आज गाँधी जयंती है और मैं उनको नमन करती हूँ. लेकिन आज इस व्यक्ति के लिए ढेरों लिखने वाले होंगे और मैं इससे इतर व्यक्ति को प्रस्तुत करना चाहती हूँ. वह व्यक्ति जो एक दिन के कारण उतना याद हो ही नहीं पाते है जिसके वह हक़दार है. वह हैं हमारे दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री. वह भी तो इसी दिन आये थे न.
वे एक गरीब पिता के पुत्र थे लेकिन एक ईमानदार इंसान की संतति होने के कारण बेहद ईमानदार और आत्मसम्मानी थे. उनका जन्म २ अक्टूबर १९०५ को उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय नामक स्थान पर हुआ था. उनके पिता शारदा प्रसाद और माता रामदुलारी देवी थी. पिता एक शिक्षक थे और बाद में वह राजस्व कार्यालय में क्लर्क हो गए. शास्त्री जी जब बहुत छोटे थे तभी उनके पिता का देहावसान हो गया था और उनकी माँ उन्हें लेकर अपने पिता के घर आ गयीं. उनका बचपन अपने नाना के घर ही बीता और वही उनकी शिक्षा आरम्भ हुई. बाद में वे आगे कि शिक्षा के लिए वाराणसी पढ़ने के लिए चले गए.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के लिए उनके आह्वान पर १७ वर्ष कि आयु में ही उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था. जब कि इस बात के लिए उनकी माँ और परिजनों ने उनको मना किया था, लेकिन वे स्वतंत्रता के दीवाने हो चुके थे. उन्हें असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन उनकी अल्पायु देखते हुए उनको छोड़ दिया गया.
इसके बाद उन्होंने काशी विद्यापीठ से ४ वर्ष का अध्ययन करके शास्त्री की उपाधि हासिल की. उन्होंने अपने नाम के साथ सिर्फ शास्त्री ही लगाया. शास्त्री जी का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ और उन्होंने दहेज़ में एक चरखा और कुछ खादी ली थी.
शास्त्री जी आत्मसम्मान कीमत पर कोई समझौता नहीं किया. घटना उस समय की है जब कि वे जेल में बंद थे और उनकी पुत्री बहुत बीमार हुई तो जेल अधिकारीयों ने उन्हें छोड़ने के लिए शर्त रखी कि यदि वे लिखित दें कि वे इस अवधि में स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लेंगे तो उनको छोड़ा जा सकता है. उनको लिख कर देने में अपना आत्मसम्मान आहत होते लगा और उन्होंने लिख कर देने से मना कर दिया.
भारत स्वतन्त्र होने वे बाद वे जवाहरलाल नेहरु कि मंत्री परिषद् में पुलिस मंत्री बने . वे १९५२ में भारत के रेल एवं परिवहन मंत्री बने और एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने १९५६ में त्यागपत्र दे दिया. १९६१ में वे देश के गृह मंत्री बने. १९६२ में भारत चीन युद्ध के समय देश की शांति व्यवस्था को जिस तरह से उन्होंने बनाये रखा इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र माने गए.
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के निधन के बाद १९६४ में वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने. उस समय जब कि देश कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा था. उस समय सबसे बड़ी समस्या थी -- देश में खाद्य समस्या और दूसरी थी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियाँ . एक प्रधानमंत्री होने के बाद भी उन्होंने देश के छोटे और बड़े स्थानों पर जाकर देश की खाद्य समस्या से निपटने के लिए लोगों से आग्रह किया कि वे सप्ताह में एक दिन व्रत रखे तो इससे हमारी समस्या को बहुत राहत मिल सकती है और उनके इस आग्रह को ठुकराया नहीं गया बल्कि उसका पालन हुआ. देश ने बड़े साहस के साथ इसका सामना किया. १९६५ में पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ गया और तब देश की सीमा के रखवालों और देश के पालनहार माने जाने वाले किसानों में स्फूर्ति भरने के लिए उन्होंने 'जय जवान जय किसान ' का नारा दिया.
उनके सरल, सदा और दृढ निश्चयी व्यक्तित्व ने ही उनको विशेष बनाये रखा. पाकिस्तान से युद्ध जीतने के बाद सम्पूर्णविश्व में उनकी भूरि भूरि प्रशंसा हुई. रूस की मध्यस्थता में एक युद्ध संधि के लिए वे ताशकंद गए और वहाँ पर पाकिस्तान के अयूब खान के साथ उनके समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हुए और फिर उसी रात यानि १०-११ जनवरी १९६६ को वही उनका निधन हो गया. ये स्वाभाविक मृत्यु थी या फिर कोई षड़यंत्र आज भी प्रश्न चिह्न बना हुआ है.
चित्र गूगल के साभार.
उस भारत माँ के सपूत को आज उनके १०६वे जन्मदिन पर मेरा शत शत नमन!
देश के इन महान सपुतों को शत-शत नमन
aaj sabhi bhoolte ja rahe hain in hindustan aur uttarpradesh ke saputo ko
देश के इस लाल को हमारा भी शत शत नमन्।
badhiya aalekh
JJ JK