैसा कि आप सभी को विदित है कि चाहे जीवन क्षेत्र हो अथवा कर्मक्षेत्र , हर जगह निति-नियम का बहुत महत्व होता है । जहां तक ब्लोगिंग का सवाल है यदि आप अपनी भाषा पर, व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप अलग-थलग पड़ते जायेंगे, क्योंकि निति नियम किसी आयु विशेष के लिए ही है, ऐसा नहीं है यह आजीवन , निरंतर,अविराम चलने वाली क्रिया है । इसी से मनुष्य जीवन में सफलता और विकास प्राप्त कर सकता है ।
इसलिए मेरा मानना है, कि आज जब हिंदी ब्लोगिंग अत्यंत संवेदनात्मक दौर से गुजर रही है , कोशिश की जाए कि हमारे सभी ब्लोगर साथी नीतिवान, संस्कारवान,सच्चरित्र और अनुशासित हों तभी हम ब्लोगिंग के माध्यम से एक नए सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में सफल हो सकेंगे ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं ये ब्लोग्स । यदि हिन्दी ब्लोग्स की बात की जाय तो आज का हिन्दी ब्लॉग अति संवेदनात्मक दौर में है , जहाँ नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज़्यादा हो गया है। समूह ब्लॉग में हर प्रकृति के लोग होते हैं जिनका ख्याल रखना होता है इसलिए कभी-कभार लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। समूह ब्लॉग की सफलता इसी में है जब हम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें । एक दूसरे को सार्थक लेखन के लिए उत्प्रेरित करें और उनके विचारों को ज्यादा से ज्यादा फैलाएं । लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन उन्हीं उद्देश्यों की पूर्ती की दिशा में एक कदम है । अर्थात एल बी ए संगठन नहीं भावनाओं पर आधारित एक परिवार है जिसमें सभी धर्म-जाति और संप्रदाय के लोग हैं इसलिए हमें कोई भी ऐसा कार्य न करना चाहिए जिससे किसी की भी भावना को ठेस पहुंचे ।
कहा गया है कि ब्लोगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र,आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की है ! यहाँ आप स्वयं लेखक, प्रकाशक और संपादक की भूमिका में होते हैं !ब्लॉग की दुनिया समय और दूरी के सामान अत्यंत विस्तृत और व्यापक है ! यहाँ केवल राजनीतिक टिप्पणियाँ और साहित्यिक रचनाएँ ही नहीं प्रस्तुत की जाती वल्कि महत्वपूर्ण किताबों का इ प्रकाशन तथा अन्य सामग्रियां भी प्रकाशित की जाती है . आज हिंदी में भी फोटो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग, पोडकास्ट, , विडिओ ब्लॉग, सामूहिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग आदि का प्रचलन तेजी से बढ़ा है ! यानी हिंदी चिट्ठाकारिता आज संवेदनात्मक दौर में है इसमें कोई संदेह नहीं है !
जैसा कि आप सभी को विदित है कि चाहे जीवन क्षेत्र हो अथवा कर्मक्षेत्र , हर जगह निति-नियम का बहुत महत्व होता है । जहां तक ब्लोगिंग का सवाल है यदि आप अपनी भाषा पर, व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप अलग-थलग पड़ते जायेंगे, क्योंकि निति नियम किसी आयु विशेष के लिए ही है, ऐसा नहीं है यह आजीवन , निरंतर,अविराम चलने वाली क्रिया है । इसी से मनुष्य जीवन में सफलता और विकास प्राप्त कर सकता है ।
इसलिए मेरा मानना है, कि आज जब हिंदी ब्लोगिंग अत्यंत संवेदनात्मक दौर से गुजर रही है , कोशिश की जाए कि हमारे सभी ब्लोगर साथी नीतिवान, संस्कारवान,सच्चरित्र और अनुशासित हों तभी हम ब्लोगिंग के माध्यम से एक नए सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में सफल हो सकेंगे ।
इसलिए एल बी ए के सदस्यों हेतु एक अपील है , बस महसूस करें और ब्लोगिंग के माध्यम से दें हिंदी को नया आयाम-
ब्लॉग शिष्टाचार के अंतर्गत आपको भाषा के व्याकरण पर विशेष ध्यान केन्द्रित करें । यह सही है कि ब्लॉग आपका पर्सनल मामला है और इसे किसी भी भाषा में और कैसे भी लिखने के लिए आप स्वतंत्र हैं । फिर भी आप चाहते हैं कि आपकी लेखनी अधिक से अधिक लोग पढ़ें तो भाषा और वर्तनी की शुद्धता पर अवश्य ध्यान देना होगा । व्याकरण एकदम शुद्ध रखने का प्रयास करना होगा । यदि उसमें कोई गलती हो तो संज्ञान में आते ही सुधारने का प्रयास करें ।
