जंगल में एक शेर था, उसे बहुत ज़ोर की भूख लगी. वह शिकार करने की नियत से जंगल में विचरण करने लगा. तभी उसे एक बकरी का झुण्ड नज़र आया. वह बहुत खुश हुआ और सोचने लगा कि आज तो खाने के लिए खूब सारा बंदोबस्त हो जाएगा, लेकिन तभी उसकी हँसी काफ़ूर हो गयी और उसके होश फ़ाख्ता हो गए! उसने देखा कि बकरी के उस झुण्ड के साथ में एक शेर भी आराम से उन्ही के साथ बिना किसी रुकावट के चला जा रहा है. ना तो बकरी को देख कर शेर में कोई तबदीली आ रही थी और ना ही शेर को देखकर बकरियां ही परेशान हो रही थीं. अब तो शिकार को निकले शेर को बहुत ही आश्चर्य हो रहा था कि आख़िर ये माज़रा क्या है! उसकी भूख एक किनारे लग गयी और अब उसे इस बात की फ़िक्र हो गयी कि इसका पता लगाया जाये कि ऐसा क्यूँकर है?
इसी इरादे से वह बकरियों के झुण्ड की तरफ़ लपका. शेर को अपनी ओर आते देख सभी बकरियां भी भागने लगीं साथ में वह शेर जो बकरियों के झुण्ड में शामिल था, भागने लगा. शिकार करने वाले शेर को तो बकरियों से कोई मतलब ही नहीं रहा वह तो उस शेर को पकड़ना कहता था जो बकरियों के उस झुण्ड में था. वो उसे दौड़ाने लगा और आख़िर-कार वह उसे पकड़ने में कामयाब हो गया.
पकड़े जाने पर दुसरे शेर ने शिकारी शेर से गुहार लगाई, "मुझे मत मारो, मुझे मत मारो, मुझे छोड़ दो!" शिकारी शेर ने उसे डांटते हुआ कहा कि "चुप रहो, मैं तुम्हें मारने के लिए नहीं पकड़ा है, मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूँ, क्यूंकि तुम खुद ही एक शेर हो"!
"नहीं, नहीं... मैं शेर नहीं हूँ, मैं बकरी हूँ, तुम्हें कोई ग़लतफ़हमी हुई है!"
"तुम एक शेर हो, अगर तुम्हें यक़ीन नहीं आता तो चलो मेरे साथ मैं तुम्हें सबूत देता हूँ कि तुम वाक़ई शेर ही हो!"
इस तरह से वो दोनों एक तालाब के किनारे पहुंचे और शिकारी शेर ने कहा कि आओ हम दोनों इस तालाब में अपनी-अपनी श़क्ल देखें. जब दुसरे शेर ने अपनी श़क्ल तालाब के पानी में देखी तो वह हैरान रह गया, उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं एक बकरी हूँ और मेरी शक्ल एक शेर से कैसे मिल सकती है? अभी वह इसी उधेड़बुन में था कि तभी शिकारी शेर ने हुक्म दिया "अब दहाड़ के दिखाओ!" दुसरे शेर ने कोशिश की. लेकिन वह तो बकरी की तरह ही मिमियाँ रहा था. इस पर शिकारी शेर ने खुद एक दहाड़ लगाई और कहा इस तरह से दहाड़ो. थोड़ी देर की प्रेक्टिस के बाद दुसरे शेर ने इतनी ज़ोर से दहाड़ लगाई कि वह खुद हैरान हो गया.
लेकिन अब उसे पूरी तरह से यक़ीन हो चला था कि वह बकरी नहीं....शेर ही है.
(कहानी बहुत कुछ कह जाती है, ख़ासकर जब कोई सन्देश-परक कहानी हो तो उसका मतलब बहुत ही गूढ़ होता है. इस कहानी में भी एक गहरा सन्देश छिपा है, मुझे यक़ीन है कि आप ज़रूर समझ गए होंगे. तो जो कुछ अपने समझा मुझे ज़रूर बताईये, अपनी टिपण्णी के ज़रिये.)
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बहोत ही अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट..
सही हर कमजोर इंसान भी अपने आप एक छुपा हुआ शेर है , पर वो इस बात को भुलाये बैठा है.....
धन्यवाद
thanks