लेखक-- सलीम ख़ान |
यक़ीनन इस बात पर किसी को भी ऐतराज़ न होगा कि देश के लिए नासूर बन चुके इस विवाद पर आ रहे अदालती फ़ैसले पर किसी को भी आपत्ति हो. सभी पक्ष, जनता, पूरा देश यहाँ तक कि दुनियाँ की निगाह इस फ़ैसले पर लगी है और सभी चाहते हैं कि इस पर अब फ़ैसला आ ही जाए. पिछले 61 साल से यह अदालत में है, बल्कि मामला तो यह सैकड़ों साल पहले का है. लेकिन आज़ाद भारत में सबसे पहले हाशिम अंसारी ने सबसे पहले अदालत में यह गुहार लगाई कि इस मामले को अब अदालत ही देख सकती है. अगर हम हाशिम अंसारी को देश के तमाम मुसलमान के नुमाइंदे के तौर पर देखें तो यह साबित हो जाता है कि भारत देश के मुसलमान देश के संविधान का सम्मान करते हैं, वे अदालत का हर वो फ़ैसला मानने के लिए तैयार हैं जो वह सुनाएगी ! लेकिन अगर हम बाबरी-मस्जिद को शहीद करने में शामिल लोगों की तरफ़ निगाह करेंगे तो पायेंगे कि कौन खुद को देश के संविधान के ऊपर समझते हैं और किसने भावावेश में आकर देश की इज्ज़त को तार-तार किया. ख़ैर ! जाने दीजिये... अभी ये वक़्त नहीं कि गिले शिकवे किये जाएँ और दोषारोपण किया जाए, अभी वक़्त है संयम के साथ अदालत के फ़ैसले को सुन लिया जाए और उसे मान भी लिया जाए फ़िर चाहे वो किसी के भी पक्ष में क्यूँ ना हो.
लखनऊ में ही हो जाए ग्रैंड फिनाले
उच्चतर न्यायलय के फ़ैसले से नाखुश होने पर कोई भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकता है लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं तो यही चाहता हूँ कि इलाहाबाद उच्चतर न्यायलय की लखनऊ बेंच का फ़ैसला ही सभी मान लें, दिल्ली ना ले जाएँ ! लखनऊ बेंच के फ़ैसले पर ही ख़त्म कर दें देश के इस नासूर रुपी विवाद को वर्ना अगर दोनों में से कोई भी पक्ष दिल्ली जाता है तो ये मामला फ़िर से कई दशकों तक चला जाएगा. जहाँ तक हाशिम अंसारी की बात है वह अब 90 साल के हो चुके हैं और उनका साफ़ कहना है कि वे लखनऊ में ही ग्रैंड फिनाले चाहते हैं...!!!
आख़िर 'निर्मोही-अखाड़ा' बाबरी मस्जिद के अदालती फ़ैसले को टालने की कोशिश क्यूँ कर रहा था !?
इसका जवाब निर्मोही अखाड़े और आर सी त्रिपाठी ने खुद अपने हलफ़नामे में दिया है कि कॉमनवेल्थ गेम के चलते, उत्तर प्रदेश में बाढ़ के चलते, देश में हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक़ ओबामा के भारत आने के चलते और मुंबई में हुए हमले के चलते लखनऊ पीठ के फ़ैसले को रोक देना ही उचित होगा जिसे दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.
सत्य तो कुछ और ही है
देखिये ! सबसे पहले हाशिम अंसारी ने इस मामले में अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और वही इस केस में प्रमुख पक्षकार हैं. उसके बाद एक के बाद एक पक्षकार बढ़ते चले गए. सन 1985 में निर्मोही अखाडा में इस में कूद गया था ! अब सच क्या है अभी कहना मुश्किल है. क़यास लगाना अभी उचित नहीं. इसलिए इस पूरे मामले पर मेरी प्रतिक्रया 30 सितम्बर के बाद पढ़िए! सिर्फ़ लखनऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन पर !
अंत में मेरी और लखनऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन की तरफ़ से सभी से अनुरोध है कि 30 सितम्बर के दिन अदालत के फ़ैसले को सिर्फ़ एक भारतीय के नज़रिए से देखें... ना हिन्दू की नज़र से और ना ही मुसलमान की नज़र से !!!
हमारे विचार से लखनऊ फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाना भी संविधान के दायरे में ही है ।
धर्म गुरु मौलाना कल्ब ए सादिक ने यह भी कहा, कि किसी का मंदिर या मस्जिद तोडना सही नहीं,लेकिन अगर फैसला यह करना हो कि, मस्जिद टूटे या इंसान कि जान बचाई जाए, तो मैं यही कहूँगा कि इंसान कि जान बचालो, क्योंकि मस्जिद तो फिर भी बन जाएगी लेकिन यह इंसान मर गया तो वापस नहीं आएगा
http://aqyouth.blogspot.com/2010/09/blog-post_1978.html
saleem bhai,
bilkul sahi agar manana hai to adalat ke phaisale ko mano aur vah bhi ek bhartiy ban kar. insaan ke liye ye mandir aur masjid hain inaki keemat par insaan ko nahin aapa khona chahie.
isa aman ke liye ham sab sankalpbaddh rahe to ye kayam rahega.
saleem bhai,
bilkul sahi agar manana hai to adalat ke phaisale ko mano aur vah bhi ek bhartiy ban kar. insaan ke liye ye mandir aur masjid hain inaki keemat par insaan ko nahin aapa khona chahie.
isa aman ke liye ham sab sankalpbaddh rahe to ye kayam rahega.
saleem bhai,
bilkul sahi agar manana hai to adalat ke phaisale ko mano aur vah bhi ek bhartiy ban kar. insaan ke liye ye mandir aur masjid hain inaki keemat par insaan ko nahin aapa khona chahie.
isa aman ke liye ham sab sankalpbaddh rahe to ye kayam rahega.
सलीम भाई, आपने लिखा कि 30 सितम्बर के दिन अदालत के फ़ैसले को सिर्फ़ एक भारतीय के नज़रिए से देखें... ना हिन्दू की नज़र से और ना ही मुसलमान की नज़र से !!! माफ़ी चाहूँगा लेकिन आपका लेख पढ़ कर मुझे ऐसा लगा कि आप खुद सारे मसले को एक मुसलमान के नजरिये से देख रहे हैं.
एक मुस्लिम विद्वान ने मुझे बताया था कि अगर किसी स्थान पर काफी समय तक नमाज न पढ़ी जाय तब वह स्थान मस्जिद नहीं रह जाता भले ही पहले कभी वहां मस्जिद रही हो. इस नाते और उनके अनुसार जो ढांचा गिराया गया वह मस्जिद नहीं था. मैं इस बारे में आप के विचार जानना चाहूँगा.
@Suresh chandra Gupta jee main aapke ek ek sawaal kaa jawaab 30 sept ke baad dunga.