इसके अलावा गलती मानने की प्रवृति अपनाएं , क्योंकि कोई भी हमेशा सही नहीं हो सकता । यदि आपसे जाने-अनजाने में कोई गलती हो जाए तो वजाए तर्क-वितर्क के गलती मान लेनी चाहिए । इससे दूसरों की नज़रों में आपका सम्मान बढेगा ।
हमेशा सकारात्मक बने रहे : अच्छे ब्लॉग लेखन के लिए जरूरी है आप हमेशा सकारात्मक सोचे, सकारात्मक टिप्पणी करें और सकारात्मक पोस्ट लिखें । सारे नकारात्मक भावों को झटके से किनारे कर दें और सकारात्मकता को हमेशा के लिए अंगीकार करें । साथ ही आपसे जुड़े जो भी ब्लोगर हैं उन्हें भी सकारात्मक बने रहने की शिक्षा दें । अपनी पसंद के विचारों को महत्व दें : पोस्ट लेखन के दौरान आप वही लिखें जो आपको पसंद हो । यदि आप किसी ऐसे पोस्ट से गुजरते हैं जो आपको नापसंद हो तो कोई जरूरी नहीं कि आप अपनी नकारात्मकता को टिप्पणी के माध्यम से प्रदर्शित करे हीं । आप उस पोस्ट से अपने को अलग करते हुए अगले पोस्ट की ओर बढ़ जाईये , व्यर्थ की विवादों में अपना समय न गवाएं । बार -बार आत्मचिंतन करें : जिन चिजों की कमी आपके अन्दर है, आप उन्हें लेकर खुद को कम मत आंकिये । इस कॉम्पलेक्स से बाहर आईये । इसका रास्ता है कि आप केवल अपनी पोजिटिव चिजों पर ही ध्यान दीजिये , बजाय उन चिजों के जो आपके अन्दर नहीं है और दूसरे ब्लोगर के अन्दर है । सोचिये क्या व्यक्ति की पाँचों ऊँगलिया बराबर होती है ?दूसरों को नीचा मत दिखाएँ : कुछ लोगों को दूसरों को नीचा दिखाने में मजा आता है । ऐसे लोग जानबूझ कर अनाप-सनाप टिप्पणी करते हैं । दूसरों का दिल दुखाते है । उन्हें परेशान करते हैं, ताकि वे खुद को सुपीरियर साबित कर सके । यदि आप ऐसे लोगों से घिरे हैं तो उन्हें महत्व मत दीजिये, किन्तु कोई आपकी सेल्फ स्टीम को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो अपने भीतर उनसे सामना करने की ताक़त जरूर विकसित करें । अपने गुणों को सामने लायें : हर व्यक्ति में कोई -न-कोई गुण अवश्य होते हैं, जो उन्हें औरों से अलग करते हैं । अपने इन्हीं गुणों को ढूंढिए और ब्लोगिंग के माध्यम से उसका विकास कीजिये । इससे आपकी सेल्फ स्टीम में इजाफा होगा और आप खुद को लेकर अच्छा महसूस करेंगे । हमेशा खुश रहना सीखें : आपके पोस्ट पर किसी दिन बहुत टिप्पणी आई और आप खुश हो गए , दूसरे दिन कम टिप्पणी आई आप निराश हो गए और किसी दिन कोई टिप्पणी नहीं आई तो आपके भीतर नकारात्मक पहलू पनपने लगे । ऐसा नहीं होना चाहिए ।
एक और महत्वपूर्ण बात है ब्लोगिंग के सन्दर्भ में कि ब्लॉग पढ़ने के लिए किसी को भी बाध्य न करें , क्योंकि इससे आप अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे । एक-दो बार लोग आपका मन रखने के लिए टिप्पणी तो कर देंगे , किन्तु आपके पोस्ट से उनकी दिलचस्पी हट जायेगी ।
और हाँ कोशिश यह अवश्य करें कि कोई भी टिप्पणी आप अपने नाम से ही करें , क्योंकि लोग आपके विचारों को पहचानते हैं । अपनी पहचान को क्षति न पहुचाएं । स्वयं के प्रति ईमानदार बने रहें ।
एक और महत्वपूर्ण बात कि लेखन की जिम्मेदारी लेना लेखक की विश्वसनीयता मानी जाती है । कोई हरदम आपकी तारीफ़ नहीं कर सकता , कभी आपको कटाक्ष का दंश भी झेलना पड़ता है ऐसे में कटाक्ष पर शांत रहना सीखें ताकि आप उस आग में जलकर कंचन की भांति और निखर सकें ।
और अंत में सिर्फ इतना कहना है, कि यीश निंदा से बचें : यानी किसी भी धर्म अथवा संप्रदाय विशेष की निंदा न करें और न सांप्रदायिक बातों को महत्व दें । अर्थात हमेशा धर्मनिरपेक्ष बने रहें ।
आशा ही नहीं, किन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सभी एल बी ए के सदस्यगण उपरोक्त बातों का अनुसरण करते हुए एल बी ए को एक आदर्श परिवार के रूप में स्थापित करने की दिशा में हमारा साथ अवश्य देंगे ।
शुभेच्छु:
() रवीन्द्र प्रभात
अध्यक्ष : लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन
रवीन्द्र प्रभात जी, बहुत ही बेहतरीन विचार रखे आपने, आपकी एक-एक बात से सहमत हूँ. यह बातें ना केवल LBA के लिए बल्कि समूचे ब्लॉग जगत के लिए लिए बहुत उपयोगी हैं.
