..क्या होगा...
मन में द्वंद्व भरे क्या होगा।
होगा ना होगा क्या होगा ।
दो नावों की करे सवारी,
डूब न जाए तो क्या होगा।
मैं तू मेरा-तेरा मत कर,
कोई न तेरा तो क्या होगा।
दर्द किसी का बाँट सका ना,
दर्दे-दिल होगा क्या होगा।
अपना पराया भूल प्रीति कर,
इससे सुन्दर जग क्या होगा।
यह वह मैं तू उसी ईश के,
तेरा मेरा किये क्या होगा।
वैर-द्वेष की निद्रा त्यागे,
इससे सुखद भोर क्या होगा ।
चलन हो जग में रीति-प्रीति का,
सोच न होगा 'श्याम, क्या होगा ॥
होगा ना होगा क्या होगा ।
दो नावों की करे सवारी,
डूब न जाए तो क्या होगा।
मैं तू मेरा-तेरा मत कर,
कोई न तेरा तो क्या होगा।
दर्द किसी का बाँट सका ना,
दर्दे-दिल होगा क्या होगा।
अपना पराया भूल प्रीति कर,
इससे सुन्दर जग क्या होगा।
यह वह मैं तू उसी ईश के,
तेरा मेरा किये क्या होगा।
वैर-द्वेष की निद्रा त्यागे,
इससे सुखद भोर क्या होगा ।
चलन हो जग में रीति-प्रीति का,
सोच न होगा 'श्याम, क्या होगा ॥
गुप्ता जी गजल भी लिखते हैं, जानकर खुशी हुई।
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वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
खुश रहो