चित्र १-राधा-ललिता-श्री कृष्ण --चित्र२-प्रसाद वितरण --चित्र ३-नरीसेमरी मुख्य द्वार--चित्र४ -अन्दर का प्रांगण -----
------ यूं तो भारत के कोने कोने में देवी पीठ हैं । विश्व प्रसिद्द पौराणिक नगरी , कृष्ण की कर्म -लीला स्थली मथुरा से आगे दिल्ली राज मार्ग पर छाता के निकट एक देवी पीठ है -नरी -सेमरी , जो मथुरा -आगरा के आसपास क्षेत्रों की मातृदेवी-कुलदेवी है, यद्यपि यह बहुत सुप्रसिद्ध देवी स्थान नहीं है । परन्तु बृज रक्षिका के नाम से जानी जाती है। कहते हैं यही वह स्थान है जहां कृष्ण बलराम को कंस द्वारा कुश्ती का आमंत्रण मिला था|
------नरी सेमरी मंदिर कामुख्य द्वार आगरा-मथुरा-दिल्ली राजमार्ग पर ही है। सामान्य दिनों में सड़क
द्वारा मथुरा से या दिल्ली से छाता या उससे अगले बस स्टेंड का टिकट लेकर कंडक्टर मंदिर के गेट के सामने उतार देते हैं । रेल मार्ग से दिल्ली से छाता स्टेशन या मथुरा स्टेशन से बस या टेम्पो आदि से जाया जा सकता है। शारदीय नवरातों के समय बहुत बड़ा मेला लगता है अतः अस्थायी रेल व बस स्टेशन बनाए जाते हैं जो मंदिर के गेट के ठीक सामने उतारते हैं ।
------जन सामान्य व स्थानीय निबासियों के अनुसार यह नरी सेमरी माता का मंदिर है जो बृज रक्षिका है और एक भक्त द्वारा बनबाया गया था , जब माता के उसकी कुटिया पर आने पर भक्त द्वारा न पहचानने पर माता पैदल ही वापस चलदी और भक्त को ज्ञात होने पर उसने यहाँ आकर माता के दर्शन किये और फिर मंदिर बनबाया ।
मंदिर में तीन मूर्तियाँ है , जो भारत में कहीं नहीं है सिवाय वैष्णों देवी मंदिर के जो तीन पिंडी रूपों में है । नरी समरी में तीन सुन्दरअद्भुत मूर्तियाँ है जो कि सफ़ेद, काले व सांवले रंग की हैं।
परन्तु गहन रूप से पता करने,मथुरा गजेटियर व ग्रंथों में खोजने पर एक विशिष्ट कथा का ज्ञान होता है। वस्तुतः नरी सेमरी शब्द -नारी श्यामली या नर-श्यामली (नर- नारायण ) का अपभ्रंश रूप है। यह स्थल नर- नारायण वन नाम से भी जाना जाता है। ये मूर्तियाँ वास्तव में राधा, श्री कृष्ण व ललिता जी की मूर्तियाँ है काले कृष्ण, सांवली ललिता जी व गोरी राधाजी। यह वह स्थान है जहां पर कृष्ण ने राधा को अपने नारायण रूप के दर्शन कराये थे ।
------कथा यह है कि एक बार राधाजी श्री कृष्ण से अत्यधिक रूठकर इस वन चलीं आईं । ललिता के कहने पर श्री कृष्ण मनाने के लिए सुन्दर सांवली वीणा- वादिनी स्त्री का रूप रखकर वीणा बजाते हुए आये , राधाके पूछने पर अपने को श्यामली सखी बताकर राधाजी के मनोरंजन हेतु मनो विनोद करते हुए साथ रहने लगे । राधाके प्रसन्न होने पर, संदेह होने से राधा जी ने पहचान लिया परन्तु तब उनकी अप्रसन्नता समाप्त होकर वे प्रकृतिस्थ हो चुकीं थीं, तब श्री कृष्ण ने उन्हें अपने नारायण रूप का ज्ञान कराया। इस प्रकार यह स्थान नारी श्यामली या नरी- श्यामली, नरी-सांवरी और कालान्तर में नरी सेमरी कहलाया और बृज रक्षिका --राधाजी , ललिता सहित श्री कृष्ण की पूजा होने लगी ।
---------मुख्य मंदिर एक बड़े प्रांगण के मध्य में अवस्थित है , चारों और कुछ अन्य देवताओं के छोटे छोटे मंदिर भी बने हैं । प्रांगण में व प्रांगण के बाहर धर्मशालाएं है जो भक्तों द्वारा ही बनवाई गयीं हैं एवं अच्छी प्रकार से रख रखाव का अभाव है। जल की यहाँ अत्यधिक कमी है व कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। एक तालाब दिखाई देता है जो शायद पहले पक्का होगा और जल संरक्षण व पूर्ति का स्थान होगा , तीर्थ यात्रियों के भी प्रयोग में आता होगा। परन्तु अब देश के अन्य तीर्थस्थानों की भांति गन्दगी से परिपूर्ण है। ग्राम सभा आदि द्वारा कुछ नल लगाए हुए हैं । मेला समय पर कुछ सरकार द्वारा व कुछ भक्तों द्वारा पुन्य कमाने हेतु पीने के पानी के टेंकर ग्राम सभा के द्वारा मंगवा दिए जाते हैं।
------यह समय समय पर स्थानीय लोगों की आमदनी का जरिया भी है ( ये सभी पीठ -मेले आदि भारत की प्राचीन स्थानीय अर्थ व्यवस्था का इंतज़ाम था। ) गरीबी , अशिक्षा व शासकीय उदासीनता के चलते भारत की अन्य तीर्थ स्थलों की भांति यहाँ भी बच्चे पैसे माँगते हुए दिखाई पड़ते हैं। छोटे से उजाड़ स्थल पर भी आजकल के ट्रेंड के अनुसार भूमाफिया व अन्य तरह के माफिया भी अपनी जड़ें जमाये हुए सुने जाते हैं।
achchhee jaanakaaree