रविन्द्र जी,
आपकी अपील बिल्कुल सही है और ये सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिए भी होनी चाहिए लेकिन हम अपने परिवार के सदस्यों से ही अनुरोध कर सकते हैं. आपके विचारों से सहमत हूँ और मैं भी यही अनुरोध करूंगी की हर एक को रचाना धर्मिता और संयमित भाषा का प्रयोग कर ही लिखना चाहिए. बल्कि लेखन ऐसा हो कीस्वान्तः सुखी और परजन हिताय ' हो तो अधिक अच्छा है.
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आपकी अपील बिल्कुल सही है और ये सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिए भी होनी चाहिए !
आपकी अपील बिल्कुल सही है सहमत
सार्थक बातें .. पूर्णतया सहमत
आपकी अपील बिल्कुल सही है और ये सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिए भी होनी चाहिए !
प्रभात जी के ब्लागिंग के संदर्भ में ये गहन विचार संतुलित और अनुकरणीय हैं। इसके पहले ब्लागर्स एसोसिएशन की ओर से यह भी अपील की गई थी कि आप ब्लाग से गुजरें तो प्रतिक्रिया भी जाहिर करें। मैं इस बात से भी सहमत हूं। अगर आप टिप्पणी नहीं देंगे तो हमें कोई एतराज नहीं मगर यह जरूर ध्यान रखें कि ब्लागिंग की दुनिया में टिप्पणियां देने वालों की अहमियत लेखकों से ज्यादा होती है। टिप्पणीकार ही ब्लागिंग की दिशा-दशा में परिवर्तन ला सकते हैं।
आपकी अपील बिल्कुल सही है सहमत
आपकी अपील बिल्कुल सही है..!
मंधाता जी,
आपके इन विचारों से मैं पूर्णत: सहमत हूँ कि "ब्लागिंग की दुनिया में टिप्पणियां देने वालों की अहमियत लेखकों से ज्यादा होती है। टिप्पणीकार ही ब्लागिंग की दिशा-दशा में परिवर्तन ला सकते हैं।"
यह तो चिट्ठाकारों को आत्म चिंतन करना है कि अच्छी चीजों को सराहा जाए और कुत्सित विचारों को महत्व न दिया जाए, किन्तु यह प्रत्येक के लिए आत्मचिंतन का विषय है ! टिपण्णी करने के लिए किसी को बाध्य न किया जाए , ऐसा मेरा मानना है !
आपकी अपील बिल्कुल सही है..! मैं इस बात से भी सहमत हूं कि अच्छी चीजों को सराहा जाए और कुत्सित विचारों को महत्व न दिया जाए,ये सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिए भी होनी चाहिए !
आपकी अपील बिल्कुल सही है और ये सम्पूर्ण ब्लॉग जगत के लिए भी होनी चाहिए !
मन्धाता जी, आपने लाख टेक की बात कही है कि ... "ब्लागिंग की दुनिया में टिप्पणियां देने वालों की अहमियत लेखकों से ज्यादा होती है। टिप्पणीकार ही ब्लागिंग की दिशा-दशा में परिवर्तन ला सकते हैं।"
प्रिय महोदय,
आपकी अपील प्रभावी तौर पर ब्लॉगर को पसंद आयी है! एक ब्लॉगर होने के नाते मै इस सुन्दर और पारिवारिक अपील का पूर्णतः समर्थन करता हूँ.
