सब भूल गया आज खिली ये बहार है ........
है गर्दिशे नसीब चली जो बयार है ..............
शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
लिखी है हमने आजादी इबारत खूँ के कतरों से
मिटाने को उसे भी हम लगे हैं नाज़ नखरों से
बहुत दिल पर चले आरे दोबारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
हमी दुश्मन हैं अपनों के खुदी पे वार करते हैं
लगाते घाव अपनों को नहीं वो प्यार करते हैं
मिटा डाला वो अपनापन बेचारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
अभी भी कुछ न बिगड़ा है संभल जाओ मेरे भाई
नशा दौलत का छोडो अब चले आओ मेरे भाई
न खेलो खेल खुदगर्जी, सहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
बहरे हज़ज़ (मफाइलुन)
--अम्बरीष श्रीवास्तव
अत्यंत सराहनीय एवं उत्कृष्ट प्रस्तुति
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
तौसिफ हिन्दुस्तानी जी,
असलामोलेकुम.
आपने जिन आत्मिक शब्दों से सराहना की है उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ......बहुत-बहुत आभार आपका ....... खुदा हाफिज़ .........
वंदना जी, नमस्ते.
आप की इस सराहना हेतु ह्रदय से आभार ....सादर.............
अम्बरीश जी आपसे यही अनुरोध है की ऐसे ही क्रन्तिकारी लेख से हम लोगो को मार्गदर्शन करते रहें
जय हिंद
दिल को छू गया ,अम्बरीश जी ये आपकी तखलीक (कृति ) है या किसी हवाले से है
तौसिफ हिन्दुस्तानी जी,
हम सब एक निमित्त मात्र है वह तो खुदा अल्लाह या परमात्मा हे हैं जो हम सभी से ये कार्य करा लेते हैं..............उन्हीं की इच्छा से ये सब कार्य हो रहा है आपकी ये चाहत अवश्य ही पूरी होगी ..........जय हिंद...... जय हिन्दुस्तानी ........
आदरणीय बेनामी जी,
आपके इन शव्दों के लिए दिल से आपका आभार व्यक्त कर रहा हूँ. यह रचना इस बंदे की कलम से १५ अगस्त २०१० को लिखी गयी थी जिसका सम्पूर्ण श्रेय मैं उपरवाले को व आप सभी मित्रों की संगति को देता हूँ .........रह रचना मेरी पुस्तक जो सरहद पे जाये........में प्रकाशित है...इसके साथ साथ यह १५ अगस्त २०१० को फेसबुक पर निम्नलिखित लिंक पर भी प्रकाशित है !
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=152533364760945&set=a.126530980694517.23150.126382584042690&ref=fbx_album ...सादर.............
बहुत सटीक और उत्साह वर्धक रचना.
शुक्रिया इसे हम तक पहुचाने के लिए.
@अनामिका की सदायें ......जी ,
इसे पसंद करने करने व उत्साहवर्धन के लिए आपका ह्रदय से आभार .....
लिखी है हमने आजादी इबारत खूँ के कतरों से
मिटाने को उसे भी हम लगे हैं नाज़ नखरों से
अभी भी कुछ न बिगड़ा है संभल जाओ मेरे भाई
नशा दौलत का छोडो अब चले आओ मेरे भाई
आपके इस कविता की हर पंक्ति में देशवासियों के लिए एक सन्देश हैं
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@तौसिफ हिन्दुस्तानी जी, असलामोलेकम...... जय हिंद........
इसे पसंद करने के लिए पुनः ह्रदय से आभार ...हम सभी को इन संदेशों पर तुरंत ही अमल करना होगा तभी हमारा कल्याण संभव है जय भारत ........जय भारतीय .......