मालूम है दूर हो, तसव्वुर करना न छोड़ देना
ख्व़ाब में, मुझे बाँहों में जकड़ना न छोड़ देना
गुलिस्ताँ से आ रही है हसीं खुशबू तुम्हारी
आने वाली इस सबा का रुख न मोड़ देना
पहाड़ों की सरगोशी में मौजूदगी है तुम्हारी
पत्थर से मेरे दिल का रिश्ता न जोड़ देना
जिधर भी जाऊं बस नज़र में तुम्हारा है चेहरा
मेरे इस गौर-ओ-फ़िक्र का रस्ता न मोड़ देना
बिछड़ के भी उलझा रहता हूँ यादों में तुम्हारी
तुम भी दिल के तारों में उलझना न छोड़ देना
एक-एक पल सदी सा अब लगने लगा है
इन्तिज़ार के मिठास की शिद्दत न छोड़ देना
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चली तो गयी हो सरहद-ए-सदा से दूर लेकिन
आने से पहले दुनियाँ की रस्मों को तोड़ देना
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