हम धार्मिक हैं अच्छी बात है लेकिन हम धर्मांध है ये अच्छी बात नहीं है, धार्मिक सहिष्णुता कायम रखना हर मानव का धर्म है, यही हमारी धार्मिकता है!
मैंने इस सन्दर्भ में एक कविता लिखी है आशा है इस प्रसंग पर ठीक बैठेगी
मन्दिर में रहते यदि अल्ला, मस्जिद में रहते भगवान! तब क्या कम हो जाता मान?
http://iamshishu.blogspot.com/2009/11/blog-post_26.html
आपका प्रयास सराहनीय है! इस कड़ी में हम आपके साथ हैं.
आपका 'शिशु'
ब्लॉग जगत की 'निरंकुशता' के समय में आपकी यह अपील बेहद महत्वपूर्ण है. मर्यादा का पालन अवश्य किया जाना चाहिए. भाषा निहायत सम्वेदनशील वस्तु है. ब्लाग्स घरों-परिवारों में पढ़े जाते हैं, इस लिए भाषा का चयन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए.
साझा ब्लाग्स के लिए एक आचार संहिता अवश्य बनाई जानी चाहिए. एक रचनाकार की पोस्ट को यदि अन्य रचनाकार २४ घंटे का भी अवसर नहीं देते तो स्थिति बिगड़ेगी ही और साझे की हांडी चौराहे पर फूटने का तमाशा दूसरे जरूर देखेंगे.
सर्बत भाई, आपने यह विल्कुल सही कहा है कि- "साझा ब्लाग्स के लिए एक आचार संहिता अवश्य बनाई जानी चाहिए. एक रचनाकार की पोस्ट को यदि अन्य रचनाकार २४ घंटे का भी अवसर नहीं देते तो स्थिति बिगड़ेगी ही और साझे की हांडी चौराहे पर फूटने का तमाशा दूसरे जरूर देखेंगे."
अच्छा लगा आपके विचारों को आत्मसात कर, यदि सदस्यों की सहमति होगी तो आचार संहिता पर काम किया जा सकता है और इसके लिए कार्य समिति का गठन किया जा सकता है !
रवीन्द्र जी,
वन्दे मातरम.
आपका लेख बहुत उपयोगी है. साधुवाद. सहिष्णुता ही सकल सीमाओं की कुंजी है. क्या?. कितना, कब? लिखें, पढ़ें, टिप्पणी दें... यह तो हर एक को स्वयं ही समझना होगा. सकारात्मकत का आशय अछे-बुरे सब को सम भाव से सराहना लेन तो कोई सुधार न हो सकेगा... भाषा की दुर्गति होगी... संचालकों को भाषिक संशोधन करने ही चाहिए... कथ्य में परिवर्तन न हों... यथावश्यक टीप संलग्न की जा सकती है. यदि चिट्ठे के मुखपृष्ठ पर लगने वाली रचनाओं की संख्या सीमित हो तो ध्यान रखा जाए कि हर रचना कम से कम १ या २ जो भी तय हो मुख प्रष्ठ पर रहे. अधिक रचनाएँ आयें तो संचालक उन्हें रोक कर अगले दिन लगा दे. इसी तरह कम रचनाएँ आयें तो संचालक संरक्षित अथवा सन्दर्भ सहित अन्यत्र से रचनाएँ लेकर लगायें. श्रृद्धांजलि, दुर्घटना, पर्व जैसे अवसर विशेष पर सामग्री इसी प्रकार दी जा सकती है.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
Ravindra Ji ki baat se sahmat hoon. LBA ka sadasya hone ke naate mein bhavishya me aur saavdhani aur zimmedaari se likhne ka prayas karoonga.
टिप्पणीकार--का विचार पश्च-विचार( आफ़्टर-थोट) होता है, अतः वह लेखक से अधिक अहम नहीं हो सकता....हं टिप्पणी लेखक को अपने विचार पर पुनर्विचार करने पर विचार -सामग्री देती है। यह भी उन टिप्पणियों के लिये सत्य है जो आलोचनात्मक व सोदहरण होती हैं, समान्य टिप्पणिया---सुन्दर, दीदी बहुत अच्छालिखा, भाई आपतो सदा अच्चा लिखते हैं .....जैसी के लिये नहीं....अतः इप्पणियों की न चिन्ता करें न किसी को वाध्य करें...