भदोही/उतरप्रदेश; कलात्मक रंग बिरंगे कालीनो के लिए विश्व में अपनी पहचान बना चुका उत्तरप्रदेश के भदोही जनपद में काफी दिनों से ईसाई मिशनरियां अपना जाल फैलाकर धर्म परिवर्तन जैसे काम को अंजाम दे रही है. हालाँकि प्रशासन इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर करता है जबकि हिन्दू संगठन इसके खिलाफ आवाज़ उठाते रहते है.मामला चाहे जो भी हो किन्तु धर्म परिवर्तन के मामले को लेकर किसी दिन भी भदोही में मामला गंभीर हो सकता है.
ईसाई मिशनरी द्वारा धर्म परिवर्तन करने वाली महिलाये" |
"धर्म परिवर्तन को लेकर प्रदर्शन करते विहिप कार्यकर्त्ता" |
"मौके पर पहुंची पुलिस" |
"प्रार्थना सभा में शामिल हिन्दू दलित महिलाएं" |
दोषी कौन....
"मैं देखता था जब कुत्ता किसी थाली को जूठा कर देता था तो उस थाली को धोकर घर में रख दी जाती थी किन्तु वही थाली जब दलित वर्ग जूठा करता था तो वह निकाल दी जाती थी"
देखा जाय तो धर्म परिवर्तन के लिए कोई मिशनरी या संगठन दोषी नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म में फैली बुराइया व हिन्दू धर्म की ठेकेदारी लेने वाले संगठन इसके लिए दोषी है. जनता के वोटो से चुनी जाने वाली सरकारे गरीबी मिटाने के बड़े बड़े दावे करती है परन्तु गरीबी नहीं मिट रही है बल्कि गरीब मिटता जा रहा है. महगाई के दौर में राशन कार्ड बना देने से राशन नहीं मिलता. कुछ अधिक लिखना शायद मूल विषय से भटकना होगा. यह कहना ही काफी होगा की केंद्र या प्रदेश सरकार सी गरीबी उन्मूलन के लिए संचालित योजनाये सिर्फ बिचौलियों तक ही सिमित है. जिसके कारण गरीबी व भुखमरी से परेशान व्यक्ति इसे अपना भाग्य समझ लेता है और भाग्य सुधारने के लिए धर्म के ठेकेदारों का शिकार बनता है, वही हिन्दू संगठनो के नाम पर सिर्फ राजनिति की जा रही है. हमारे पुरखो ने जो जाति- पाति, छुआ -छूत का जो बीज बोया था उसका पौधा बन चुका है, वेद में लिखे वाक्यों को सुनाकर दलित वर्ग को भड़काया जा रहा है., इतना ही नहीं दलित वर्ग को हमेशा शिक्षा से दूर रखा गया जब वे पढ़ लिखकर हिन्दू धर्म शास्त्रों का अध्ययन करते है तो उनके दिल पर क्या गुजरती होगी, मुझे अपना बचपन याद है..... मैं देखता था जब कुत्ता किसी थाली को जूठा कर देता था तो उस थाली को धोकर घर में रख दी जाती थी किन्तु वही थाली जब दलित वर्ग जूठा करता था तो वह निकाल दी जाती थी, क्या आज हमारे हिन्दू धर्म को विनाश करने में इन सब बातो का योगदान नहीं है. धर्म परिवर्तन हो रहा है और होता रहेगा , हिन्दू संगठनो के नाम पर राजनीती करने वाले इसे नहीं रोक पाएंगे, रुकेगा तब जब हम मनसा,वाचा, कर्मणा से सभी इंसानों को एक बराबर समझेंगे, अन्यथा हिन्दू धर्म बिखर रहा है. और ऐसे ही बिखरता रहेगा.
सभी लोगों इस पर विचार करना चाहिए
बेहतरीन लेख
----वेदों व अन्य हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहीं भी एसी बात नही लिखी है कि जो कुत्ता व दलित वर्ग के बारे में आप ने कहा है---बाल्मीकि व अन्य तमाम महर्षि लोग शूद्र वर्ण के थे( दलित नाम कहीं नहीं है)...शूद्र से कर्म व विद्या द्वारा लोग ब्राह्मण व क्षत्रिय बन जाते थे.... हां निश्चय ही पश्च-मध्य काल में , मुस्लिम व अन्ग्रेज़ो के काल में ये बुराइयां, जमीदारी व अक्रिय राजे महाराजों के काल में- ,वैदिकग्रन्थ व ग्यान नष्ट व लुप्त होने से , समाज में फ़ैलीं --जिसका लाभ मिशनरियों ने( ब्रिटिश व भारतीय अन्ग्रेज़ी सरकार के उत्साहवर्धन द्वारा) उठाया व उठाते रहे है ...आज भारत सरकार की कमजोरियों का लाभ उठाया जारहा है...
गुप्ता जी, निःसंदेह मध्यकाल में ही हमारे समाज में भ्रान्तिया फैलाई गयी, दलित व कुत्ते के बारे में मैंने जो लिखा है वह मेरा अनुभव है, बचपन में मैंने ऐसी घटनाये देखी है, किन्तु अधिक नहीं जितना मैंने पढ़ा है अपने अल्पज्ञान के तहत शंका समाधान के लिए कुछ प्रश्न पूछना चाहता हू............
१. यदि किसी शुद्र के कान में वेद का एक वाक्य पड़ जाय तो उसमे पिघला शीशा डाल देना चाहिए क्यों?
२. ब्रह्मण किसी भी जाति की लड़की से शादी कर सकता है. किन्तु कोई अन्य छोटी जाति का व्यक्ति ब्रह्मणि से शादी करे तो उसे अपना लिंग पकड़कर तब तक नैरीत्य दिशा की और जाना चाहिए जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती क्यों?
३. यदि शुद्र किसी ब्रह्मण को धर्म का उपदेश दे तो उसे तीन बार जलती अग्नि में सिर के बल फेकना चाहिए क्यों?
यह किन परिस्तिथियों में लिखा गया और उसका कारण क्या है, शायद आप मुझे बेहतर समझा सके किन्तु इन्ही बातों का फायदा उठाया जा रहा है. और हिन्दू धर्म के ठेकेदार लोंगो को सही मार्ग न दिखलाकर सिर्फ राजनितिक रोटी सेंकने में लगे हैं.
अच्छी जानकारी के लिए आभार , इसके लिए कहीं-न कहीं हम ही जिम्मेदार है , आभार आपका ।