चेहरा बदल-बदल कर तलाशता है मुझे
वक़्त का हर एक लम्हा तलाशता है मुझे
सजाया था जिसके लिए फूलों का गुलशन
वो ही पत्थर लिए हर लम्हा तलाशता है मुझे
समन्दर ने तो हर सू मुझे सुकून दिया
पानी का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे
जिस्म में इस तरह समाया हूँ उसके
ख़ून का हर एक क़तरा तलाशता है मुझे
बहुत खूब । बधाई ।
लोग भी क्या सोच कर शायरी करने लग जाते है ,
ये अलगाववादी की कलम, नहीं हाथ, नहीं दिमाग....फिर गया है |
बहुतशानदार गज़ल---हां शायर के नाम के साथ एक शेर और होता तो और अच्छा होता।
yaqeenan yah bhawnatmak utpatti hai jo aap log padh rahe hain,
haqeeqat to ye hai ki main zaraa saa bhi sher-o-shayeri aur ghazal ke niyam nahin jaanta...
BAS DIL SE LIKH DETA HOON !